SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 487
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४६ अनेकान्त [ वर्ष १० दोनों कलाभोंमें उपासक जन इन चित्रों में निश्चयसे पास बैठ वन्दना करने जिस तरह आजके भारतमें साधारण जनमें वाला पुरुष अपने वंशका नायक प्रतीत होता है भक्ति मार्गकी प्रधानता है, और अनेक धनी सम्पति. और अन्य खड़े हुए उपासकजन उसके परिवारशाली भक्त लोग पूजा बन्दनार्थ अपने-अपने इष्ट के आदमी है। देवोंकी मूर्तियां बनवाने, मन्दिर निर्माण करने में (आ) वही मथुरा संग्रहालयका सूचीपत्र-जैन अपना अहोभाग्य मानते हैं वैसे ही २०० वर्ष पूर्व मूर्ति नं० B. ४, B. ५, B. १२-से १८ तक, B. प्रस्तुत मथुरा-कलाके कालमें और ५००० वर्ष पूर्व ६६ से ७३ तक। मोहनजोदडोके कालमें यहांके भक्त-जन इष्ट देवों- इनमें मूर्तियोंके आसनोंपर उपासक जन पंक्ति में की भर्तियां और मंदिर बनवाने में अपने जीवनकी खड़े हुए हैं। इनमें नरनारी और बालक सब ही सफलता मानते थे और अपने जीवनको कृतार्थ शामिल हैं। इन उपासकोंकी संख्या प्रत्येक मूर्तिमें करने के लिये इन मूतियोंके आसनोंपर या दायें भिन्न भिन्न है; किसी में दो, किसी में तीन, किसीमें ७ बारें अपनी और अपने परिवारवालोंकी पाकृ और किसी में पाठ उपासक जन खड़े है। इनमेसे तियाँ बनवाते थे, इसलिये प्रस्तुत दोनों कलाओंमें कुछ खड़े हुए हाथ जोड़ बन्दना कर रहे हैं और कुछ योगियोंकी मूर्तियोंके आसनोंपर इनके प्रतिष्ठापक घुटनोंके बल बैठे हाथ जोड़ नमस्कार कर रहे है। और निर्माता महानुभावोंके सपरिवार चित्र भी दोनों कलाओंमें नाग उपासकरहे हैं, इसके लिये देखें(अ) वही मोहनजोदड़ो,जिल्द १ फलक १२ पर दोनों कलाओं में इन योगीश्वरोंके प्रधान उपाचित्र १८-इसमें सात भक्त जन मूर्तिके नीचे खड़े हैं सक यक्ष और नागोको दिखलाया गया है इसके और एक मर्तिके समक्ष घुटनोंके बल बैठा हुआ हाथ लिये देखें:जोड़ बन्दना कर रहा है, बराबरमें एक पशुका (अ) वही मोहनजोदड़ो-फलक ११६ चित्र चित्र बना हुआ है। २६, फलक ११८ चित्र ११ । जिल्द ३ फलक ११६ चित्र १-इसमें छह उपा. इन चित्रों में योगियोंके दोनों ओर घटनोंके बल सक जन मूर्तिके ऊपरवाले भागमें खड़े हैं, मर्तिके बैठकर दोनों हाथोंसे नमस्कार करते हुए नागोंको सामने एक पशुका चित्र है, उसके पीछे एक पुरुष दिखलाया गया है। घुटनोंके बल बैठा हाथ जोड़ बन्दना कर रहा है। (आ) वही मथुरासंग्रहालयका सूचीपत्र-जैन जिल्द ३ फलक ११८ ताम्रपत्रचित्र नं० B४२६- मूर्ति ने. १५-इस मूर्तिके दोनों ओर नागफण इसमें भी छह उपासक जन मूर्ति के ऊपरवाले भागमें धारी उपासक वन्दना कर रहे हैं। खड़े हैं । मति के सामने एक पशुका चित्र बना है, (इ) वही Epigraphica Mathura-पृ० ३६६ इसके पीछे एक पुरुष घुटनों के बल बैठा हाथ जोड़ फलक २ चित्र A-इसमें एक स्तूपका चित्र दिया बन्दना कर रहा है। गया है, इसके दोनों ओर वृक्ष खड़े हैं । इस स्तूपको that the majority if not all of the an1- दो सुपणे,जिनकाशरीर बाधा पक्षीका और आधा mals portrayed on these seals whether मनुष्याकार है,और पांच किन्नर, जिनका शरीराधा mythical or real had some sacred or घोडेका और आधा मनुष्योंकार है, पुष्पमालाएं magical import in the eye of the own - और कलश हाथों में लिये पूजार्थ भेंट कर रहे हैं। Ibid Mohenjodaro vol. I, P.66-74 (ई) Archeological Survey of India ers..
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy