SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 158
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन गुहामन्दिर किरण ४ ] यहां भी इन्द्र-इन्द्राणी (संभवतः मातंग और सिद्धा यिका) स्थित हैं । इन्द्राणीको तो गांववालोंने पोत पातकर भवानी बना लिया है। दूसरी मंजिल के लिये सीढ़ियों पे चढ़कर सादे द्वारसे होकर छज्जेपर पहुचते है जिसके दोनों छोरोंपर विशालाकृति सिंह उत्कीर्ण है | गर्भगृह ε×६ फुट है और उसमें मूर्ति की चौकी बनी हुई है । तीसरी गुफा दूसरी गुफाकी निचली मंजिल जैसी है । मामनेका कमरा २५४६ फुट है। दोनों छोरोंपर विशाल आकार के इन्द्र-इन्द्राणी ? स्थित है । मंडप २१x२५ और उसमें चार खंभ है । छतपर जो कमल बना है वह अन्य स्थानोंकी अपेक्षा अधिक सुन्दर तथा आकर्षक है । उसमें पंखुड़ियोंका चार कतारे हैं, उन पंखुड़ियोंपर नाचती या वाद्यजाता देवियां दिखाई गई है, देवदेवियों के अनेक जोड़े अपने अपने वाहनो पर आसीन हैं और तीर्थकरों के जन्मकल्याणक उत्सवकी ओर संकेत करते है । गभगृहमें आदमकद खड़े तीर्थंकर है, संभवतः शांतिनाथ निचली चोकीपर दोनों तरफ भक्त और सिंह, मध्यमे धर्मचक्र और उसके दोनों तरफ हाथा, नाच मृगलाइन तथा छातीपर श्रीवत्मांक इनके दोनो और छोटे-छोटे खंभों पर पंचफरणयुक्त पार्श्वनाथ खड़े है। शांतिनाथ के कंधों के ऊपर विद्याधर तथा उनके भी ऊपर गजलक्ष्मी । हाथियों के ऊपर पुष्पवृष्टि करत गंधक जाड़े और सबसे ऊपर तोरण बना है | इस प्रकार यह शैलो अधिक प्राचीन प्रतीत नहीं होती, १२वीं-१३वीं शतीकी कला है । गुफा कुछ ऐसे भी छेद है जिनमें महमद गजनवी के आक्रमणकाल में तीर्थंकर - मूर्तियां छिपा दी गई हों अथव। जिनका उपयोग अलाउद्दीन खिलजाक रक्तपातभरे राज्यकाल मे हुआ हो । चौथी गुफा के बारामदे में दो खंभे है, बरामदा ३०×८ फुट है। द्वार तो नीमरी गुफा जैसा ही है । मंडप १८ फुट ऊँचा और २४ फुट चौड़ा है, उसके बीच में दो खंभे है । वरामदेके वाएं खंभेपर लेख भी है पर पढ़ा नहीं जाता । अक्षरोंस हो उसे ११ १३६ १२वीं शतीका अनुमानित किया जा सकता है । इनके अतिरिक्त कुछ गुफाएं पूर्व की ओर भी हैं पर वे सब टूटी फूटी है । मध्यभारत समूह मध्यभारत में गुहामंदिर दो ही स्थानोंमें है और दोनों ही स्थान भूतपूर्व ग्वालियर रियासत में है । एक तो भेलसाके पास उदयगिरि पहाड़ी, जिसका वर्णन समयक्रमके आधारपर पूर्वीय समृहके माथ किया जा चुका है और दूसरा ग्वालियरका किला । ग्वालियर किले के गुफामन्दिर संख्या, विस्तार तथा मूर्तियोंकी ऊँचाईके कारण विशेष आकर्षण की वस्तु है । उक्त किला एक स्वतंत्र पहाड़ीपर है, वास्तवमं किला और पहाड़ी अलग अलग नहीं बल्कि एक ही वस्तु है । यह उत्तर-दक्षिण करीब २ मील लम्बा, पूर्व-पश्चिम आधा मील चौड़ा एवं ३०० फुट ऊँचा है। किलेमें कोई भी अधिक प्राचीन जैन वस्तु प्राप्त नहीं हुई है, सासबहू मंदिर जिसे कुछ लाग जैनमन्दिर कहते है, भी संभवतः ई० १०६३ में निर्माण किया गया था। १५वीं शती में तोमर राजाओं के राज्यकाल में जैनांका जोर बढ़ा और उस समय पूरी पहाड़ीको जैन तीर्थ बना दिया गया। सारी पहाड़ीपर ऊपर नीचे, चारों ओर गुफामन्दिर खोद दिये गए और उनमें विशाल मूर्तियों का भी निर्माण किया गया । यद्यपि ये गुफामन्दिर और मूर्तियां संख्या और विस्तार में सर्वाधिक है फिर भी एलोरा तो क्या अन्य स्थानों की अपेक्षा भी इनका उतना अधिक महत्व नहीं आंका जा सकता क्योंकि एक तो ये अर्वाचीन है और दूसरे ये उतनी कलार्पूणभी नहीं है । उरवाही द्वारपर पहला और महत्वपूर्ण समूह है जिसमे करीब २५ विशाल नग्न तीर्थकर मृतियों मन्दिरोंके साथ खोदी गई है। इनमें सबसे बड़ी १ कनिघम, रिपोर्ट जिल्द २, पृष्ट ३६० ।
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy