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________________ भ्रातृ-वियोग! अपने और वीर सेबामन्दिरके बहुत बड़े प्रेमी श्रीमान् बाबू छोटेलालजी और बाबू नन्दलालजी जैन कलकचा अभी तक मातृ-वियोगके दुःखसे शान्त नहीं हो पाये थे कि ढाई महीनेके भीतरही उनके बड़े भाई गुलजारीलालजीका भी, ५६ वर्षकी अवस्थामें चैतवदि १२ बुधवार वा० १५ फर्वरीको दिनके ११॥ बजे देहावसान होगया! आप कुछ अर्सेसे नमे आदिकी बीमारीके कारण अस्वस्थ चल रहे थे और कई महीने तक बा० छोटेलालजीके साथ जयपुर रहकर इलाज कराते रहे हैं। जयपुरसे कोई एक महीना पहलेही स्वस्थसे होकर कलकत्ता पहुंचे थे कि वहीं कालने उन्हें आ धर दवाया! मरनेसे पहले बा० छोटेलालजीसे मिलकर कुछ कहनेकी उनकी बड़ी इच्छा रहो परन्तु दुर्दैव अथवा प्रबल होनहारके पशपा० छोटेलालजी समय पर पहुँच नहीं सके, जिसका उन्हें बड़ा ही दुःख तथा खेद है। उनके पत्रस मालूम हुआ कि भाई गुलजारीलालजी अन्त समयमें २५ हजार स्याद्वाद महाविद्यालय काशीको दान कर गये हैं और भी कुछ दान उन्होंने किया होगा जिसका हाल अभी तक मालूम नहीं हो पाया । इम दुःखके अवसर पर बाबू साहषान, मृतात्माकी धर्मपत्नी और अन्य कुटुम्बी जनोंके प्रति मेरो तथा बीरसेवामंदिरपरिवारकी हार्दिक समवेदना है । साथही मृतात्माको परलोकमें सुखशान्तिकी प्राप्तिहो ऐसी प्रान्तरिक भावना है। जुगलकिशोर मुख्तार पितृ-वियोग! अनकान्त के प्रेमी पाठक, पटनाक बाबू अनन्तप्रसादजी जैन बी० एस-सी. इंजिनियरके शुभ नामसे भने प्रकार परिचित हैं। श्राप कुछ अर्सेसे अनेकान्तमें बराबर लिखते रहते हैं और अच्छे निर्भीक या खदार विचारके ममाजसेवी विद्वान् है। हाल में आपके पत्र यह मालूम करके बड़ा अफसोस हमा कि आपके पू. पिताजीका देहान्त २७ फर्वरीको दिनके दो बजे छपरा जिला सारनमें अपने बड़े पुत्र मा० जिनवरप्रसाद वकील के पास होगया है ! देहावमानके समय आपकी अवस्था प्रायः ७८ वर्षकी थी। पत्रपरसे यह भी मालूम हुआ कि आप जैन-धर्मके अनन्य श्रद्धालु, प्रगतिशील विचारवाले, पक्क नेशनलिस्ट, उच्च शिक्षाके बहुत बड़े प्रेमी और एक साधु प्रकृतिके सद्गृहस्थ थे। बहुत वर्ष पहले जब कि लघुपुत्र बा• अनन्तप्रसादकी अवस्था दो वर्ष कीही थी, आपकी पत्नीका देहान्त होगया था और आपने पुत्रोंकी हितसाधनाकी दृष्टि से अपना दूसरा विवाह नहीं कराया था। आपका मरण बड़ी शान्तिके साथ 'अहन्त, सिद्ध, सोऽहं' तथा 'शुद्धचिद्रूपोऽहं' का ध्यान करते हुए हुआ है। इस पितृ-वियोगके अवसर पर बाबू माहबके दुःखमे समवेदना व्यक्त करते हुए हम मृतात्माके लिये परलोक में सुख-शांति की हार्दिक भावना करते हैं। सम्पादक
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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