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पक
अनेकान्त
वर्ष ।
योग्य बनाये किहर उपयक्त स्थानपर हमारी उपादे- अपनी घातक नीतिके कारण केवल एक सीट के लिये यता प्रकट हो। "योग्य व्यक्तियोंके स्थानपर भी पृथ्वी आकाश एक कर चुके हैं। अभी तक यह लोग हम अयोग्योंको इसलिये लिया जाय कि हम अमुक बिनेकावार और दस्से जैनों के लिये पूजा पाठ रोके बगेसे सम्बन्धित है" यह नारा मुसलमानों, सिक्खों, हुए थे। चाहे जिसका बहिष्कार करके दर्शन-पूजा अछूतोंका रहा है। हम इस नारेको हरगिज न बन्द कर देते थे। अब हरिजनोंकेलिये मन्दिर दुहराएँगे। हमें तो अपनेको इस योग्य बनाना है खुलते देख इन्हें भय हुआ कि जब हरिजन ही मंदिरों कि विरोधी पक्ष इच्छा न होते हुए भी अपने लिये में प्रवेश पा जाएंगे, तब इन अभागे दस्सोंको कैसे निर्वाचित करें। पएमुखमचेट्री कांग्रेसके प्रबल रोका जायगा? अत: चट एक चाल चली और विरोधी होते हए भी केवल योग्यताके बलपर काँग्रेसी "जैन हिन्द नहीं हैं" यह लिखकर उस कानूनके सरकारमें सम्मिलित हुए। उसी तरह जैनोंको सम्प्र अन्तर्गत जैन उपासना-गृहोंको नहीं आने दिया। पर दायके नामपर नहीं, अपनी योग्यता, बीरता, धीरता, इन दयावतारोंने यह नहीं सोचा कि जैन यदि बहुसको लेकर आगे बढ़ना है। हम जैन अपनेको इतना ज्यक जातिके साथ कानून में नहीं बंधते हैं तो उन्हें श्रेष्ठ नागरिक बनाएँ कि जैनत्व ही श्रेष्ठताका परि- बहसंख्यक जातिको मिलने वाली सारी सुविधाओंसे चायक हो जाय। जिस तरह विशिष्ट गुण या भव- बञ्चित होना पड़ेगा। और यह नीति आत्म-घातक गुणके कारण बहुत सी जातियां ख्याति पाप्ती हैं। सिद्ध होगी। हिदुओंसे पृथक सममने वाली मुसलउसी तरह हमारे लोकोत्तर गुणोंसे जैनत्व इतनी मान जातिका माज भारतमें क्या हश्र हुआ ? वे प्रसिद्धि पाजाय कि केवल जैन शब्दहीहमारी योग्यता
अपने ही वतनमें बदसे बदतर हो गये। उनकी प्रामाणिकता, सौजन्यता, भद्रताका प्रतीक बन जाय । मस्जिदें वोरान होगई, व्यापार चौपट होगये, और ६-पांचवें सवार--
घरसे निकलना दुश्वार होगया, यहां तक कि बाइज्जत अपनी समाजमें कुछ ऐसे चलते हुए लोग भी हैं, मरना भी उनके लिये मुहाल होगया। ऐंग्लोइण्डिजिनका न राजनीतिमें प्रवेश और न देशके लिए ही यन्सका जिनका स्त्र दा इंगलेण्डमें रहता था, आज उन्होंने कभी कोई कष्ट सहन किया। अपितु सदैव भारतमें क्या व्यक्तित्व रह गया है ? तब क्या जैन प्रगतिशील कार्यो में विघ्न स्वरूप बने रहे हैं। दस्सा समाजके ये जिन्हा जैनोंको भी उसी तरह बर्बाद पूजनाधिकार, अन्तर्जातीय विवाह, शास्त्रोद्धार, नुक्ता करना चाहते हैं। उस जिन्हामें सूझ थी, बुद्धि थी, प्रथाबन्दी बाल-वृद्ध विवाह आदि आन्दोलनों के अक्ल थो, कानूनकी अपार जानकारी थी। मुसलविरोधी रहे हैं। हर समाजोपयोगी कार्यो में रोड़े मानोंके लिये उसके पास धन था और समय था। घटकाते रहे हैं। सुधारकों और देशभक्तोंको अधर्मी जिसने अपने प्रलयकारी आन्दोलनसे पर्वतोंको भी कहते रहे हैं, उनका बहिष्कार करते रहे हैं वही आज विचलित कर दिया था। बाम्जालमें अच्छे-अच्छे इन लोगों के हाथमें सत्ता माते देख खुशामदी लेख राजनीतिज्ञोंको फंसा लिया था, फिर भी वह मुसललिख रहे हैं, पत्रों के विशेषांक केवल उनके लेख पाने मानोंका अनिष्टकारक ही सिद्ध हुआ। फिर जैन के लोभसे निकाल रहे हैं, और जैन स्वत्व अधिकार समाजके ये जिन्हा जिन्हें अक्ल कभी मांगे न मिली, के नामपर मनमाना प्रलाप करके समाजके मस्तकको जैन स्वत्वके नामपर वायवेला मचाते हैं तो यह नीचा कर रहे हैं। समाजके किए गये बहुमूल्य समझने में किसी समझदारकी देर न लगेगी कि जैनबलिदानका मोल तोल कर रहे हैं।
समाजकी नैया जिस तूफानसे गुजर रही है, उसे जो जैन अपनी योग्यता और लोकसेवी कार्योके चकनाचूर करने और डुबाने में कसर न छोड़ेंगे। बलपर अधिकसे अधिक जाने चाहियें। वहां ये
-गोयलीय