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किरण ११-१२]
हर्षकीतिसूरि और उनके ग्रन्थ
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पुत्रसाहश्रीजइता तत्पुत्र सा. गेहा तस्यात्मजसाह विवरणका रचना काल सं० १६६३ है अतः अन्त हेमसिंहाभ्यर्थः नयाग्रहेणऽ धातुपाठः कृतः।
दीर्घायु थे । सं० १६६५ के लगभग ही आपका हर्षकीतिकी गुरुपरम्पराका आवश्यक परिचय स्वर्गवास हुआ सम्भव है। देकर अब आपके जोवन पवं प्रन्थोंके सम्बध ज्ञात हर्षसरिचित ग्रंथपरिचय दिया जारहा है
___ जैसाकि पूर्व लिखा जा चुका है आपकी जन्म एव दीक्षा
प्रतिभा सर्वतोमुखी थी। व्याकरण कोष, छन्द, हर्षकीर्तिसूरिके जन्मस्थान, समय व वश माता काव्य, वैदिक एवं ज्योतिष सब विषयों में पिता के नामादके सम्बध में जानकारी प्राप्त करने आपको अच्छी गति थो जिसका परिचय आपके का काई साधन उपलब्ध नहीं है। पर आपकी रचित साहित्यसे भली भॉति मिल जाता है। जैन लिखित प्रतियोंमेंसे सं.१६१३ में लिखित सप्तपदाथी साहित्यको सक्षिप्त इतिहास ग्रन्थमें आपकी ८ रचउपलब्ध है अतः उस समय आपकी आयु २० वर्ष नाओंका उल्लेख है। यथाके लगभगकी माने तो आपका जन्म सं०१५६० से
(१) वृहत् शांति टीका (२) कल्याण मन्दिर वृत्ति ६५ के वीच एवं दीक्षा १६०५-७ के लगभग होना
(३) सिदर प्रकर टीका (४) सेटअनिटकारिकासंभव है।
विवरण (५)धातुपाठ-तरंगिणी (६)शारदीय नाम उपाध्यायपदआपकी लिखित प्रतियों में सं. १६१३ को प्रतिमें तो
माला (७) श्रतबोघवृत्ति (5) योगचिन्तामणि । मुनि एवं सं० १६.६ की प्रतिमें उपाध्याय विशेषण
इनके अतरिक्त सारस्वत दीपिका एवं वैद्यक पाया जाता है इसमे सं०१६१३ से २६ के मध्य हो
मारोद्धारका नाम दिया है पर सारस्वत दीपिका तो आपकी योग्यताके अनुरूप उपाध्याय पद प्राप्त हुआ
आपके गुरु चंद्रकोतिरिरचित ही है और वैद्यक प्रतीत होता है। सं० १६६२ की लिखित एक प्रति सारोद्धार उपयुक्त योगचितामणिम अभिन्न है। में आपको महोपाध्याय लिखा गया है अतः उस श्री देशाईद्वारा उल्लखित उपयुक्त ग्रन्थों के समय पाप गच्छमे उपाध्याय पदकी पर्यायकी अतिरिक्त मेरे अन्वेषण से लगभग एक दर्जन अपेक्षा सबसे बड़े सिद्ध होते है।
ग्रन्थोंका और पता चला है। अत: यहाँ विषय सृरिपद
वर्गीकरण करके आपके ज्ञान समस्त प्रन्थों की सूची सं०१६४० की लिखित प्रतिमे आपका पद उपाध्याय
दी जाती हैमिलता है और सं०४४ के ग्रन्थानुसार उस समय
व्याकरणसूरि (आचाय) पदपर प्रतिष्ठ थे अत: आपको (१) धातुपाठ-धातुतरंगिनीवत्ति सहित-- आचार्य पद सं१६४२ के लगभग मिला संभव है। व्याकरणविषयक आपका सबसे बड़ा प्रन्थ यही यद्यपि शिष्य तो आप चंद्रकीर्तिसूरिके थे पर है। जैसाकि उपयुक्त प्रशस्तिसे स्पष्ट है, इहकी छन्दोविद्याके पद्यसे स्पष्ट है कि उनके पदपर रछना टोकके हमसिंह वाकलीवालकी अभ्यर्थनामानकीर्तिसूरि प्रतिष्ठित हुए थे और हर्षकीर्ति से की गई थी। बीकानेरकी अनूप संस्कृत सूरि मानकीतिसूरिके पट्ट पर थे।
लारबेरी व महिमाभक्ति भंडारमें इसकी प्रतियाँ स्वर्गवास
उपलब्ध हैं। आपकी लिखाई हुई प्रति सबत १६६० को (२) सेटअनिटकारिका विवरण, र० सं०१६६३ उपलब्ध है एवं आपके रचित सेट अनिटकारिका जेसुक हमारे संग्रह में