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________________ किरण १०] [ ३६३ आँसू बहाते देखा। ही जानता था कि वह डाकृर किशोरकी सूरत भी नहीं "नर्स, चन्द्र कहाँ है ?” उसके स्वरमें तीव्रता थी। देखना चाहता। विक्षिप्त मस्तिष्क और कमजोर शरीर "जी, वह चले गए" नर्सने लड़खड़ाते स्वरमें आखिर टकरा गया सामनेसे आनेवाली मोटर कारसे। उत्तर दिया। ड्राईवरके बहुत बचानेपर भी दुर्घटना हो ही गई और ___कहाँ ?" डाकृरके स्वरमें भयानक आशङ्काजन्य चन्द्र भूमिपर गिर पड़ा। उसका सिर फट गया। कम्पन था। भीड़ एकत्र हो गई । डाकृर किशोरका अस्पताल ___अनजानी जगह । मैंने उन्हें बहुत रोका पर वे दूर न था। तत्परतासे उसे वहाँ ले जाया गया, जहाँ मके नहीं," नर्सने काँपते हुए. जबाब दिया--"आपका से कुछ समय पूर्व भागनेके कारण ही यह दुर्घटना अस्पताल जानकर वे एकक्षण भी नहीं रुके" उसने हुई थी। आगे कहा। _ "चन्द्र !" अकृर किशोरकी आँग्वोंमें ऑसू भर तो वही हुआ जिसका मुझे भय था । तुमने आय उसकी यह हालत देखकर। उसे बता ही दिया कि मैं उसका इलाज कर रहा हूं। "तूने यह क्या किया चन्द्र !" डाकृरके इस प्रभ वह मुझे अपनी बहिनका हत्यारा समझता है नर्स ! का उत्तर देता कौन ? दुर्घटनाके बाद ही चन्द्र बेहोश मेरी सुरतसे नफरत करता है वह । पर मैं क्या करता, होगया था। उसका सारा शरीर रक्तमें सन गया था। मैं किसीकी आयुसे तो लड़ नहीं सकता। मैंने लाख "नर्स ! ऑपरेशनकी तैयारी कगे. चन्द्र वापस प्रयत्न किए पर क्षमाको कालके गालसे न निकाल आगया।" किशोरने भर्गये स्वरमे कहा। सका। मैंने उसे जो झूठा आश्वासन दिया था कि जी डाकर !" आँसू पोंछती नर्स ऑपरेशन क्षमा अच्छी हो जायगी, वह सिर्फ उसकी रक्षाके थिएटरकी ओर चल दी। लिये । क्योकि मैं जानता था कि क्षमा ही उसके जीवनका महारा है और उसके जीवनका अन्त चन्द चन्द्रने आँख खाली। के जीवनका भी अन्त है। इसलिये बहिनको मृत्यु _ "अब आप अच्छे हैं ?" नर्सने उसके सिरपर निश्चित जानते हुए भी मैं उससे छिपाये रहा और हाथ फेरते धीरसे कहा। उसने मेरे कश्चनपर विश्वास किया। पर उस अँधरी "मैं, मैं अच्छा हूँ ! मैं कहाँ हूँ. तुम कौन हो?" रातमें जब दीपक बुझ ही गया तो मैं चन्द्रकी नज़रोमें चन्द्र समझ न पारहा था कि वह कहाँ है? धाखेबाज़ बन गया। उसने धारणा बना ली है कि मैं "आप अस्पतालमें है चन्द्र भइया !" नर्सको ही क्षमाका हत्यारा हूँ. मैं उसे बचा सकता था पर चन्द्रसे भाई जैसा स्नेह होगया था। मोटर दुर्घटनामें मैने उसे बचाया नहीं। मेरा मित्र मुझसे नफरत करने पड़ जानेसे आपके दिमागको चोट पहुँची थी. लेकिन लगा। दया और ममताकी देवीके उठनेके साथ ही अ अब सब ठीक है, ऑपरेशन सफल हुआ। डाकृर सारी दुनिया उसके लिये दया और ममतासे शून्य अभी आते ही होंगे । आप उनसे मिलेंगे चन्द्र हो गई-वह पागल हो गया। चन्द्र-मेरा चन्द्र भइया !" नर्स अभी भी उसके सिरपर हाथ फेर रही थी। उसे वापस लाना होगा नर्स, उसे वापस लाना ____ "भइया. तुमने मुझे भइया कहा । पर तुम तो होगा ।" डाकृर विह्वल हो उठा। “मैं आदमी भेजती हूँ।" नर्स बाहर हो गई। क्षमा नहीं हो। वह तो चली गई मुझे छोड़कर।" २ चन्द्रने आँखें फाड़कर नर्सको देखा। चन्द्र अस्पतालसे भागा तो, पर उसे कुछ भी हॉ, मैं क्षमा नहीं, पर क्षमाकी भाँति ही मैं ज्ञान न था कि वह कहाँ जारहा है। वह सिर्फ इतना आपकी सेवा कर सकती हूँ। मुझे दे दीजिये क्षमाका
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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