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________________ २६. अनेकान्त | वषे १० अपरोत्तरा तु या विद्युन्मंदतोया हि सा स्मृता । अर्थ-वायव्यकोणकी विजली थोड़े जलको देनेवाली जानना चाहिए । उदीच्यां साव्ववर्णस्था रूक्षा तु सा तु वर्षति ॥८॥ ___ अर्थ-उत्तर दिशाकी विजली चाहे किसी भी वणकी क्यों न हो; अथवा रूक्ष भो हो तो भी वर्षा को करने वाली जानना चाहिये ।।८।। या तु पूर्वोत्तग विद्य द् दक्षिणा च पलायते । चरत्यय च तिर्यस्था सापि श्वेता जलावहा ॥४॥ अर्थ-ईशान कोणकी विजली तिरछी (टेडी) होकर पर्वमें गमन करे और दक्षिणमें जाकर छिप जाय तथा वह श्वेन रंगकी हो तो वह जल की देनेवाली है ॥३॥ तथैवोयमधो वापि स्निग्धा रश्मिमती भृशम् । सघोषा चाप्यघोषा वा दिन सर्वासु वर्षति ॥१०॥ अर्थ-तथा ऊपर अथवा नीचे जानेवालो चिकनी बहुत रश्मि (किरण) वाली शब्द करतो हुई अथवा शब्द न करतो हुई विजली सवत्र वर्षाको करनेवाली जानना ॥१०॥ इस प्रकार दिशापरसे फल बताया। अब षटऋतुपरसे फल बताते हैंशिशिरे चापि वर्ष ति रक्ता पीताश्च विद्य तः । नीला श्वेता वसन्ते न वर्षन्ति कदाचन ॥११॥ अर्थ-यदि शिशिर ऋतु (माघ-फाल्गुन) में नील और पीले रंगको विजली हो तो वर्षा होती है और वसन्त (चैत्र-वैशाख) में नोल और श्वेत रंगकी विजली हो तो कदापि वषो नहीं होती ॥१शा हरिता मधुवर्णाश्च ग्रीष्मे रूक्षाश्च निश्चलाः । भवन्ति ताम्रगौराश्च वर्षास्वपि निरोधकाः ॥१२॥ अर्थ--हरे रंगकी, मधुके रंगकी, रूक्ष और स्थिर विजली ग्रीष्म ऋतु (ज्येष्ठ-आषाढ़) में चमके तो वर्षा नहीं होती तथा इसी तरह वर्षा ऋतु (श्रावण- भादव ) में ताम्रवण की विजली चमके तो वह भी वर्षाको रोकनेवाली है॥१२॥ सारदीनाभिवषन्ति नीला वर्षाश्च विद्यु तः । हेमन्ते श्याम-ताम्राऽस्तु तडितो निर्जला स्मृताः १३ ___ अर्थ-शरद ऋतु (आश्विन-कार्तिकी में नील और वर्षा नामकी विजली चमके तो वर्षा नहीं होती है और हेमन्त (अगहन-पौष) ऋतुमें यदि श्याम और ताम्रवर्णकी बिजली हो तो जल नहीं वरसता ॥१३॥ स्तारक्त'षु चानेषु हरिताहरितेषु च । नीलानीलेषु वा स्निग्धा वर्षन्तेऽनिष्टयोनिषु ॥१४॥ अर्थ-रक्त अथवा अरक्त, हरित अथवा अहरित और नील अथवा अनील बादलोंमें यदि स्निग्धा विजली चमकती है यद्यपि वे बादल अनिष्टसूचक भी हों तो भी अवश्य वर्षा होती है ।।१४।। अथ नीलाश्च पीताश्च रक्ताः श्वेताश्च विद्यु तः। एतां श्वेतां पतत्यूद निद्य दुदकसंप्लवाम्॥१॥ अर्थ-अब विजलीके वर्ण कहते हैं कि नील, पीत, रक्त और श्वेत वर्णकी विलियोंमेंस श्वेत रंग की विजली ऊपर गिरे तो पृथ्वीपर जल ही जल हो जाता है ॥१॥ वैश्वानरपथे' विद्यु व श्वेता रूक्षा च विद्य तः । विद्यात्तदाऽशनिष रत्तायामग्नितो भयम् ॥१६॥ अर्थ-वैश्वानर पथ (अग्निकोण दिशा) में प्रकट हुई श्वेता और रूक्षा नामकी विजलियाँ विद्य त कही जाती है । ये तथा अशनि वृष्टिको करती है । रक्त वणकी विजली अग्निका भय करती है ॥१६।। यदा श्वेता च वृक्षस्य विद्यु छिरशि संचरेत् । अथवा ग्रहयोर्मध्ये वातवर्ष सजेन्महत् ॥१७॥
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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