SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कवि पद्म सुंदर और दि० श्रावक रायमल्ल [लेखक-श्री अगरचन्द नाहटा ] - ::कवि पद्मसुन्दरका परिचय मैंने अनेकान्तके है। प्रेमीजी द्वारा प्रकाशित प्रशस्तिमें भट्टारक परवर्ष ४ अं०८ में दिया था। उसके पश्चात् अन- म्पराके कुछ नाम छूट गए है एवं कही२ पाठ भी कान्त वर्ष ७ अं०५-६ में श्रीयुत 40 नाथूरामजी अशुद्ध छपा है। उसका भी इम प्रशस्तिम मंशोधन प्रेमी का एक लेख "पं० पद्मसुन्दरके दो ग्रन्थ" शीर्षक हो जाता है एवं पार्श्वनाथचरित्रका रचना काल मी प्रकाशित हुआ' है । इस लेखमें आपने भविष्यदत्त जो अभी तक अज्ञान था, निश्चित हो जाता है। चरित्र और रायमल्लाभ्युदय ग्रन्थ का परिचय दनके लेखन प्रशस्तिसे एक और भी महत्वपूर्ण बातका माथ साथ इन ग्रन्थों का निमाण जिन उदार चरित्र पता चलता है वह यह है कि प्रेमीजीका प्रकाशित विद्याप्रेमी दि० श्रावक अग्रवाल-गोइलगोत्रीय पष्पिका लेग्य मं० १६१५ के फाल्गुन सुदी ७ बुधचौधरी रायमलके अनुरोधमे हुआ है उनक वंशका वारका है उसमें रायमल्लके ३ पुत्रोंका उल्लेख है भी परिचय, जो कि इन ग्रन्थों की प्रशस्तियोंमें पाया और यह प्रशस्ति मं० १६१७ के चैत्र वदी १०की जाता है दिया है। पर प्रेमीजीको प्रात भविष्यदत्त लिग्वित है उसमे आपकं ५ पुत्रोंका उल्लेख है चरित्रकी प्रतिका अंतिम पत्र नहीं मिलनेसे उक्त __ अर्थात् इन २ वर्षामें उनके २ और पुत्र भी हो चुके वंशकी प्रशस्ति अधरी रह गई थी। कुछ दिन हुए थे। इन पत्रों में से प्रथम पुत्रकी पत्नीका ही इमम मुझे तीर्थयात्राके प्रवासमें पालणपुरके श्वेताम्बर उल्लेख है अतः अन्य पत्र अवस्थामे छाट थं, जान जैनभंडारके अवलोकन का मुअवसर प्राप्त हुआ था। पडता है। प्राप्त पप्पिका लेग्बकं अनुमार भट्टारक वहाँ पद्मसुन्दरकी पाश्वनाथ चरित्र की प्रति उप- परंपरा एवं रायमल्लकी वंशपरम्पराकी नालिका इम लब्ध हुई थी, जिसके अंतमें भी वही प्रशस्ति पूर्ण प्राप्त प्रकार जात होती है। हुई है। अतः इस लेखमें उमं प्रकाशित किया जारहा काष्ठा संघ, माथुरान्वय पष्करगण -प्रस्तुत लेखमें आपने पद्मसुन्दरजीक दि. पांडे भट्टारक-उद्धरसन होनेको कल्पना की थी पर यह लिखते समय उन्हें मेरा देवसेन लेख स्मरण नहीं रहा इमीलिय की थी। जब मैंने आपको अपने लेख पढने को सचित किया तो उत्तरमें आपन उसका विमलसेन यशकीति संशोधन कर लिया। धर्मसेन मलयकीति २-इसका रचना काल अभीतक निश्चित नहीं था, fara itaat Indian Literature V.II.P. +9€ भावसेन गुणभद्रमुरि में इसका समय १६२२ लिखा था पर मुझे इसकी १६१६ सहस्रकीति भानुकीर्ति की लिखित प्रति उपलब्ध होनेसे मैंने इसका उल्लेख अपने पूर्व लेखमें किया था पर पालणपुरकी प्रतिसे वह स० १६१५ कुमारसेन निश्चित हो जाता है। गुणकीर्ति
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy