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किरण ५]
जीवन और विश्वके परिवर्तनोंका रहस्य
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में बनावट के अतिरिक्त और भी सुन्दर चेष्टाएं एक साथ कम-वेश अपनी शक्तिके अनुसार काम कर श्राकषणको अधिकाधिक तीव्र करती है । इस रहे या प्रभाव डाल रहे है। जिसका प्रभाव जिस 'आकर्षणको ही अध्यात्मकी तरफ मोड़ना उन लोगों दिशामें अधिक जोरदार होगा उधर ही उसकी गति के लिए अधिक आसान होता है जो संसारी माया- होगी। इतना ही नहीं, वर्षों पहलेसे चलती आती मोहमे बेतरह उलझे हुए और मंलग्न है। भक्तिमार्ग हुई बात किसी निमित्त के मिल जानेसे जोर पकड़ की व्यापक सफलता इसी में रही है। अपवाद और लेती है और तब हम उससे प्रभावित होकर उस अनचित प्रयोग तो सभी जगहों या सभी वस्तुओं मुताविक आचरण या कार्य करने लगते हैं। जैसे में साधारण अपूर्ण मानवकी अज्ञानावस्था और कोई मित्र दिल्लीमें बैठा बार-बार अपने पटना स्थित असहायावस्थाके कारण है, होगए है और होते मित्रको दिल्ली आनेके लिये लिखता है-पर वह रहेंगे। इन्हे उचित शिक्षा एवं उपदेश द्वारा सच्च नहीं जा पाता। पर एकाएक ऐसा निमित्त मिला कि मागमे युक्त करना गुरुओंका काम है । सुन्दरताके कोई दूसरा मित्र भी व्यापारके सिलेसिलेमें दिल्ली देखने और ध्यान करनेसे नए-नए भावोंकी सृष्टि जा रहा है और आकर इस पहले श्रादमीसे चलनको होती है उन्हें शुभ्ररूप देना,अध्यात्मकी तरफ मोड़ना कहता है तो उस दूसरे व्यक्तिकी उपस्थिति, भाव, एवं पूज्यताम युनकर वासनाको उनके अन्दर भापणका सहारा मिला। नई वर्गणाए' बनीघुमनसे रोकना प्रावश्यक है। सौन्दर्य इस तरह पुरानीमे परिवर्तन हुआ तथा सपत वर्गणाएँ क्रियामनोहारो होनेसे एकाग्रताके कारण जो अच्छे परि. शील हो उठीं, इस तरह वह भी दिल्लीके लिए वर्तन हमारी वर्गणाओ में उत्पन्न करता है वह रवाना हो जाता है। इससे ग्रहों का प्रभाव कहें मानवको सदा शारीरिक, मानसिक और नैतिक या दृमरे कारणोंका, सब बातें मुलमें एकही हैं। मुख प्रदान करनेवाला एवं उन्नतिकारक है। एकाग्रता
(१०) ध्यान तथा विचारादिका असरएक-तरहकी ही वर्गणाओं को बनने देती है इससे
इसी प्रकार जो कुछ हम ध्यान करते है या मनमें तरह तरह के बन्धो में इस समय छुटकारा मिल
विचार या भावनाए लाते है उनका भी पूरा असर जाता है।
हमारे ऊपर पड़ता है। इतना ही नहीं दसरे लोग (6) सुनन आदिका असर-इसी तरह जो विचार अपने मनमें करते है उनका भी असर हम जो कुछ भी अच्छा या बुरा सुनते है उसका भी हमार उपर पड़ता है । हमसे जो लोग मिलते-मिलाते अमर हमारी वर्गणाओं की बनावटपर तत्काल है या हमारे पास रहते है उनका भी बड़ा भारी पड़ता है। और यदि हमारे अन्दर भी उस समय अमर हमारे ऊपर उनके शरीरसे निकलन वाली उस तरहके भाव या विकार मौजूद रहे तो उनका वर्गणाओंके कारण हमारे अन्दरकी वर्गणाओंमें असर दुगुना या बहुगुना हो जाता है। अच्छे मंगीत परिवर्तनस्वरूप तुरन्त पड़ता है या बराबर पड़ता का असर अच्छा हाता है। बुरी बातें सनकर मनमें रहता है । इसीलिए दुष्प-संगति वजित और साधुविकार उत्पन्न होता है। और यह सब हमारे मंतिकी प्रेरणा मभी लगह मिलती है । दुष्ट यति अन्तरङ्गके वर्गणाओ मे मद्यः परिवर्तनम्वरूप ही कुछ कहे भी नहीं तब भी उसके शरीरसे निकलने वाली होता है।
वर्गणार उमके भावोंके अनुकूल ही होंगी और मनष्यकी सारी गतियां ही वर्गणाओं के प्रभाव उनका असर किमी भी आस-पासमें रहनेवालेके - के अनसार होती है। मनुष्य अकेला तो है नहीं, उस ऊपर निबांध गतिमे पड़ेगा-इस असरको कोई
पर चारो ओरसे अमंख्यो शक्तियां एवं प्रभाव भी व्यक्ति केवल निवृत्ति या चिसकी समता या