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________________ अनेकान्त [वर्ष १० जैनधर्मका बड़ा प्रचारक नरेश हुआ है जो श्राचार्य कदाग्रह न रखते हुए श्रमणसंस्कृतिका प्रचार करना हेमचन्द्रका शिष्य था और जिसने उनकी प्रेरणासे गुज- और साधारण जनतामें सीधी-सादी भाषामें धर्म रातमें जैनधर्मका बड़ा भारी प्रचार किया था। लेख- और संस्कृतिका रहस्य बताना । उद्देश्य उत्तम है। कने इसे सम्राट अशोक जैसा प्रभावक तथा प्रतापी इसके लिये हम सहयोगीका अभिवादन करते हैं नरेश बतलाया है। पुस्तक सुन्दर तथा इतिहासप्रे और पाठकोंसे उसे मंगानेकी प्रेरणा करते हैं। मियोंके कामकी चीज है। ८. वीर इण्डिया-साप्ताहिक पत्र, सम्पा० ५. गजरातका जैनधर्म-लेखक तथा प्रका- डा० नन्दकिशोर जैन, आर० एस०एम०एफ० तथा शक उपयुक्त ही। मूल्य ॥)। ए. पी. जैन बी० ए०, वीर इण्डिया कार्यालय, लेखकने इसमें बतलाया है कि गुजरातमें जैनों नयाबजार देहली । वार्षिक मूल्य ५) का कैसा और कितना प्रभाव रहा है और जैनधर्म यह पत्र गत अक्तूवरमे निकलना शुरू हुआ वहाँके नगर-नगर तथा गाँव-गाँव में सर्वाधिक व्याप्त है। अभी उसके दो अंक निकले हैं । पत्रका उद्देश्य रहा है। पुस्तक बड़ी ही अच्छी और प्रचार योग्य है। मानवधर्म प्रचार और भारतभरमें जैनसमाजका ६.ज्ञानोदय-मासिक पत्र, सम्पादक मुनि संगठन आदिका है । भावना है वह इसमें सफल हो कान्तिसागर, पं० फूलचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री, प्रो० . है. रिपोर्ट-श्रीपार्श्वनाथ दि० जैनमन्दिर महेन्द्रकुमार न्यायाचाय । प्रकाशक भारतीयज्ञान- और धर्मशाला लालपुरा इटावाकी विक्रमसंवत पीठ काशी । वार्षिक मूल्य ६), एक प्रतिका ।।। १६१३ से २००५ तक तीन जुदी २ रपोटें, प्रकाशक___यह मासिक पिछले जुलाई माहसे उक्त सम्पाद. श्रीमधुवनदासजी जैन प्रबन्धक उक्त संस्था । कोंके सम्पादकत्वमें उक्त ज्ञानपीठ काशीसे प्रकट हा हालमें हम पूज्य वणीजीके दर्शनार्थ इटावा गये है। अब तक इसके सात अट्ट निकल चके है और थे। सौभाग्यसे बा० सोहनलालजी जैन कलकत्ता, जो मेरे सामने है। इसके प्रायः सभी लेख विद्वत्ता- जो अपनी जन्मभूमि इटावा आये हुए थे और पूज्य पुणे और मनन-योग्य हैं। प्रगतिशोल जनताको वर्णीजीकी परिचयाम रत थे, वहाँ मिल गये । हम खासकर विद्वानोंको जैसे पत्रको जरूरत थी प्रायःवैसा दोनों एक दिनके प्रथम परिचयमें ही इतने घुल-मिल ही यह पत्र है। हमें आशा है इसके द्वारा जैनधर्मका गये मानों वर्षाका हमारा-उनका परिचय हो। आप अच्छा और सच्चे रूपमें सर्वाधिक प्रचार होगा। पुरातत्त्व तथा साहित्य-प्रेमी है। आपने हमें उक्त कुछ विषयों में पत्रसे विचारभेद रखते हए भी हम धमशालाकी तीन रिपोर्ट दी जिनसे उक्त संस्थाके सहयोगीका अभिनन्दन और स्वागत करते है। संस्थापक बा० मुन्नालालजी जैनका धार्मिक प्रेम और पाठकोंको इसके ग्राहक बनकर अपनी मानसिक जनसमाजकी जागृतिकी पवित्र भावना जाननेको भूख मिटानेके लिये उसे अवश्य मंगाना चाहिए। मिलती है । धर्मशालाम लोगों को बड़ा लाभ पहुँचता ७. श्रमण-मासिक पत्र, सम्पादक श्री है। इसके आश्रित एक औषधालय भी है जो पं० इन्द्रचन्द्र शास्त्री, एम० ए०, शास्त्राचार्य आदि। ज्ञानचन्द्रजी वैद्यकी अध्यक्षतामें सुचारु रीत्या प्रकाशक मुनि श्रीकृष्णचन्द्राचार्य जैनाश्रम हिन्द- चल रहा है और जिससे हजारों रोगी लाभ ले रहे यनिवर्सिटी बनारस । है। एक कन्यापाठशाला भो शहरमें उक्त बाबूजीके यह मासिक भो गत नवम्बरसे ही प्रकाशित ट्रस्ट के व्ययसे चल रही है । ऐसी उपयोगी संस्थाएं हुआ है। इसके तीन अङ्क अब तक निकले है जिन्हें समाजके लिये बड़ो आवश्यक है । बा० मुन्नालालजी देखकर श्राशा होती है कि पत्र अपने उद्देश्यों का धर्मप्रेम प्रशंसनीय है। अवश्य सफल होगा। पत्रका उदश्य है साम्प्रदायिक १० जनवरो १६५०, -दरवारीलाल जैन,
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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