SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 315
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त | वष १० एवं अशान्तिके थे, इसीलिये उस बीचमें कोई विशेष पहले होनेवाले राष्ट्रकूट नरेशोंक अभिलेखोंमें साहित्यिक कार्य किया जाना कठिन दीख पड़ता है, भी उनके अपने लिये धवल शब्द का प्रयोग हुश्रा संभव है उस बीचमें वे स्वयं जैनेतर ब्राह्मण बौद्धा- प्रतीत नहीं होता । ध्रवके समयसे ही गविरुद दिक विद्वानोंके साथ शास्त्रार्थ एवं वादविवादमे रूप में इसकी प्रवृत्ति हुई प्रतीत होती है । अतः यह व्यस्त रहे हों। माननेका प्रलोभन होता है कि विद्यानन्दका 'शशधर' इसी प्रसंगमें, अष्ट सहस्रोकी रचनातिथिको पद भी श्लिष्टरूपमे व धारावर्षकी ओर ही संकेत और अधिक सीमित एव सनिश्चित करने के लिये कर रहा है जो कि उस ममय गंगराज्यका विजेता उसकी अन्त्य प्रशस्तिके प्रथम पद्यकी प्रथम पंक्ति एवं अधिराज था। एक तत्कालीन महापराक्रमी का 'शशधर' शब्द महत्वपूर्ण है जिसपर प्रकाश विजेता तथा जैनधमभक्त मम्राटको उमी काल में डालना शेष है । स्वयं ध्र व धारावर्षकी भोरम्यूजियम उसके लिये सर्व प्रचलित एवं जनतामें प्रकाशित प्लेट' (ताम्रपत्र) जो शक ७०२ अथात सन् ७२० ई. विशिष्ट विशेषणस सचित करना कुछ भी असंगत की है और जो न केवल उसका उस वर्ष(धवलाटीका नहीं है । ध्रुव, गोविन्द, अमोघवर्ष आदि जैनधम की समाप्तिके समय) राष्ट्रकूटसाम्राज्यका निविवाद क भक्त और जैनाचार्यों एवं विद्वानोंके आश्रयदाता एकाधिपति होना प्रमाणित करती है बल्कि डा. थे इसमें तो कोई सन्देह ही नहीं है। ध्र के लिये अल्तेकरके शब्दोंमें हरिवंश (७८३) में उल्लिखित धवल शब्दके बहुल प्रचलित प्रयोगके कारण ही और दक्षिण देशाधिपति श्रीवल्लभका भी ध्र वके साथ क्योंकि वह शब्द साथ हो यश, कीत्ति जैसे सुन्दर निश्चित रूपसे भिन्नत्व सिद्ध करती है. उसके भावके विशेषणरूपमे ही प्रयुक्त होता था. स्वामी पद्य २३ में ध्रवके अपने लिए 'शशधरकनिकनिभं वोरसनने भी अपने ग्रन्थोंके नाम धवल, जयधवल यस्य यशः'शब्दोंका प्रयोग हुआ है. और अमोघवष आदि रक्खे, उसमें क्या आश्चर्य के तीन संजान ताम्रपत्रोंमेसे प्रथम ताम्रपत्रके १५मे अतः विद्यानन्दकी अष्टसहस्री ध्र वकी मृत्युतिथि पद्यमें भी ध्र वर्क लिए 'शशिकरधवला यस्य कत्तिः ७३ के पूर्व ही अथोत् ७६०-६३ के बीच किमी ममय समन्तात'...शब्दोंका प्रयोग हुआ है । उक्त सजान पूर्ण हुई । उम समय कुमारसेनका प्रत्यक्ष साहाय्य ताम्रपत्रों में अमोघवर्षे आदि अन्य किसी भी नरश भी उन्हें प्राप्त होना पूर्णतया संभव है । श्लोकवार्तिक के लिए 'धवल' शब्दका प्रयोग नहीं हुआ । ध्रुवमे के पश्चात ६-७ वषका समय उसके लिये पर्याप्त भी . Bhor huscumulite pe oy dhuana ह। और इमप्रकार उमम वारसन । है। और इमप्रकार उममें वीरसन स्वामीके स्वर्गस्थ E.IXXII-182., होनका स्पष्ट उल्लेख उनकी मृत्युतिथि सम्बन्धी मेरे २ R. T. P. 421. निष्कर्ष ६० ई० की आश्चर्यजनक रूपमें प्रबल पुष्टि ३E. I-IVIII 2026 P. 095ig करता है। लखनऊ, ता० १३-१२-४६ ।
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy