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________________ २२२ अनेकान्त [वर्ष १० पण्डितजी बोले-"इतने दर क्यों बैठे। मैंने भोजन करने लगा। कहा-"आप ब्राह्मण और मैं जैनी, आपकी जातिके भैया! आदमी ही तो वह थी । आप अपनी लोग देख लेंगे तो क्या कहेंगे?" पण्डितजीकी स्त्रो भलाई स्वयं सोचो । संज्ञी पश्चन्द्रिय हो । विचार बोली-"बेटा ! इसकी चिन्ता तुम्हें है या मुझे ?" करनेकी शक्ति तुममें है । फिर बिना विचारका कार्य मैं चुप रह गया और पण्डितजी तथा मैं साथ-साथ क्यों करते हो ? राष्ट्रकूट गोविन्द तृतीयका शासन-काल (लेखक-श्री स्थानकवि एम० गोविन्द पै) [अनु०-श्री पं० के० भुजबली शास्त्री] .00000. पुन्नाटसंघीय आचार्य जिनसेनके हरिवशपुरा- सन् ७८३ से ८१४ तक निर्धारित किया गया है। णकी ग्रन्थप्रशस्तिमे लिखा है परन्तु यह ठीक नहीं है। क्योंकि इमो तृतीय "शाकेष्वन्दशतेषु सप्तसु दिशं पंचोत्तरेषत्तराम् | गोविंदके शासनमें १८ वर्ष बीत कर जब १६ वां पातीन्द्रायुधनाम्नि कृष्णनपजे श्रीवल्लभे दक्षिणाम" वर्ष चल रहा था तब "द्वात्रिशदुत्तरेषु सतशतेषु शकवर्षेषु समतीतेषु प्रात्मनः प्रवर्धमानविजयसंवत्सरेष इस श्लोकाधके 'कृष्णनृपजे' का 'इन्द्रायुधनाम्नि' के । अष्टादशसु समतोतेष पोषमासपौर्णमास्यां सोमप्रहणे साथ अवन्य करके और उसका 'शाकेप्वन्दशतषु सोमवारे पुष्यनक्षत्र..." अर्थात् शा० श० ७३२ पौष सप्तसु पंचोत्तरे अथात् श० सं०७०५-३० सन् मास पणिमा सोमवार चन्द्रग्रहणके दिन उत्कीर्ण ७८३-७८४ में नृप कृष्णका पुत्र राजा इन्द्रायुध मणके ताम्रपत्रका काल ठीक ई० सन् ०६ दिमउत्तरमें और राजा श्रीवल्लभ दक्षिणमें राज्य करते त म्बर ता०२४ सोमवार होता है। इस प्रकार ई० समय, इस प्रकार अर्थ करके, ई० सन् ८०४ के सन् ८०६ तृतीय गोविंद के शासनका १६ वां वर्ष लक्ष्मेश्वर (धारवाड) के एक कन्नड-शामन' में स्पष्ट सिद्ध होता है। इमीलिये पर्वोक्त हरिवंशपुराण राष्ट्रकूट-वंशके शासक तृतीय गोविन्दका श्रीवल्लभ ७८३-८४ में दक्षिणमे राज्य शब्दके प्राकृत रूप 'श्रीबल्लह' इस उपनामस करनेवाला श्रीवल्लभ सर्वथा ततीय गोविंद उल्लेख किये जानेके कारण, हरिवंशपुराण-मबंधो नही। उपयुक्त श्लोकमें प्रतिपादित श्रीवल्लभ राष्ट्रकूटका तब वह श्रीवल्लभ दसरा कौन हो सकता है ? तृतीय गोविंद ही है, ऐसा निश्चय कर और इस पर्वोक्त श्लोकके 'कृष्णनृपजे' को उपर कहे हुए मुताबिक श्लोकके कथनानुसार यह ई० सन ७८३-७८४ इन्द्रायुधनाम्नि' के माथ अन्वय न करके 'श्रीवल्लभे' में राष्टकटके कणाटकके सिंहासनपर आरूढ था के साथ अन्वय करने पर शा० श० ७०५ ई० सन् ऐसा विचार कर गोविंद तृतीयका शासनकाल ई० ७.३-८४ मे राजा इन्द्रायुध उत्तरमें, नृप कृष्ण १ जैनसिद्धान्तभास्कर भा. १, किरण २-३ पृष्ठ ७४। ३ Historical Inscriptions of Southern २ Fleet: Kanarese Dynasties (FKD)पृष्ठ India (HISI) पृष्ठ ३१, ३८३, FKD, पृष्ठ ट-वशकशासक तृतीय गाविन्दका श्रीवल्लम में प्रतिपादित इ०सन
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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