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________________ १५६ भनेकान्त [वर्ष १० कीर्त्तिके उपदेशसे संवत् १७२० के फागुन सुदी १० साहु वरदेव उनकी पत्नी माध्वी जैणी उन दोनों के को सिंघई खरगसेनके यन्त्रमें यन्त्र प्रतिष्ठा कराई। गुत्र साहु रूपचंद्र द्वितीय पुत्र माहु विहराज उनकी (नं०११४) पत्नी हांसो माह वरदेव उनके भाई माहु रूपचंद्र यह एक तांवेका चौकोर यन्त्र है। इममे निम्न उमके पुत्र साहु नानि दृमरे ममननानि उनके पुत्र लेख उत्कीर्ण है-- श्राइने संवत् १५०२ क कार्तिक सुदी ५ मंगलको लेख-संवत् १६४२ फागुन पित १० गुरौ भृगे श्रीथब- इस यन्त्रकी प्रतिष्टा कगई। रजमालदजराज्ये पैरोजाबादे श्रीमूलम घबलात्कारगने सर (नं०११६) स्वतीगच्छे कुन्दकुन्दाचार्याम्नाये भट्टारकश्रीधर्मकीति- यह यन्त्र तावका गोल है। उसमें यह लेख देवातस्पट्ट श्रीभट्टारकशील सत्रदेवातत्पी भट्टारफश्री. लिखा हैज्ञानसूत्रनदेवास्तदाम्नाये श्रीहिरउ पुत्रौ २ दोदिनमरू लेख-वत १६८३ फाल्गन सदी ३ श्रीधर्मकोतिसत्र दीदि भार्याप्रभा तत्पत्राः५ लोह-तत्र लोह-गुप्तधर- उपदेशात् मुकुट भा० किशुन पुत्रमोदन-श्याम-रामदासणीधर भार्या । नन्दराम-सुग्वानन्द-भगवानदास पुत्रासा-जातसिरा-रामभावार्थ:-मं०१६४२ के फागुन सुदी १०वृहस्पति दामोदर--विरदेराम--किशनदास--वैशास्वनन्दनपरचार प्ते वारको श्रीअवरजलाल दजके राज्यमें पैरोजाबाद नमन्ति । में श्री मूलमंघ बलात्कारगण सरस्वतीगच्छ कुन्द- भावार्थ:-मंवत १६८३ के फाल्गुन मुदी ३ कुन्दाचार्यकी आम्नायमें भट्टारक श्रीधर्मकीतिदेव श्रीधर्मकीत्तिके उपदेशसे समुकुट भाकिशन उनके उनके पट्टाधिकारी भट्टारक श्री शीलसत्रदेव उनके पुत्र मोदन-श्याम-रामदास-नन्दगम-सुखानन्द-भगपट्टाधिकारी ज्ञानसत्रदेव उनकी परम्परामे पैदा वानदाम भगवानदासकं पुत्र आशा-जातसिराहोनेवाले शाहश्री हिरउ उनके पुत्र २ दौदि नमरू रामदामोदविग्देगम-किशनदास बैशाखनन्दन, उनमेंसे दौदिकी धर्मपत्नी प्रभा उसके पुत्र लोह- इन्होंने इसकी प्रतिष्ठा कराई । ये मब इम यंत्रको नत्रलोह-गुप्त-धरणीधर उसकी पत्नी ................न नमस्कार करते है। यन्त्र प्रतिष्ठित कराया। (न०११७) (नं० ११५) यह यंत्र पीतलका है। गोलाकार है। लेग्य भी यह यन्त्र चौकोर तांवा का बना हुआ है। इस अंकित है। पर निम्न लेग्य अंकित है लेग्व- सवत् १६०७ मार्गशिर शुक्ल १० वुधे श्रीमृललेख-कल्पनातिगता बुद्धिः परभाषाविभाविका । संघे सरस्वतीगच्छे बलात्कारगने कन्दकन्दाचर्याम्नाये भट्टारक ज्ञानं निश्चयतो ज्ञयं तदन्यव्यवहारतः ॥ श्रीविशालकीर्तिस्तत्पट्ट भट्टारकश्रीपद्मकीर्ति तयोः उपदेशात्मवत् ११०२ वर्ष कार्तिक मुदी भीमदिने श्रीकाष्ठा- जांती मोहिनवान्........ ..भायां निवा-भागा तयोः पुत्र मधे भट्टारक श्रीगुणकीर्तिदेव तत्पट्ट श्रीयशकीर्तिदेव यादोजी भार्या देवा प्रणमन्ति। तस्पट्ट श्रीमलेकीर्तिदेवान्वये माह बरदेवास्तस्य भार्या भावार्थ-मवत १६८७ के अगहन सदी १० जैणी तयोः पुत्र माहु रूपचंद्र द्वितीय पत्र साह बिहराज बुधवारको श्रीमूलमघक सरस्वतीगच्छ व बलात्कारतस्य भार्या साह हांसो माह बाद भात माह पर गणमें कुन्दकुन्दाचार्यकी आम्नायमें होनेवाले भट्टारक तस्य पुत्र साहु नानि द्वितीय समननानि पुत्र श्राद्ध प्रतिष्ठतम्। विशालकीति उनक पट्टपर बैठनेवाले भट्टारक श्रीपद्म भावार्थ:-काष्ठासंघमें भटारक श्री गणकीर्तिदेव कीर्ति इन दोनोंके उपदेशसे शाह जांती सोहतवान उनका उनके पटपर बैठनेवाले यशकीर्तिदेव उनके पटा. पत्नी निबा-भागा इन दोनोंके पुत्र यादोजी उनकी धिकारी श्री मलैकीर्तिदेव उनकी परम्परा में होनेवाले पत्नी देवाने यन्त्रकी प्रतिष्ठा कराई।
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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