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________________ श्री पंडिनप्रवर दौलतगमजी और उनकी माहित्यिक रचना जगतसिंहजी द्वितीयका राज्य संबन १० मे १८०८ ओंका विस्तृत वर्णन दिया हुआ है। और दृमग तक रहा है। अतः पण्डितजीका मं० १७६८मे जगत- ग्रन्थ 'अध्यात्म वारहखड़ी है जिसे उन्होंने मंचन सिंहजीकी कृपा का उल्लेख करना ममुचित ही है। १७६८ में समाप्त किया था। इस ग्रन्थ की प्रशाम्न क्योंकि वे वहां म. १७६५ में पूर्व पहाच चुक थ। में उम ममयके उदयपर निवामी किनने ही मावमी पण्डितजीन वहां गजकार्याका विधिवन मंचा- मजनोंका नामोल्लेख किया गया है जिसम पगि हुन लन करत हा जैन ग्रन्थों का अच्छा अन्याम किया जीकं प्रयत्न तत्कालीन उदयपुरम माधर्मी मजन और अपने दैनिक नेमनिक कार्योक माथ गृहस्था- गोठी और तत्त्वचर्चादिका अच्छा समागम पत्र चिन देवपूजा और गुरु उपासनादि पटकमौका भी प्रभाव होगया था। अ-यात्मबारहखड़ी की प्रशाम्न भनीभॉनि पालन किया। माथ ही वहांक निगाम में दियह माधर्मी मजनोंक नाम इस प्रकार है - धामिक मम्कागेकी दृढ़ना लानक लिय शास्त्र म्वा- पृथ्वीगज, ननुज, मनोहरदाम, दरिदाम, वग्वना ध्याय और पठन-पाठनका कार्य भी किया। जिसमे वरदाम, करणदाम और पण्डित चीमा इन सबकी उस ममय वहांक म्त्री पापोंम धमका ग्वामा प्रचार प्रेग्गा व अनरोधयं उक्त ग्रन्थकी रचना की गई है हो गया था । और व अपन अावश्यक कनव्यांक जमाफि ग्रन्थप्रशस्निगन निम्न पास मालूम होता माथ म्वाध्याय, तत्त्वचितन और मार्मायकादि कार्यो हैका उन्मादकं माथ विधिवन अनाठान करते थे । इसकं अनिरिक उन्होंने वहां रहने हा आचार्य उदियापुर म मचिग कयक जीव मजीव । वमनन्दीके उपासका प्रयन ( व मुनन्दीश्रावकाचार) पृथ्वीराज चतुभुजा श्रद्धा भहि अतीय ॥५॥ को एक टब्बा टीकाका निर्माण भी किया था जिम् दाम मनोहर अर हर्ग है वग्वनावर कर्ण । उन्होंने वहांक निवासी गंठ बल जीव. प्रनरोग दृगा किया था। कंका केवल रूपको, गम्ब एकहि मर्ग ।।६।। यह (टब्बा टवा दीका कब बनी, यह टांक मालूम चामा परि डन आदि ले, मनमें परिउ विचार । नहीं हो सका । पर जान पड़ना है कि इमकः निमांगा बारहम्बना हा मानमय, ज्ञानरूप अविकार॥७॥ भी म० १८०८ में पव ही हुआ है, क्योंकि उनके भाषा छन्दनि माहि जा, अक्षर मात्रा लेय । बाद उनका उदयपुर रहना निश्चित नही है। प्रभवं नाम वग्वानिय, गम वः न मनय ॥८॥ इसके सिवाय ऊपर उल्लिम्बित उन दोनो ग्रन्या का भी प्रगायन किया जिनमे क्रियाकोप' स.१७५ इह विचार कर मत्र जना, उर धर प्रम की भकि। की रचना है और उसमें जैन श्रावकाकी ५३ क्रिया- बाल दोलनगम मा करि मनह ग्म व्यनि ॥६॥ i-दग्या रायमल्लका परिचय वाग्वागी २ । -उदयापुरमे किया वग्वान, दौलनगम अानन्द मुन जान। बांच्यो श्रावक वृत्त विचार, बमनन्दी गाशा अधिकार ॥ बाले मंट बैलजी नाम, मन नप मत्री दाल राम । ट्या होय जो गाथा गनी, पुण्य पजे त्रियको धनी ॥ मुनिक दौलत बन मुनन, मन भरि गाय माग्ग जैन । -टवा टीका प्रगति ३-पवन सत्रहमा अट्टागाव, फागनमाम प्रमिन्द्रा । शुक्ल पान दुनिया उजयाग, भायो जगपनि मिद्धा ॥३०॥ जब उत्तराभाद्र नतत्रा, शुवलजोग शुभकारी । बालब नाम करण नब बग्न, गायो ज्ञान बिहारी ॥३॥ एक महर दिन जब चढियां मीन लगन ब सिद्धा। भतिमाल त्रिभुवन गजाको, भंट करी पविदा ॥३॥ -प्रयान बारहवी
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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