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________________ किरण १.] महाकवि रइधू यस्यां जीन(ण) कठोर बभु(स्त्र?)मकरो कर्मोदराभं नम.। के साथ पद्मावती पुरवालोंका सम्बन्ध जोड़नेका मत्तानेककराल कुम्भि करटप्रोस्कृष्टवृष्ट्या [द भु] व। प्रयत्न किया था । और पं० बखतराय के 'बुद्धितं कर्दम मुद्रिया क्षितितलं तांब. (ब)त किं मस्तुमः ॥ विलाम' के अनुमार सातवां भेद भी प्रकट किया --Epigraphica Indira VLIP 149 है। हो सकता है कि इस जातिका कोई मम्बन्ध इस समुल्लेग्व परमे पाठक महजही में पद्मावती परवारोंके माथ भी रहा हो; किन्तु पद्मावती नगरीके विशालताका अनुमान कर सकते हैं। पुरवालोंका निकाम परवारोंके मत्तममूर पद्माइम नगरीको नागराजाओंकी राजधानी बननका वतिया से हुआ हो, यह कल्पना जीको नहीं भी सोभाग्य प्राप्त हुआ था और पद्मावती काति- लगती और न किन्हीं प्राचीन प्रमाणोंसे उसका पुरी तथा मथुरामें नौ नागराजाओंके राज्य करने समथन हो होता है और न सभी 'पुरवाडवंश' का उल्लेख भी मिलता है।। पद्मावती नगरीक परवार ही कहे जा सकते हैं। क्योंकि पद्मावती नागराजाओंके सिक्के भी मालवेमे कई जगह पुरवालोंका निकास पद्मावती नगरीके नामपर हुआ मिले है । ग्यारहवीं शताब्दीम रचित 'सरम्वती है। परवारोंके सत्तममूरसे नहीं आज भी जो लोग कंठाभरण' में भी पद्मावती का वर्णन है और कलकत्ता और दहली आदिम दसरे शहरोमं चल मालती-माधवमे भी पद्मावतीका कथन पाया जान है उन्हे कलकतिया या कलकत्तवाला, दहलवी जाता है जिसे लेखवृद्धिक भयम छोड़ा जाता है. दिल्लीवाला कहा जाता है, ठीक उसी तरह परवारी परन्तु खेद है कि आज यह नगरी वहां अपने उम के सत्तममर 'पद्मावतिया की स्थिति है। रूपमे नहीं है किन्तु ग्वालियर राज्यमे उसके स्थान गांवके नाम परसे गोत्र कल्पना कैसे की जाती ‘पर 'पवाया' नामक एक छोटासा गाव बसा हा थी इसका एक उदाहरण पं. बनारसीदासजी है, जो कि दहलीम बम्बई जाने वाली रेल लाइन के अधकथानकसं ज्ञात होता है और वह इम पर 'देवा' नामक स्टेशनसे कुछ ही दर पर स्थित प्रकार है:-मध्य प्रदेशक रोहतकपुरके निकट है। यह पद्मावती नगरी ही पद्मावती जातिक 'बिहोली' नामका एक गांव था उसमे राजवंशो निकामका कारण है। इस टिम वर्तमान राजपूत रहते थे; वे गुरु प्रसादसे जैनी हो गए और 'पवाया' ग्राम पद्मावती पुरवालोके लिए विशेष उन्होंने अपना पापमय क्रिया-काण्ड छोड़ दिया महत्वकी वस्तु है। भले ही वहा पर प्राज उन्होंने णमोकार मन्त्रको माला पहनी. उनका कुल पद्मावती पुरवालोंका निवाम न हो, किन्तु उसके श्रीमाल कहलाया और गोत्र बिहोलिया रकमा आम पाम तो आज भी वहां पद्मावतीपुरवालो गया। जैसाकि उसके निम्न पद्यांस प्रक्ट है:का निवास पाया जाता है। ऊपरके इन सब याही भरत सुखेतमें, मध्यदेम शुभ ठांउ उल्लेखों परसे ग्राम नगदिक नामों पर उप बमै नगर रोहतगपुर, निकट बिहोली-गाउ || ८ जातियांकी कल्पनाको पुष्टि मिलती है। गांर बिहोलाम बमै, राजवस रजपूत । ते गुरुमुख जैनी भए, त्यागि करम अघभून ॥ ६ श्रद्धेय पं० नाथूरामजी प्रेमीन 'परवारजानिक - इनिहाम पर प्रकाश' नामके अपने लेखमें परवारों १. दखो, अनेकान्त वर्ष ३ किरण . . २. मात खाप परवार कहावै, तिनक तुमको नाम सुनाव । १. नवनागाः पद्मावत्यां कांतीपुर्वा मधुसयां, विष्णु पु. अठसत्रखा पुनि है चामक्खा, तेसस्वा पुनि है दोसक्स्वा । अंश... २४ । सोरठिया अरु गांगज जानी, पद्मावतिया मत्तम मानी ।। २. देखो, गजपूतानका इतिहास प्रथम जिल्ट पृ.२१. -बुद्धिविलास
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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