SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गांवगाथा श्री पंडितमवर दौलतरामजी CR. 000000 • he ; न्दी साहित्यिके जेन विद्वानांम पं० दौलतरामजीका नाम भी उल्लेखनीय है । आप १८ वी शताब्दीकं उत्तरार्ध और हवी शताब्दी के प्रारम्भकं प्रतिभा सम्पन्न विद्वान थे । संस्कृत भाषापर आपका अच्छा अधिकार था। खासकर जैन पुराण ग्रन्थोंके विशिष्ट अभ्यासी और टीकाकार थे। इनके पिताका नाम आनन्दराम था। और यह जयपुर स्टेटके वसवा' नामक ग्रामक रहने वाले थे। इनकी जाति खंडेलवाल और गोत्र काशलीवाल था । पंडिन जीके मकानके सामने जिन मन्दिर था और आम पास प्राय: जैनियोंका ही निवास था । और वे जिन पूजन, शास्त्रस्वाध्याय, सामायिक तथा तत्त्वचर्चादि धार्मिक कार्यमं संलग्न रहते थे । परन्तु रामचन्द्र मुमुक्षके संस्कृत 'पुण्यात्र कथाकोप की टीका प्रशम्ति के अनुसार पं० दौलतरामजीको अपनी प्रारम्भिक अवस्था जैनधर्मका विशेष परिज्ञान न था और न उस समय उनकी विशेष रुचि ही जैनधर्म के प्रति श्री किन्तु उस समय उनका झुकाव मिध्यात्वकी ओर हो रहा था। इसी बीच उनका कारणवश आगरा और उनकी साहित्यिक रचनाएँ @@@ [ लेखक - पण्डित परमानन्द जैन शास्त्री ] -X) + ( १ बसवा जयपर स्टेट का एक कम्बा है जो आज भी उसी नाममे प्रसिद्ध है। यह देहली में अहमदाबाद जाने बाली बी० बी० एण्ड सी० आई० आर० रेलवेका स्टेशन है । यहाँ एक बडा शास्त्र भण्डार भी है जो देखने योग्य है। न जाना हुआ। आगरा में उस समय आध्यात्मिक विद्वान पं भूवरदासजीकी, जिन्हें पः दौलतरामजी aaree नाम सम्बोधित किया है अध्यात्मशैलीका प्रचार था। पंः भूधरामजी आगग स्याहगंज में रहते थे। और श्रावकोचित पटक मि प्रवीण थे । तथा स्याहगंजके मन्दिर ही वे शास्त्र इनका अधिक प्रचलित नाम पडित भृधरदास था. शताब्दीक प्रतिभा सम्पन्न कवि थे । इन्होंने सम्वत् १७८ में जिनशतक और म० १७८६ में पावपुराण की रचना की है। इन दोनो रचना ग्राफ अतिरि अन्यात्मिक पदसंग्रह भी इन्हीका बनाया हुआ है जो प्रकाशित हो चुका है। ये ही कृतियां बढी सुन्दर और सरल है। इनकी कविता भाव सरल तथा मनमोहक है । इनक सिवाय 'कलियुगचरित' नामक ग्रन्थका और भी चला है जो म० १७५७ मेश्रालमगीर औरतजब ) क राज्य में लिया गया है। जैसा कि उस पुस्तकक निम्न पद्य में प्रकट है. सम्वत सत्तरह सत्तावन जेठ मास उजियारा | fafe are aणाम प्रथम ही वारजु मगलवारा ॥ X X X ही कथा अधर सुकवि आलमगीरक राज । नगर मुलकपर पर बसे दया धर्म काज ॥ X पर इस समय उस ग्रन्थकी प्रति सामने न होनेसे यह farar करना कठिन है कि उम्र ग्रन्थ इन्ही प० भ्रधरदास की कृति है या अन्य किसी दूसरे भुवरदासकी।
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy