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________________ किरण ७८ । भद्रबाहु निमित्तशास्त्र २६३ हरितो नीलपर्यन्तः परिवेषा यदा भवेत् । आदित्यं यदि वा सोमे राजव्यसनमादिशेत् ॥ १६ ॥ अर्थ-यदि हरे रंग से लेकर नीले रंग तक सूय अथवा चन्द्रमाका मण्डल हो तो राजाको कष्ट होता है ||१६|| दिवाकरं बहुविधः परिवेषो रुणद्धि हि । भिद्यते बहुधा वापि गवां मरणमादिशेत् ॥ २०॥ अध-- यदि नाना वणवाला सूर्यका मण्डल हो अथवा खण्ड-खण्ड अनेक प्रकारका हो और वह सूर्य को ढक ले तो गायों का मरण सूचित करता ||२०|| sad शीघ्र ं दिशश्चैवाभिवर्धते । गवां विलोपमपि च तस्य राष्ट्रस्य निर्दिशेत् ॥ २१ ॥ अर्थ - जिम दिशामे सूर्य परिवेष शीघ्र हटे और जिस दिशा में बढ़ता जाय उस दिशा के राष्ट्रकी गायोंका लोप होता है अर्थात् जिस दिशा की तरफ बढ़ े उस दिशाके देशकी गायोंका नाश होता है ॥ २५ ॥ शुमाली यदा तु स्यात्परिवेषः समन्ततः । तदा सपुर. राष्ट्रस्य देशस्य रुजमादिशेत् ॥ २२ ॥ अथ सूर्यका परिवेष यदि सूर्यके चौतरफा हो ता नगर, राष्ट्र और देश आदिके मनुष्य महामारी में पीडित होते है || २३॥ ग्रह-नक्षत्र-चन्द्राणां परिशेषः प्रगृह्यते । अभीच्णं यत्र वर्तेत तं देशं परिवज येत् ||२३|| अर्थ - प्रह' ( सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध. गुरु, शुक्र, शनि), नक्षत्र २ (२८ आश्विनि आदि) और चन्द्रमाका निरन्तर परिवेष बना रहे और वह इस रूप में ग्रहण हो तो उस देशका परित्याग कर देना चाहिये, क्योंकि वहाँ शीघ्रतासे भय उपस्थित होता है || २३ ॥ परिवेषा विरुद्धेषु नक्षत्रेषु ग्रहेषु च । कालेषु वृष्टिर्विज्ञ या भयमन्यत्र निर्दिशेत् ||२४|| अर्थ- वर्षाकालमे यदि यहीं और नक्षत्रोंके जिस दिशा में परिवेष हों तो वहां वृष्टि होती है और अन्य स्थान में भय होता है अथवा दूसरे प्रकारका भय सूचित होता है ||२४|| शक्तिर्यदा गच्छेत्तां दिशं त्वभियोजयेत् । रिक्ता वा विपुला चाग्रे जयं कुर्वीत शाश्वतम् ||२५|| अर्थ - खाली अथवा भरी हुई शक्ति (बादल) जिस दिशा की ओर अम गमन करे तो उस दिशामें शाश्वत जय होती है ||२५|| यदा शक्तिश्येत परिवेष- समन्विता । नागरान् यायिनो हन्युस्तदा यत्नेन संयुगे ||२६|| अर्थ - यदि परिवेष सहित अभ्रशक्ति (बादल) दिखे तो चढ़कर आनेवाले शत्रुद्वारा नगरवासियोंका युद्ध में नाश होता है, अतः यत्नसे रक्षा करनी चाहिये ||२६|| नानारूपो यदा दण्ड: परिवेषं प्रमति । नागरास्तत्र वद्ध्यन्ते यायिनां नात्र संशयः ||२७|| 8 अर्थ - यदि अनेक वर्णवाला दंड परिवेषको मर्दन करे तो चढ़कर आनेवाले शत्रुद्वारा नगरजनों (थाइयों) का नाश होता है, इसमें संशय नहीं है ||२७|| त्रिकोटिर्यदि दृश्येत परिवेषः कथञ्चन । त्रिभागशस्त्रबद्धोऽसाविति निर्ग्रन्थशासने ||२८|| अर्थ - तीन कोनेवाला परिवेष कदाचित् देखने में आवे तो युद्ध में तीन भाग सेना शस्त्रसे मारी जाती है ऐसा निग्रन्थ शासन में बतलाया गया है | रक्षा १,२ इसका मतलब यह नहीं है कि सबके मण्डल एक ही साथ हों श्रर्थात् किसी भी ग्रह-नक्षत्रके मण्डल होते रहें | अनु० । ३ दंडाकार - दण्डाकृति होकर परिवेषका मर्दन करे |
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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