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________________ अनेकान्तरस-लहरो मुख्तार श्रीजगलकिशोरजीकी लिखी हुई यह सुन्दर पुस्तक हाल ही प्रकाशित हुई है। इसमें सत्य के प्राणस्वरूप अनेकान्त जैसे गंभीर विषयको ऐसे मनोरंजक ढंगसे समझाया गया है जिससे बच्चे तक भी उसके मर्मको आसानोसे समझ सकें और उन्हें सत्यको परखनेकी कसौटी मिल जाय, वह कठिन दुर्बोध एवं नीरस विषय न रहकर सुगम सुखबोर तथा रसीला विषय बना दिया गया है-बातकी बातमें समझा जा सकता है और जनसाधारण सहजमें ही उसके माधारपर तत्त्वज्ञानमें प्रगति करने. प्राप्तज्ञानमें समीचीनता लाने, विराधको मिटाने तथा लोक-व्यवहारमें सुधार करनेके साथ साथ अनेकान्तको जीवनका प्रधान अंग बनाकर सख-शान्तिका अनभव करनेमे समथे हो सकते हैं। यह पुस्तक विद्यार्थियोंके लिये बड़े कामकी चीज है, जिन्हें लक्ष्यमें रखकर ही पुस्तकके अन्तमें ।। पृष्ठकी उपयोगी प्रश्नावली लगाई गई है। इसका प्रचार सभी विद्यासंस्थानों एवं घरघरमें पाठ्यपुस्तक, ऐच्छिक विषयको पुस्तक तथा इनामापुस्तक आदिके रूपमें हाना चाहिये और सभी लायब्ररियों-पुस्तकालय अथवा रीडिगरूमोंमें वह रक्खी जानी चाहिये । इस प्रचारको दृष्टिसे ही पुस्तकका अल्प मूल्य चार आने रक्खा गया है। इतने पर भो जो सज्जन विद्या-संस्थाओं मादिमें प्रचार के लिये कमसे कम ५० पुस्तक एकसाथ मंगाएंगे उन्हें २५) की जगह २०) सैकड़ाके हिसाबसे पुस्तकें दाजावेंगी। दानियोंके लिये शुभ अवसर भोबिधानन्द भाचार्यकी भाप्तपरीक्षा और उसकी स्वोपन संस्कृत टीका हिंदीभाषा-भाषियोंके लिये अभी तक दुर्लभ और दुर्गम बनी हुई थी। वोरसेवामन्दिरने हालमें इन दोनोंको हिन्दी अनुवादादिके साथ प्रकाशित करके उनकी प्राप्ति और उनके झानाजेन करनेका मार्ग सबके लिये सुगम कर दिया है। इस प्रन्यमें बातों को परीक्षा द्वारा ईश्वर-विषयका बड़ा हो सुन्दर मरम और सजीव विवेचन किया गया है और वह फैले हुए ईश्वरविषयक अज्ञानको दूर करने में बड़ा ही समय है। साथ ही दर्शनशास्त्रकी अनेक गुत्थियोंको भी इसमें खूब खोला गया है। इससे यह ग्रन्थ बहुत बड़े प्रचारकी आवश्यकता रखता है। सभी विद्यालयों-कालिजों, लायरियों और शास्त्रभण्डारों में इसके पहुँचनेकी जहां जरूरत है वहां यह विद्या-ज्यसनी उदार विचारके जैनतर विद्वानोंको भेंट भी किया जाना चाहिये, जिससे उन तक इस प्रन्थको सहज गति हो सके औरवे इस महान् प्रन्थरस्नसे यथेष्ट लाभ उठानेमें समर्थ होसके । इसके लिये कुछ दानी महानुभवों को शोघही आगे आना चाहिये और कमसेकम दस दस प्रतियोंका एक एक सेट खरीदकर अपनी वरफसे उन संस्थाओं तथा विद्वानोंको यह प्रन्थ भेंट करना चाहिये। ऐसे दानी महाशयोंकी सविधाके लिये वोरसेवामन्दिरने कुछ समयके लिए १० प्रतियां ८०) की जगह ६०) में देनेका निश्चय किया है अतः जिन्हेंइस दानके शुभ अवसरसे लाभ लेना हो उन्हें पूरा अथवा आधा मूल्य पेशगी भेजकर और निकटवर्ती रेल्वे स्टेशनके पतेसे सूचित करके प्रन्थोंका पार्सल मंगा लेना चाहिये अथवा जहाँ जहाँ भिजवाना हो वहाँ के पते भेजकर बीरसेवामन्दिर के द्वारा ही भिजवानेका कार्य सम्पन्न करना चाहिये। मैनेजर 'वीरसेवामन्दिर' प्रन्थमाला ७/३३ दरियागंज, देहली
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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