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________________ अनेकान्त विर्ष १० लोग कहते हैं कि अंग्रेजोंने भारतवर्ष ले लिया था, यदि अशान्ति है तो थोड़ासा परिग्रह भी आगे चल अरे, अग्रेजोंने नहीं लिया था । तुम्हारो विषय- कर अधिक परिग्रही बना देता है। एक माधु था। वासनाने लिया था। बेवकूफ पृथ्वीराज यदि एक स्त्री उसके पास गीताको पोथो थो उसे रखने के लिए के पोछे जयचदसे नहीं लड़ता तो मुमलमानोंके उमने एक बिल्ली पाली, बिल्लोको दूध दही मिले पर यहां कैसे जमते ? और मुसलमानों के हाथस इमलिये गाय पालो, गाय की सेवाके लिये एक स्त्री राज्य गया सो उसका कारण भा बाजिद अली आदि रखो.स्त्रोकी आजीविकाके लिये भी परिग्रहका मंचय बादशाहकी विषय-पिपासा ही कारण है। वह करना पड़ा। एक दिन साधु मोचने लगा कि एक अटारीपरसे नीचे उतरता था तो उसे आलम्बनके छोटी-मो गीताकी पोथीके कारण तो मुझे इतना लिये स्त्रियोंके कुचोंकी आवश्यकता थी । काम परिग्रहका संचय करना पड़ा, जो कहीं भागवत पुरुषार्थमें मनुष्य इतने मस्त हो रहे हैं कि कुछ ले लेता, तो न मालूम क्या दशा होती ? कहा कहते ही नहीं बनता । अष्टमी, चतुर्दशी, अपाह्निका भी है :सोलह कारण आदि धार्मिक पर्व है। इनमें मनुष्य गोताकी पोथी लई जिमका इतना ठाट । ब्रह्मचयसे रहे तो उसका शरीर तगड़ा हो। आप जा कहुं लेता भागवत होता बाराबाट ।। विषयसेवन करना चाहते है तो उसके योग्य शरीर मम्यग्दर्शन के अनुकम्पा गणके श्रवण करनेका तो को भी तो बनाना पड़ेगा। एक-एक पुरुषके चार फल होगा जो विपत्तिसं सताये हुए है उन्हें महारा सालमें चार-चार बच्चे पैदा हो जाते है। किसीको दना. यह मनुष्यमात्रका कतव्य है। आस्तिक्यगणका लीवर बढ़ रहा है, किसीको ऑम्व दुःख रही है, अर्थ श्रद्धा और विश्वास है । वह तो आपमें है हो । किसीकी नाक बह रही है। फिर भी पदा किये हो श्रद्धा न होती तो इतना व्रत उपवास आदिका कष्ट जाते हो। जिम स्त्रीके पटमे दमग बच्चा आगया क्यों महन करते ?। यदि धर्मका फल मिलन है उमके माथ विपय सेवन करना महान् अधर्म है। कदाचित विलम्ब हो तो अधैर्यवश उसपर अवि. मंभव है पेटमे लड़की आई हो, तब ? बच्चा पैदा श्वास नहीं करना चाहिये एक उदाहरण आप हो जानेपर भी कुछ समय तक अपना, स्त्रीका मुनियतथा बच्चेका शरीर पनपने दिया जाय तो शरीर एक राजा था जो बडा लोभी था, वह १० वर्ष ठीक रह सकता है। पर क्या कह लोगोंकी बात इन का होगया फिरभी उसके जीसे राज्यका मोह नहीं लोगोंने तो विषयको रोटी-भाजो बना रक्खा है। छूटता था। एक बार उसके यहां एक नट और नटी भाई, मानो चाहे नहीं, मै तो आप लोगोंसे दो आये । नृत्य करते-करते नटीको रात्रिके ३ बजे पर रोटियाँ पाता है.सो उतनेकी बजा देता हूँ। आपका राजाकी तरफसे उसे कुछ भी न मिला। जब नटी श्रापका मार्ग दिखला देता हूं। आप उसपर जाव बिलकल थक गई तब वह नटसे बोलीआपकी खुशी, न जावें आपकी खशी। 'रात घड़ीभर रह गई थाके पिंजर आय, पाप की चौथी प्रणाली है परिग्रह । गृहस्थ परि कह नटनी सुन मालदेव धीमी ताल बजाय।' ग्रहका बिलकुल तो त्याग नहीं कर सकता पर उसका परिमाण अवश्य कर सकता है। आप अनावश्यक अर्थात रात बिलकुल थोड़ी रह गई है हमारा परिग्रह नहीं रोके तो उससे दूसरोका काम चल शरीर थक गया इमलिए अब धामा ताल ब शरीर थक गया इमलिए अब धीमी ताल बजाओ। जावे । सुना है कि आपके यहां पंजाबके शरणार्थी उत्तर में नट कहता है किआने वाले हैं उन्हें आप अच्छी तरह आश्रय दे 'बहुत गई थोड़ी रही थोड़ी हू ओ जात । सकें तो आपके परिग्रहका सामयिक उपयोग होगा। अब मत चूके नाटनी फल मिलनेकी बात ।।'
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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