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________________ २५० अनेकान्त [वर्ष १ अन्याय गलतो या शोषण अविरोधित होनेसे कोई नहीं बढ़ सकता-ठोकरें खाकर गिर जायगा आगे २ बढ़ते जाते हैं। यदि कोई बालक गलती या दूसरोंसे टकरा जायगा । संसारमें हर जगह हर करता है तो गुरुजनोंका यह कर्तव्य है कि उसे तरहकी चीजें और लोग है-आदर्श या लक्ष्य तक समझा-बुझाकर (यदि वह उस योग्य हो तो) या पहुंचना है इस बातका ध्यान रखते हुये सांसारिक फुसलाकर अथवा और दूसरे तरीकोंसे भी उसे रोकें सुविधाओं, व्यवधानों और साधनोंका समुचित, नहीं तो नतीजा यह होता है कि वह आगे आगे उन बुद्धिपूर्ण, एवं व्यावहारिक आश्रय अथवा सहारा गलतियोंको ही ठाक समझना हुआ उनका अभ्यस्त लेकर ही हम यहां आगे बढ़ सकते हैं और सफलता या आदी हो जाता है। फिर बादमें शमन या दमन हासिल कर सकते हैं। जरूरत, शक्ति एवं साधनके करना भी कठिन बन जाता है। और वही फिर मुताबिक ही अपनी रीति-नीति और आचार-व्यवसमयके साथ पीढ़ियोंमें रूढिमें परिवर्तित होकर हार रखना उत्तम फल देनेवाला होता है। अकड़समाज एवं धममें स्थान पालेता है। आज भारतीय लता है । आज भारताय पन्थी या अहंकार तो अंधा बनानेवाला और हिंसा श्री या आई संस्कृतियाँ ही क्यों सारा संसार ही इसीका शिकार त्मक है। अहिंसाका पूर्ण व्यावहारिक पालन ही हो रहा है और यह हिंसा अहिंसाका ठीक भान सबसे ऊचे ध्येय तक किसीको ले जा सकता है। या निश्चय न होनेके कारण ही है। हॉ, तो एक हिंसामय कार्यको, अन्याय या आदर्श और व्यवहारमें आसमान-जमीनका __ अनीतिको चुपचाप निविरोध स्वीकार कर लेना . अंतर है। लोग अपनी भावुकतामें या जोशम या हिंसाकी वृद्धि तो करना ही है साथ ही साथ ऐसा अहंकारमें जानबूझकर या अनजानमें ही इस विभेद करनेवालेको और अधिक खराब करने में सहायक को भूल जाते है-फिर गलतियां भी करते हैं और . है। जिसके अनिष्टकी आशंकास हम किसी ऐसी उनके फलस्वरूप होने या मिलनेवाले बुरे नतीजोंके । । अनीतिको चुपचाप बर्दाश्त कर लेते हैं सचमुच हम लिए एक दूसरेको दोष देते है या झगड़ते रहते है। अनजानमें उसकी ही बड़ी भारी हानि करते हैं और आदर्श ऊचासे ऊंचा रखना हमें ऊंचास ऊंचा विस्तृत या मष्टिरूपमें संसारका भी अकल्याण चढ़ने, बढ़ने या उन्नति करनेकी तरफ प्रोत्साहन देता करते है और अनर्थ जो इससे आगेके लिए अपने है और उस पर ध्यान रखते हुए हम सचमुच आगे आगे बढ़ते-चढ़ते चले जाते हैं। जिसका कोई लिए और दूसरे सभीके लिए होता है या होजाता है आदर्श हो नहीं-कोई दिशा हो नहीं वह कहां और वह अलग ही है। अतः अन्याय, अनीति, अनै. किधर जायगा या भटकता ही रह जायगा कहना तिकता या ऐसा कुछ भी जहाँ होता हो या होनेकी बड़ा कठिन है । इसी लिए एक आदर्श यो लक्ष्यका संभाबना हो उसका हर तरहस सक्रिय विरोध होना उत्तरोत्तर उन्नतिके लिए परम आवश्यक है। करना हो अहिंसाका सञ्चा पालन है। यदि ऐसा जैसा या जितना उंचा, भव्य और अच्छा श्रादश करने में अन्यायी या अनीतिकत्तो (the evil doer या लक्ष्य होगा वैसा ही उतना ही या उसी मुताबिक कोई भी व्यक्ति, समाज या समुदाय संसारमे अग्र- और तकलीफ भी पहुँचे तो स्वयं उसके कल्याणके सर होगा। जिसका ध्येय ही होगा दिल्लीसे पटना लिए और लोकहितके लिए ऐसा करना अहिंसा तक पहुंचनेका वह कलकत्ते तक कैसे पहुंच सकता ब्रतधारीका कतव्य है। हाँ, ऐसा करने में अन्यायीके है । यह एक छोटा-सा उदाहरण है। नोवनके उद्धार, कल्याण एवं भलाईकी कामना ही सवंदा लक्ष्य, मागे या संग्राममें भी यही बात पूर्ण तौरसे ध्यानमें रखना इष्ट और प्राश होना चाहिये । अन्यालागू है । हाँ, कोरा आदर्शवादी बनकर भी आगे यीके विनाशकी कामना मात्र ही हिंसा है । पर
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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