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________________ अनेकान्त [वर्ष १० नुकसान पहुंचाता ही है। फिर भी जब मैं देखता मंत्र-तंत्रके शिकार होगये, तथ्य भी गया और सत्य हूं कि किसी तश्यसे होनेवाला नुकसान उस नुक- भी गया । इसलिये जिनका बौद्धिक विकास इतना सानसे बड़ा है जो हितकर अतथ्यके कारण हुआ है कि वे तथ्य-सत्यको पकड़ सकते हैं उनका होसकता है, तो अतथ्यको सत्य समझकर उसे में स्वागत करता हूँ, पर जो भावनावश या अन्य दरगुजर कर जाता है। हां। तथ्य-सत्यके मिल- किसी कारणवश ईश्वर परलोक आदिका सहारा ते ही मैं अतथ्य-सत्यको छोडनेको सदा तैयार लिये बिना रह नहीं सकते, उन्हें सिर्फ इनके दुरुपरहता हूं। और जहां तक बनता है अनावश्यक योगसे बचानेकी कोशिश करता हूँ। इसलिये मैं अतथ्यको हटानेकी कोशिश करता हूं। ईश्वरवादी आस्तिक, अनीश्वरवादी आस्तिक, ईश्व रवादी नास्तिक, अनीश्वरवादी नास्तिक ऐसे चार भेद आलंकारिक भाषा करता हूँ। जो ईश्वरको सर्वदृष्टा और सर्वशक्तिमान ३. रूपक अलंकार आदिके जरिये जो बात मानकर अंधेरेमें भी पापसे बचनेकी कोशिश करता कही जाती है उसे अतथ्य मानता । जैसे सत्य है वह ईश्वरवादी आस्तिक है, जो ईश्वर नहीं मानता श्वर, भगवती अहिंसा, सरस्वती देवी, विवेक दादा किन्तु प्रकृतिक नियमको मानता है इसलिये अंधेरेश्रादि कथन रूपक है । इस रूपक कथनसे मनको में भी पापसे बचता है वह अनीश्वरवादी आस्तिक तसल्ली मिलती है । इनकी आलंकारिकता स्पष्ट है है। जो ईश्वरको क्षमाशील मानकर पूजा, नमाज, किन्त यदि किसी कारण कालान्तरमें लोग ऐसे प्रार्थना, भेंट आदिसे ईश्वरको खुश करनेकी कोशिश वर्णनोंकी आलंकारिकता भूल जाँय तो उस समय करता है किन्तु पाप या बुराईसे बचनेकी कोशिश इसे अतथ्य सत्य कहने लगेंगे। नहीं करता वह ईश्वरवादी नास्तिक है, और जो ___ अलंकारोंको काव्यकी कसौटीपर ही कमना जगतमें कोई व्यवस्था न मानकर स्वच्छन्दतासे पाप चाहिये, मुखचन्द्रकी शोभा काव्यमें है, खगोलकी करता है वह अनीश्वरवादी नास्तिक है। मेरा जोर मीमांसामें नहीं। ईश्वरवाद या अनीश्वरवाद पर नहीं है किन्तु पात्रताका विवेक दोनोंके आस्तिकरूप पर है। जबकि एकांत बुद्धि वादी अनीश्वरवादपर जोर देता है । वह सोचता है ४. तथ्य सत्यके उपयोगमें पात्रताको देखकर कि किसी भी तरह ईश्वर, परलोक आदिसे मनुष्यजोर देता हूँ। अन्यथा तथ्य तो उड़ ही जाता है पर का पिण्ड छट जाय तो बाकी सब जल्दी सुधर जासाथ ही सत्य भी उड़ जाता है। व्यक्ति विशेषको यगा। मैं सोचता हूँ कि पहले तो इनस पिण्ड छूटना जो पच जाता है वह साधारण जनताको नहीं पचता, बहुत कठिन है, अगर छूट जाय तो बाकी सब ठीक इसका भी ध्यान रखता हूँ। जैनधर्मने ईश्वर उड़ा- होना और भी कठिन है। जैन-बौद्धोंके ऐतिहासिक दिया, लेकिन साधारण जनताको यह बात न पची, उदाहरण तो हैं ही, पर आजके रूसका भी उदाहफल यह हुआ कि ईश्वरवादकी सारी बुराइयाँ रण है जहां ईश्वर फिर अपने सब अंगोंके साथ परिवर्द्धितरूपमें जैनसमाजमें मौजूद हैं । बौद्ध पनप रहा है। इसका विचारकर मैं ईश्वर अनीश्वरधर्मने अनीश्वरवाद और अनात्मवादको भी अप वाद पर जोर नहीं देता, उन दोनोंके सदुपयोगपर नाया पर वहां इसकी प्रतिक्रिया और भयंकर हुई। जोर देता हूँ। यह मेरा कल्याणवाद या सत्यखास-खास व्यक्ति तो इनसे लाभ उठा सकते थे पर वाद है। जन-साधारण नहीं। वे अर्गाणत देवी-देवताओं और पर जैसे मैं ईश्वरको दरगुजर कर लेता हूं
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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