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________________ भगवान महावीर, जैनधर्म और भारत ( लेखक-श्री. लोकपाल) जैनधर्मक बारेमें लोगोंकी जानकारी बहुत ही सभी पुरातत्ववेत्ता एवं विशेषज्ञ भी इसीकी स्ट 'कम है-और-जो कछ थोड़ी बहत है भी वह ऊपरी लगात है एवं उनकी जा.भी धारणाएं या निर्णय 'और विकृत है। औरोंकी कौन के जैन पंडितों और होते है व इमी विश्वासपर आधारित होते है। विद्वानोंकी भी हालत इम तरफ संतोषजनक .इतना ही नहीं, इस इतिहासने हमारे पूर्व पुरुखाओंको नहीं है। .इस तरह करके दिखलाया कि हमें उनकी सत्ताम ही 'भारतके धार्मिक एवं सामाजिक जीवन, रीति- मंदह हागया और उससे भी अधिक खराबी यह व्यवहार तथा मान्यताओंपर विदेशी शासन-सत्ताका हुइकि हमन अलग-अलग महापुरुषांको अलग-अलग बड़ा ही बुरा प्रभाव पड़ा है। आज जो हम धार्मिक जातियां, धर्मा, सम्प्रदायों या गुटोंका मानकर उनका हठाग्रह, दुराग्रह और आपसी विद्वेष-भावना चांगें भी विरोध किया और खूब किया। हराएकने इम तरफ देखते है। इसको बनाए रखने और बढ़ात रहनेमे तरह इन महापुरुपाको दूसरका समझकर खूब ही 'और कहीं कहीं नया पैदा करनेम इम विदेशी मत्ता- गालिया दी और धामिक विद्वेष, विरोध एवं रगड़ का कम हाथ नहीं रहा है। हम, हमारे प्रवजाको भगढ़ बढ़ा लिए । इतना तक.भी रहता तब भी हमारी मैकड़ों बस एक तरहका नकली इतिवाम अवनक हालत पश्चिमीय दशांकी तुलनामे अधिक . गिरी.न पढाया जाता रष्ट्रा-वही अब भी जारी है.भारत हाती, क्याक वजा तो इसस भी बढकर मनाक 'कहनको स्वतंत्र तो हा पर यह हानिकारक जाली दामिक अत्याचार हुए। पर हमने जो सबसे बड़ा पुरातत्व हमारे बीचल अबलक नती हटा। खराब काम-इस विदेशी सत्ताद्वारा प्रचालित इतिइम इतिहासका निमाण-इसकी आख्यायिका. हासक कारण उत्पन्न बुद्धि-किया वह यह कि हर एक धर्मधालान दूसरे धमप्रचारक , महापषांकी • एवं लिखनेका हुग इस तरहका रखा गया कि हम । प्राचीनताको भी अवीकार किया और हर तरहस अपनी असली भारतीय संस्कृतिको एकदम भूल बैठे सहन करत रहे । नतीजा यह हुयाकि हमारी महत्ता " और धीरे धीरे हमने एक नकली और पाखण दिन-ब-दिन गिरती गई और हमारा बौद्धिक एवं रीतिनीति एवं व्यवहार अपना लिया और उसकी ., मानसिक ह्रास भी साथ ही साथ होता गया। आज हम भारतीय या हिन्दू संस्कृति समझे और " पकडे बँट है। इस इतिहामने और भी यह किया कि पहले भी भारतमें अति प्राचीनकालमे ही अनकों हमारे दिमागमे यह बात भरदी कि हम भारतीय धर्म एवं मत-मतांतर थे-और आपमी विरोध या आदिम आय नहीं बल्कि कहीं मध्यएशियाम पाकर वैमनस्य उतना नही होनमें जब भी जो कोई वसनेवाले है- नाकि हम अपनेको प्राचीन और · चाला दुसरे धमकी शिक्षाओम प्रभावित होकर मभ्यतापूर्ण न समझकर यही समभले रहे कि हमार अपना धम अदल लेता था। इस तरह हर समझदार पूर्वज जंगली थे और बादमे सभ्य हए । या बाहरसे या पढ़ा लिम्बा व्यक्ति अधिक-से-अधिक धर्मोकी वातों' दृमरोने प्रावर सभ्य बनाया। यह बात आज हमारे को समझने एवं ठीक ठीक जाननेकी चेष्टा करताथा- अंदर इतनी कूट-फूट कर भरदी गई है कि हमारे जिमसं. ज्ञानकी. वृद्धि के साथ ही साथ बौद्धिक एवं
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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