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________________ भगवान महावीर ( डा० श्री गोपीचंद भागेव, प्रधान मंत्री, पूर्वी पंजाब ) 11.0:1 वीर वे होते हैं जो संसार अन्याय और अज्ञान को मिटाने के लिए अस्त्र शस्त्रों का प्रयोग कर अमर होते हैं; परन्तु जब उनके अस्त्र शस्त्र धीमे पड़ जाते हैं और उनमें शक्ति नहीं रहती जिसके कारण वे विवश हो जाते है, तब महावीर आया करते हैं, वे किमो तलवार से लड़ा नहीं करते, व किसी पर तोर नहीं छोड़ा करते परन्तु प्रपनी तपस्या के तेज से सबको शान्त कर देन है और वह कार्य जा वीरों की प्यासी तलवार पूरा नहीं कर सकती वह इनकी दिव्य मूर्ति किया करती है, उसम शक्ति होती है, धम होता है और धम के कारणोंमें विजय लक्ष्मा लेटा करती है, आज स्वतन्त्र भारत वासी हम धन्य है जिन्हें वीर का नहीं बल्कि महावीर का जन्म दिवस मनाने का अवसर मिला, पूज्य बापूने रक्त हान कान्ति द्वारा भारतके बन्धनोंको काट कर संसार दिखा है कि महावीर के रत्नोंका कितना मूल्य हैं। हिमाके सन्देशवाहक महावीरका जन्म देनेका सौभाग्य सिद्धार्थका प्राप्त हुआ आजम २५४८ वर्ष एव जब कि हिंसाकं अन्धकार और दुख से भरे बादल ओले बरसाकर इस भारत की फुलवारा को बरबाद कर रह थे, उस समय अहिंसा का यज्ञ करने वाला आया और यह फुलवाड़ी बरबाद होने से बच गई ऐसा हुआ ही करता है, आज भी उसका नाटक खेला जा रहा है, जिसके नायक बनने का सौभाग्य पूज्य बापूने पाया और महावीर के रत्नोंकी ज्योति एक बार फिर संसारको दिखा कर उसीमें मिलने वाला निर्वाण पदवी को प्राप्त किया, वे महावीर बने और ये महात्मा । त्याग जीवनका रस है और महावीर अथवा महात्मा बननेके लिए इस रस को पी वीर शनि प्राप्त करना नितान्त आवश्यक है महावीरने घर बार छोडा और त्यागकी पदवी प्राप्तकी १३ वर्ष की घोर तपस्याके बाद जब अपनेको सुधार चुके तो भारतका सुधार करने के लिए उन्होंने पारबेनाथ सम्प्रदायका सुधार किया और जैनमतको इन रत्नोंसे सुसज्जित कर सुधार क्षेत्रोंमें अग्रसर किया इस प्रकार ये महावोरसे महावीर वर्धमान हो गए और ७२ वर्षके उपरान्त इस प्रकार शान्ति के पिपासुओं को प्यासको बुझाते हुये पटना जिले में निर्वाण प्राप्त कर गए। स्वामी महावीर ने हमें तीन अमुल्य रत्न प्रदान किए जिनमें सत्यकी ज्योति थी और विश्वास, ज्ञान और कम क ३ भिन्न भिन्न रंग थे जिनको अपना कर प्रत्येक आदमी निर्वाण प्राप्त कर सकता है जो कि अहिसाके द्वारा मिल सकती हैं सबसे पहिला रत्न सत्य विश्वास है आज इस रत्नको प्राप्त करे और नताओं में विश्वास करें इसका विश्वास प्राप्त करनेके लिए साप्रदायिकता के मलको उतारना होगा जब तक ज्ञानका प्रकाश न होगा तब तक यात्रा सफल नहीं हो सकती ज्ञान भी मचा होना चाहिए, फिर हम प्रकाश 'धव' की सहायता कमकी नौका द्वारा इस सागरको पार कर सकते है कौनमी नोका सच्ची है जो मार्ग के मध्य मे हमे धोका न देगी, यह बोध तभी हो सकता है जब कि ज्ञान सच्चा हो जिससे हम सागरको पार कर सकते है, वह नौका कहीं डूब न जाय इसलिए हम क्षण-क्षण हिंसाके पाप से बचने के लिए अहिसा का पल्ला पकड़ते हैं । हिम पहिला यम है जो कि यज्ञका पहिला मार्ग हैं, अर्थात अहिंसा के बिना कोई सत्य, अस्तेय ( चोरी करना ब्रह्मचये तथा अपारिग्रह- लालच न
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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