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ॐ अहम्
स्ततत्त्व-सस
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विश्वतत्वप्रकाश
वार्षिक मूल्य ५)
.00०. एक किरणका मूल्य ॥)
TA नीतिविरोधचसीलोकव्यवहारवर्तक सम्पदा
|परमागमस्यीज भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्तः।
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वर्ष ।
वीरसेवामन्दिर (समन्तभदाश्रम), सरसावा, जि० सहारनपुर माघ, वीरनिर्वाण-संवत् २४७३, विक्रम संवत् २००४
फरवरी ११४८
किरण २
समन्तभद्र-मारतीके कुछ नमुने
युक्त्यनुशासन
मद्याङ्गवद्भत-समागमे ज्ञः शक्त्यन्तर-व्यकिरदैव-सृष्टिः ।
इत्यात्म-शिश्नोदर-पृष्टि तुष्टैनिहीं-भयहो! मृदवः प्रलब्धाः ॥३५॥ "जिस प्रकार मद्याङ्गोंके-मद्यके अङ्गभूत पिष्टोदक. गुड, धातकी आदि के समागम (समुदाय) पर मदशक्तिकी उत्पत्ति अथवा आविर्भूति होती है उसी तरह भूतोंके-पृथ्वी. जल, अग्नि, वायु तत्त्वोंके समा. गमपर चैतन्य उत्पन्न अथवा अभिव्यक्त होता है-वह कोई जुदा तत्व नहीं है. उन्हींका सुख-दुःख हर्ष-विषाद. विवात्मक स्वाभाविक परिणामविशेष है। और यह सब शक्तिविशेषको व्यक्ति है, कोई देव-सृष्टि नहीं है। इस प्रकार यह जिनका कार्यवादी अविद्धकर्णादि तथा अभिव्यक्तिवादी पुरन्दरादि चार्वाकोंका-सिद्धान्त है उन अपने शिश्न (लिङ्ग) तथा उदरकी पुष्टिमें ही सन्तुष्ट रहनेवाले निर्लजों तथा निर्भयोंके द्वाग हा! कोमलबुद्धि-भोले मनुष्य-ठगे गये है!!'
व्याख्या-यहां स्तुतिकार स्वामी समन्तभद्रने उन चार्वाकोंकी प्रवृत्तिपर भारी खेद व्यक्त किया है जो अपने लिङ्ग तथा उदरकी पुष्टिमें ही सन्तुष्ट रहते हैं-उसीको सब कुछ समझते हैं। खाओ, पीओ, मौज उड़ाओ' यह जिनका प्रमुख सिद्धान्त है जो मांस खाने, मदिरा पौने तथा चाहे जिससे-माता, बहिन, पुत्रीसे
समझते हैं खाया, पीला, मौन