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________________ अनेकान्त [ वर्ष १० वलो नहीं थे, वे शिश्न और योनिकी ही उपासना अनेक हाव-भाव-सहित रची जाती हैं। परन्तु करनेवाले नहीं थे, प्रत्युत अध्यात्मवाद, त्यागमार्ग मोहनजोदड़ो और हड़प्पाको कार्योत्सर्ग प्रतिमाओं. संन्यासमार्ग, योगसाधना, ध्यानमुद्रारूप किसी का आदर्श ऐहिक वांछाओंका त्याग है । इसलिये श्रमणसंस्कृतिको भी माननेवाले थे। उनकी तुलनाके लिये हमें भारतकी श्रमण-शाखाअभी यह निर्णय करना है कि जिस अध्यात्म- ओंकी मूर्तियों की ओर ही देखना होगा । भारतमें संस्कृतिको उन्होंने अपनाया था वह संस्कृति भाज तीन सम्प्रदाय ऐसे हैं जो पुरानी श्रमण-संस्कृतिके बिल्कुल खतम होचुकी हैं या वह भाज भी पूर्ववत् अनुयायी हैं- शैव, बौद्ध और जैन । प्रचलित है,यदि वह प्रचलित है तो उसकी सादृश्य- शिव-मृतियोंसे तुलनाता कहां पर है, उसका प्रतिनिधित्व आज कौन कर ए " इनमे शैव और बौद्ध सम्प्रदायोंकी देवालयों में रहा है। इस गुत्थीको सुलझानेके लिए हमें निश्चय जितनी शिव और बद्धकी मर्तियां पुराने सांस्कृतिक मोगा कि संसारके किन लोगोने उपयुक्त वंभावशेषोंसे प्राप्त हुई है उन परसे यह निविवाद लक्षणोंवाली मूर्तियोंकी रचना की, कौन उनके उपा कहा जा सकता है कि, मोहनजोदड़ोकी उपयुक्त सक बने रहे और कौन उन जैसी जीवन-चर्या को का मूर्तियाँ अपनी बनावट और शैलीमें भिन्न अपनाते रहे हैं। प्रकार की हैं। ___ जहां तक भारतसे बाहरवाले देशोंका सवाल शिवकी कितनीही मूर्तियाँ तो दक्षिणकी नटराज है, बहुतसी पुरातात्त्विक खोज होनेपर भी वहां मूर्तियोंके समान ताण्डव नृत्य करती हुई हैं । और किसी ऐसी संस्कृतिका पता नहीं लगा, जिसमें कितनी ही ध्यानी मतियाँ, जैसे कि मथराके कंकाली वीतरागता, नग्नता, निष्परिग्रहता, योगसाधना, टीलेसे प्राप्त हुई हैं, चतुर्भुजी हैंध्यानलीनता आदि जीवनचयोका समावेश हो। वे अपने एक हाथमें त्रिशूल, दूसरेमें डमरू इसलिये उपयुक्त प्रश्नका उत्तर भारतको सीमामे तीसरेमें चक्र, चौथेम रूद्राक्षमाला थामे हुए है। ही दढना होगा। भारतमे भी,जहां तक साधारण उसके शिरके बाल सावेष्टित जटाजूट बँधे है, हिन्द मूर्तियोंकी निमोणकलाका प्रश्न है, शिव- सर्प ही उसके गलेका हार है, भुजोंपर बाजूबन्द मर्तियों को छोड़कर शेष समस्त देवी-देवताओंकी है और कानों में कराडल हैं। माथेपर तीसरी आख मतियाँ-चाहे वे ब्रह्माकी हों, चाहे विष्णु और बीईई और मस्तक पर अर्धचन्द्र खिला है। विष्णु-अवतारोंकी हों, चाहे सरस्वती, लक्ष्मी, ईसाकी छठी शताब्दीके प्रसिद्ध गणितज्ञ और दर्गा आदि देवियों की हों-प्रायः भारतक प्राचीन ज्योतिषज्ञ श्रीवराहमिहिरने अपनी बृहत्संहिप्रागैतिहासिक शासक नाग अथवा यक्ष यक्षणि- तामें 'प्रतिमालक्षण' नामका जो ५८वां अध्याय योंकी मूर्तियों के अनुरूप ही रची गई हैं। उनका लिखा है, उसमें भी शिव-प्रतिमाका लक्षण निम्न आदर्श त्यागी तपस्वी विश्वभूतपति नहीं है, प्रकार दिया है:बल्कि उनका आदर्श पराक्रमी वैभवशाली ऐश्वर्य शंभोः शिरसीन्दुकला वृषध्वजोऽपि च तृतीयमूर्धम् । सम्पन्न एक इह लौकिक भूपति है । इसीलिये। शूलं धनुःपिनाकं वामाधे वा गिरिसुतार्धम् ॥४३॥ वे सभी वस्त्रभूषण तथा शरत्र-अस्त्र-सहित अथवा अर्थात् शिवमूर्तिके मस्तकपर चन्द्रकला, ध्वजमें १ -The development of Hindu Icno- - . - graphy by J.N.Banerjee Ph.D.Calcutta, १. वही मथुरा संग्रहालय का सूचीपत्र, मूर्ति नं. 1941 p113. D. 41, D. 43, D.441
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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