SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 395
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संजदका बहिष्कार (ले० डा० हीरालाल जैन, नागपुर ) [गतकिरण से आगे] सूत्र ६३ में से 'संजद' पद हटाने से सबसे बड़ा कर रहे है, अत एव उनमे साहित्यिक, मैद्धान्तिक व विस्मय मुझे यह हो रहा है कि आखिर तामपत्रों ऐतिहासिक सच्चाई नहीं है। और इस कलंक का द्वारा रक्षा कौनसे आगमकी हुई ? आजसे तोन धीरे धीरे समस्त दिगम्बर साहित्य पर दुष्प्रभाव पड़े as पर्व जब मुझे शोलापुरमें शान्तिसागरजी तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। महाराजके दर्शन हए थे, तब अनेक चर्चाओं में यह भी चर्चा आई थी कि मनुष्यनी व मजद' ___ यहां पर संस्कृत साहित्यक इतिहास का वह आदिकी व्यवस्थामे हमारा भले ही मतभेद हो, प्रसंग याद आता है जब गत शताब्दीमें फ्रान्सक किन्तु तामपत्रोंद्वारा तो मडविद्री में सुरक्षित प्रासंध प्रसिद्ध विद्वान वोल्टेयरके हाथमे यजुर्वेद को एक ताडपत्रारूढ़ आगमकी रक्षा की जा रही है, जाली प्रति पहुच गई । पहले तो उन्होने उसकी खूब अत एव जो पाठ उन ताडपत्रों में उपलब्ध है उसे प्रशंसा की । किन्तु जब यह बात प्रकट हुई कि वह छोडनेका हमे कोई अधिकार नहीं। अन्य चर्चाक प्रति शुद्ध प्राचीन पाठानुसार नहीं है तब पाश्चात्य सम्बन्धमें मत-भेद होने पर भी वहां उपस्थित संसार भरके विद्वानोंमे यह लहर उत्पन्न हुई कि विद्वानोंमे इस सम्बन्धमे कोई मत भेद-नहीं पाया ब्राह्मणों का समस्त साहित्य ही झूठा, जालो और गया था। अनैतिहासिक है। तत्पश्चात हजारों प्रयत्न करने पर भी पश्चिममें यह अविश्वासकी भावना आज __ सबसे बड़े दुःखकी बात तो यह है कि आगम तक भी पर्णतः नहीं मिटाई जा सकी। के परम्परागत पाठमें इस प्रकार अपनी रुचिक अनुसार परिवर्तन करके उन ताम्रपत्रांपर सदेव दिगम्बर समाज और उसके माहित्यके मामर्य के लिये अप्रामाणिकताके कलंकका टीका लगाया को देखते हए हमारे प्राचीनतम व मर्वोपरि प्रमाण जा रहा है। ताम्रपत्रोंकी यदि कोई सार्थकता थी तो आगममें इस प्रकार कुछ लोगों द्वारा अपनी रुचि यह कि वे जीर्ण-शीर्ण ताडपत्रोंके पाठकी चिर- अनुमार पाठ-परिवर्तनकी इस प्रवृत्तिसे उनकी काल तक सुरक्षा कर सकेंगे, और हमे फिर ताड़ भावी प्रतिष्ठाक सम्बन्ध मे बड़ो श का उत्पन्न हो पत्रोंक क्रमशः नष्ट होनेसे उतनी चिन्ता नहीं होगी रही है। केवल यह जानकर कुछ सन्तोष होता है किन्तु विद्वत्ममाज अब यह जान रहा है कि ये ताम्र किभक्तोंकी उस समाज में कोई ऐप विवेकी विद्वान पत्र ताइपत्रोंके पाठकी रक्षा नहीं करते. किन्त भी थे जिन्होंने उक्त प्रवृक्तिका विरोध किया और आज कल के भक्तोंकी रुचि-मात्रका अनुकरण अपने पद से स्तीफा दे दिया।
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy