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________________ किरण ४ ] तृप बने है । कनिंघमने इसी आधारपर इसे पिछले कालकी यानो ३री ४थी शतीकी बनो, सोचा था किन्तु मे सुदाम जैसी ही होने के कारण इसकी प्राचीनता में संदेह नहीं किया जा सकता। इसमें अशोकका मूल लेख हटाया जाकर शर्मा और अनन्तवर्मा के लेख खोदे गए है । उसका हमारे विपय कोई सम्बन्ध नहीं है अतः वह यहाँ नहीं दिया जा रहा है । जैन गुहामन्दिर विश्वझोपडी - लेख मे गुहाका नामोल्लेख नहीं है । यह दक्षिणमुख है और इसका भीतरी मडप भद्दा एवं अपूर्ण है । मंडपमे ही चार पंक्तियोंका लेख है जिससे विदित होता है कि बराबर पहाड़ी का प्राचीन नाम स्खलटिकपर्वत था और उपयुक्त गुफा अशोकन अपने राज्याभिषेकके बारहवे वपमे आजीविकोंको दान दी थी। लेख निम्न प्रकार है: १. लाजिना पियदमिना दुवा २. इस वमाभिमितेन इय ३. कुमा खलटिक पवतसि ४. दीना (जीवि) केहि गोपी गुफा - यह नागार्जुनी पहाड़ीमे है और भूमिसे करीब ५०-६० फुटकी ऊचाईपर है । वृक्ष और मुसलमानोंके ईदगाहसे इसका द्वार रुद्ध है । यह ईदगाह और सीढ़ियां भी मुसलमानोंने आज से करीब २००-२५० वर्ष पूर्व बनवाई थीं। गुफा की लम्बाई पूर्व-पश्चिम ४५ फुट और चौड़ाई १६ फुट है। दीवालें ६ फुट ऊँची है पर छप्पर क्रमशः चढ़ाव के कारण १० फुट ऊंचा है । गुफाका भीतरी भाग खूब अच्छी तरह पालिस किया हुआ तथा बिल्कुल मादा है । अनन्तवर्मा के लेखमे इमं 'त्रिभ्यभूधरगुहा' कहे जानेसे विदित होता है कि उस समय तक इसका प्राचीन नाम विस्मृत हो चुका था अथवा पुराना लेख पढ़ा नहीं जा सका था जिसमे इसका पुराना नाम उल्लिखित है। बाहरी दीवाल के ठीक ऊपर ही वह लेख इस प्रकार है: १. गोपिक [1] कुभा दशलथेन देवानां पिवेना १३१ २. अनंतलिय अभिसितेन [आजीविकेहि ] ३. भदंतेहि वासनिषिढियाये निषिढे ४. श्री चंदमसूलियं लेख विदित होता है कि गुफाका नाम गोपिका गुफा था और वह देवानांप्रिय दशरथन राज्याभिषेकके बाद ही (२१४ ई० पू०) भदंतों को वासनिषिद्याके अर्थ चन्द्र-सूर्य की स्थिति पर्यंत काल के लिये दान की थी। द्वारके वांयें ओर अनन्तवर्मा का लेख है जिसमें कात्यायनीको मूर्तिकी स्थापनाका उल्लेख है । बहियाका गुफा–यह नागार्जुन पहाड़ी मे ही उत्तरकी ओर है। इसमें एक ही मंडप है और वह १६×११ फुटका है। इसमे पालिस बहुत ही अच्छी तरह की गई है। दीवाले ५ फुट ऊंची है पर छप्पर क्रमशः चढ़ावके कारण ७३ फुट ऊंचा है। गुफा में जो लेख है वह बिल्कुल गोपी गुफा जैसा है किन्तु उसमें इस गुफाका नाम वहियाका गुहा कहा गया है । इस लेख के अतिरिक्त गप्तकालके तथा ६ठीवीं शतीके अन्य कई लेख भी हैं। वेदथिका गुफा -- यह भी नागार्जुनी पहाड़ी में है और वहियाका गुफाके पश्चिममे उसीसे लगी हुई है। इसका द्वार प्राकृतिक है । गुफाका विस्तार १६ ।। १११ फुट है और वह इटोंकी दीवालसे द्विधा विभक्त हैं । इसमें एक छोटी-सी खिड़की भी है। इस गुफामे वैशिष्ट्य यह है कि इसकी दीवालें मीधी नहीं है बल्कि मुड़ी हुई | भीतरका समस्त भाग अत्यन्त पालिसदार है। द्वारकी दाहनी चौखट पर चार पंक्तियोंका लेख खुदा हुआ है जो पहली दो गुफाओंके लेखोंकी ही प्रतिलिपि है। विभिन्नता है तो गुफाके नामोल्लेग्बमे जहाँ इसे वेदधिका गुहा कहा गया है। उदयगिरि और खंडगिरि (उडीसा ) की गुफाएं - जैन इतिहास और कला की दृष्टिसं उदयगिरि और खंडगिरिको विशेष महत्वका स्थान प्राप्त है । इन पहाड़ियोंकी गुफायें ईस्वी पृव दूसरी और पहली शती की हैं। प्रस्तुत निबंध में विस्तार भयसे उनका सम्पूर्ण
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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