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________________ - - - ४६० अनेकान्त [वर्ष १० प्राचीन साहित्यके उद्वार और समयोपयोगी नव- उल्लेख-योग्य एक रकम सेठ सोहनलालजी कलकत्ता साहित्यके निर्माणादि कार्यो में पूर्णतः दत्तचित्त रहे वालोंकी है-शेष ६/-) सारे समाजसे प्राप्त हुए और इस तरह समाज तथा देशकी ठीक ठीक सेवा समझने चाहिए। ऐसी स्थिति में 'अनेकान्त'को अगले कर सके। वर्ष कैसे चाल रक्खा जाय, यह एक विकट समस्या है। जब तक इस वर्षके घाटेकी पूत्ति नहीं हो जाती ___ परन्तु खेदके साथ लिखना पड़ता है कि किसी तब तक आगेके लिए कोई विचार ही नहीं किया ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया और न वीरसेवा जा सकता । अतः अनेकान्तके प्रेमी पाठकभी कुछ मन्दिरके दोनों विद्वानोंने ही अपने वचनको पूरा समयके लिए धैर्य रक्खें, जब कोई व्यवस्था ठोक हो किया है। नतीजा इस सबका वही 'घाटा' हुआ जायगी तब उन्हें सूचित किया जायगा। हां, अने. जिसके भयसे पत्रको निकालनेका साहस नहीं होता कान्तकी इस घाटा-पुत्ति में यदि वे स्वयं कुछ सहथा। इस वर्ष के आय-व्ययका चिट्ठ। इसी किरण योग देना तथा दूमरोंसे दिलाना उचित समझे तो में अन्यत्र दिया गया है, उसपरसे पाठक देखेंगे कि उसके लिए जरूर प्रयत्न करें। साथ ही, अनेकान्तके १५ महीनेके इस अर्सेमें पत्रको ढाई हजारके करीब दो दो नये ग्राहक बनाकर उनकी सूचना भी का घाटा रहा है। समाजसे सहायतामें कल २६८||12) की रकम प्राप्त हई, जिसमें २००) रु० की अनेकान्त-कार्यालयको देनेकी कृपा करें। (४१२ वें पृष्ठ का शेषांश) अनूप संस्कृत लायब्रेरीमें आपकी लिखित एवं (२६) ज्योतिष सारोद्धार-इसको प्रति अनूप- लिखाई हुई अनेकों प्रतियां हैं । हमारे संग्रहमें एवं संस्कृत लाइब्रेरीमें है। बीकानेरके अन्य भण्डारोंमें भी आपको लिखित (२७) विवाहपटल-इसकी प्रति आचाये कई प्रतियां प्राप्त हैं भण्डारमें है। (२८) पाशाकेवली-इसकी प्रति उ0 जयचन्द्र शिष्य-परम्पराजीके भण्डारमें मोतीचन्द्रजी खजानचीके संग्रह में है। हर्षकीर्तिसूरिके समरसिंहनामक शिष्य थे, अधिक खोज करनेपर आपकी अन्य कई जनका दीक्षानाम समरकीर्ति था। सं० १६६७ से रचनामोंका पता लगाना सम्भव है। १६७४ की लिखित प्रतियोंकी पुष्पिकाभोंमें इनका आपकी लिखित प्रतियां नाम पाया जाता है। उनके शिष्य यशःकीर्तिके हर्षकीर्तिसूरिकी स्वयं लिखित प्रतियें प्रचुर रचित वृत्तरत्नाकरकी वृत्ति अमृपसंस्कृत लायब्रेरीमें प्रमाणमें पाई जाती है। आपके हस्ताक्षर सुवाच्य थे, प्राप्त है।
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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