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________________ अनेकान्त [वर्षे १० उल्लेख, प्रशस्तिके अन्तमें आश्रयदाता जगतरायकी यदि ये जगतराय कवि काशीदासके आश्रय जय मनाना और कल्याण-कामना करना तथा दाता राजा जगतरायसे भिन्न कोई अन्य तत्कालीन पुष्पिकामें भी जगतरायके प्रसङ्ग से 'विरचितायां' विद्वान नहीं हैं, तो हो सकता है कि ये दोनों 'सभ्यपदका प्रयोग करना इस बातको निर्विवाद सूचित क्त्व कौमदी' एकहीहों और जंसा ऊपर संकेत किया करता है कि जगतरायने इस प्रन्थको रचा नहीं, था गया है जगतरायके भ्रममे उसका कत्तो समझ रचवाया था और इसके कर्ता कवि काशीदास लिया गया है। यदि यह बात ठोक सिद्ध हाती है थे जिनकी वृत्ति भी कविता करना ही था। तो उक्त पद्मनन्दि पच्चोसो और पागम विलासभी बा. कामताप्रसादने अपने हिसा . के सभवतया जगतरायकृत न होकर काशीदास अथवा संक्षिप्त इतिहास' पृ० १७. पर किन्हीं जगतराय . जगतरामके किसी अन्य (राम या रामदास नामक) अथवा जगतराम द्वारा सं० १७.१ में पद्यनन्दि आश्रित कविकी रचनाएं हो सकती हैं। पच्चीसी छन्दबद्ध रची जानेका उल्लेख किया है। उपरोक्त काशोदासकृत सम्यक्त्वकौमुदीकी लखभागमविलास और सम्यक्त्व कौमुदी भी उन्हींकी नऊ वाली प्रति किसी भवानीप्रसाद त्रिपाठोने सं. रचनाए बताई हैं। किन्तु जो उनकी कविताके नमूने १६०४ आषाढ़ शुक्न १५ भौमवारको देहलीके का पद दिया है उसमें कविकी छाप 'राम' अथवा अन्तर्गत हिसार पट्ट पर प्रतिष्ठित काष्ठासंघ माथुर. 'रामदास' रूपमें है, यथा गच्छके किसो भट्टारक जी के आदेशसे लिखकर 'रामदास प्रभु जहां मागत हैं, मुक्ति सिखरको राज समाप्त की थी। जमनानगर में मन्दिर को अनिवार्य आवश्यकता। श्री १०५ चल्लक स्वामी निजानन्दजी महाराज चलता रहेगा। अब ऊपरको मंजिल में मन्दिर व भगत सुमेरचन्द जी वणी पब्जाबका दौरा करते बनाना बाको है। जो दानी सज्जन इस इस पुण्य हुए जमनानगर भी पधारे थे वहां की परिस्थत कार्य में सहयोग देना चाहें वे सेक्रेटरी श्री महावीर देखकर अपने विचार प्रगट किए हैं कि जमनानगर दिगम्बर जैन मन्दिर अब्दुल्लापुर, जिला अम्बाला (अब्दुल्लापुर जिला अम्बाला) की जनसमाज को भेज सकते है। नितप्रति देवदर्शन करनेको लालायित है परन्तु यह स्थान ३० पी० रेलवे य. पी. व पंजाब धनके अभावके कारण मन्दिर का काम अधूग की सरहद पर स्थित है इसके अतिरिक्त यहांपर पड़ा हुआ है। जिसके लिए बीस हजार की जमीन शुगर मिल्ज, घीका मिल, कागज की मिले, लकड़ी लाला पन्नालालजी सुन्दरलालजी जैन सुपुत्र लाला की बड़ी मन्डी व बर्तनों के कारखानों के कारण बलदेवदासजी जगाधरी वालों ने दान कर दी थी बाहर मे साधमो बन्धु भगवत् दर्शनसे वंचित रहते जिसमें नीचे की मंजिल में नौ दुकानें भी उक्त हैं इसलिए इस कार्यकी पूर्ति शीघ्र ही हानेकी महानुभावों की तरफसे बन कर तैयार हो चुकी है। परम आवश्यकता है। उनके किराए की भामदनीसे एक जैन पाठशाला दयासिन्धु भगत जयचन्द और मन्दिर जी में पूजा प्रक्षाल का खचे बराबर सहारनपुर
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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