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किरण []
मौय साम्रज्यका संक्षिप्त इतिहास
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अपने मतको हिंसा करता है।'
कारीगरीका अनुपम नमूना है और उमपर कांच अशोक कहता है कि इसलिये समवाय अच्छा जैसी चमकती पालिस है। लेख की चौथी और है। कैसा समवाय ? कि अन्यमतोंके धर्म सुनो पाँचवी पंक्तिमें विभिन्न मतोंके लिये धर्ममहामात्र
और सेवन करो। मेरी तो यह इच्छा है कि सभी नामक अधिकारी नियुक्त किये जानेका उल्लेख है। मतवाले बहुश्रुत हों और कल्याणकारी हों।' मैं निर्मन्थों (जैन साधुओं) के लिये भी अशोकने एक दान और पूजाको उतना नहीं मानता जितना कि धर्ममहामात्रकी नियम्ति की थी। धर्ममहामात्रोंके सभी मतोंकी अधिकसे अधिक सारवद्धिकी कामना संबंधमे अशोकने लिखा है कि मेरे धर्ममहामात्र भो करता हूँ, यह समाचार उमने सनी मत वालों तक सन्यासियों और गृहस्थोंके बहुत प्रकारके कार्यो पहुँचा दिया था। और इसी उद्देश्यको लेकर उसने और अनुग्रह करनेमें नियुक्त है। मैंने उन्हें मंघमें, धर्ममहामात्र स्त्रो-अध्यक्ष-महामात्र ओर वजभूमक ब्राह्मणांमे, आजीविकोंमे, निग्रन्थोंमे तथा विभिन्न तथा अन्य अधिकारियों की नियुक्ति की थी जिसका सम्प्रदायांमे नियुक्त किया है। संघसे अशोकका फल यह हुआ कि स्वमतकी वृद्धि होनेके साथ संकेत बौद्धसंघकी ओर है। जो भमण नहीं थे वे धर्मकी वृद्धि भी हुई।
ब्राह्मण कहलाते थे। आजीविक उस समयका एक निर्ग्रन्थोंके लिये धर्ममहामात्रकी नियुक्ति प्रमुख सम्प्रदाय था। इसके साधु दिगम्बर जैन (संयह लेख क्रमांक २)
साधुओं जैसी हो क्रियाएँ और आचार पालते थे दिल्ली स्थित सप्तम स्तंभ लेख में अशोक अपने तथा उन्हीं जैसे नग्न रहते थे। इस सम्प्रदायका किये कार्योका लेखा उपस्थित करता है। यह स्तंभ आदिसंस्थापक मंखलिपुत्र गाशालक था। जैन
भागमोंमें आजीविय, बौद्धग्रन्थोंमें आजीवक और १. एवं करु प्रात्पवासंडं च पत्यति परपास
वराहमिहिरके वृहत् जातकमें आजीविक या आजीउपकरोति, तदंभथा करोतो प्रात्पपासंदं च बणति
विन्नामस इस सम्प्रदायका उल्लेख मिलता है। परपासढस च पि अपकरोति, योहि कोचि प्रात्पपासंग
दक्षिणके एक उत्कीणेलेखमें आजीवक शब्द पूजयति परपास वा गरहति सवं प्रात्पपासंद
दिगम्बर जैनोंके लिये प्रयक्त हुआ है। अशोक भतिया, किति, प्रात्पपासंड दोपयेम इति, सोच पुन तथा करोतो मात्पपास
और उसके उत्तराधिकारी दशरथने भदन्त आजी
वाढतरं उपहनाति। १२ वां शिलालेख ।
विकोंको गुफाएं दान की थीं। निगंठ या निर्ग्रन्थ २ते समवायो एव साधु, किंतु मंत्रमंत्रस्य चमं सुणारु. जैन साधुओं के लिये कहा गया है। प्राचीन प्रच्चोंच सुसुसेरु च । १२ वा शिलालेख ।
में भगवान महावीरका निगंठ नातपुत्तके नामसे ३ एवं हि देवान पियस इला किंति, सबपासा बहन ता उल्लेख मिलता है। अशोकके समयमें जैनसाधु और
चमसु कलाणागमा च असु । १२ वा शिक्षालेख। उनके संघ बड़ी संख्यामें धर्मसाधन करते और ४. बेच तत्र तते प्रसना तेहि वतरवं, देवान पियो नो कराते थे ऐसा इस लेखसे भलीभांति विदित होता
तथा दानं व पूजा व मंत्रते यथा किंति सारवडी अस है। लेखमें अभ्य सम्प्रदायोंके लिये भी धर्म-महामात्र
सर्वपास डान' बहका १२ वा शिलालेखा नियक्त किये जानेका उल्लेख है। वहां मत या १. एताय प्रथाय व्यापता धंम महामाता इथीमासमहामाता
प पचभूमिका च ममे च निकाया, अय' पतस .. हुल्श: साउथ इंडियन इंस्किप्सन्स जिन्द.पू.८८। संयभात्पपासवरि होति धमस दीपना। २. हुश: का... जिद बराबर और नागाणुको १२ शिलालेख।
पहाड़ियों के वेख।