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ramurdereat अवस्थिति
( लेखक - श्रीगरचन्द नाहटा )
'अनेकान्त' के गत अक्तूबर के अङ्क में पद्मनन्दिरचित रावणपार्श्वनाथस्तोत्र प्रकाशित हुआ है । उसका परिचय कराते हुए सम्पादक श्री मुख्तार साहबने लिखा है कि “यह स्तोत्र श्रीपद्मनन्दि मुनिका रचा हुआ है और रावणपत्तन के अधिपति अर्थात् वहाँ स्थित देवालय के मूलनायक श्रीपार्श्वजिनेन्द्र से सम्बन्धित है; जैसा कि अन्तिम पद्यसे प्रकट है । मालूम नहीं यह "रावणपत्तन" कहाँ स्थित है और उसमें पार्श्वनाथका यह देवालय (जैनमन्दिर) ब भी मौजूद है या नहीं, इसकी खोज होनी चाहिये ।"
तीन वर्ष हुए श्वे० साहित्य मे रावणपार्श्वनाथका उल्लेख अवलोकनमे आनेपर मेरे सामने भी यह प्रश्न उपस्थित हुआ था और अपनी शोध-खोज के फलस्वरूप इसकी अवस्थितिका पता लग जानेपर जैन सत्यप्रकाशके क्रमाङ्क ११४ मे "रावणतीर्थ कहाँ है ?" शीर्षक लेखद्वारा प्रकाश डालनेका प्रयत्न किया गया था। मेरे उक्त लेखसं स्पष्ट है कि रावणपार्श्वनाथ वर्त्तमान अलवर में स्थित है। इसके पोषक ९ उल्लेख१६वीं शताब्दी से वर्त्तमान तकके उस लेखमे दिये गये थे एव रावणपार्श्वनाथकी नवीन चैत्यालयस्थापना (जीर्णोद्धार) का सूचक सं० १६४५के शिलालेखको भी प्रकाशित किया गया था। इसी समय अलबरसे प्रकाशित 'अरावली' नामक पत्रके वर्ष १ अङ्क १२ मे "जैनसाहित्यमे अलवर " शीर्षक लेखमे भी इसके सम्बन्धमे प्रकाश डाला गया था । यहाँ उसके पश्चात् जो कतिपय और उल्लेख अवलोकनम आये है वे दे दिये जाते है:
१ क्षेमराज (१६वीं) के फलोधी - स्तवन (गा. २४) में"थभणपुरि महिमा निलो, गऊउडर गौडीपुर पास । जेसलमेरहि परगडो रावणि अलवर पूरइ श्रस । २० २ साधुकीति रचित (सं० १६०४) मौन - एकादशी
स्तवन ( गाथा १७ ) मे :
"गढ नयर अलवर सुखहमडप पास रावणम पुण्यउ।" ३ रत्नजय (१८) कृत १५७ नाम गभित पार्श्वस्तवन गा. १७) मं: -
"तरीक वीजापुरै रे लाल अलवर रावणपास । " ४ रत्ननिधान ( १७वी) कृत पार्श्वलघु-स - स्तवन (गा ९) मे -
"जीरावल सोवन गिरइ, अलवरगढ़ गवरण जागइ रे" ५. कल्याणसागर सूरि-रचित रावणपार्श्वाष्टकमे"अलवरपुररत रावण पार्श्वदेव,
प्रणतशुभसमुद्र कामदं देवदेवं ।" रावणपार्श्वनाथ की प्रसिद्धिका पता अभी तक श्वे साहित्यसे ज्ञात था । पद्मनन्दिके स्तोत्रसे उसकी प्रसिद्धि दोनों सम्प्रदायोंमे समानरूपसे रहो ज्ञात कर हर्ष होता है। वर्तमान मेल-जोल के युग मे ऐसी बातों एवं तीर्थों आदिपर विशेषरूपसं प्रकाश डालना अत्यन्त आवश्यक है, जो दोनों सम्प्रदायवालोंको समानरूपसे मान्य हो । अलवर के रावणपार्श्वनाथका इतिहास मनोरञ्जक एवं कौतूहलजनक होना चाहिये । नामके अनुसार इम पार्श्वनाथ - प्रतिमाका सम्बन्ध रावणसे या अलबरका प्राचीन नाम रावणपत्तन होना विदित होता है । अतः अलवर निवासी जैन भाईयों एव अन्य विद्वानोंको उसका वास्तविक इतिहाम शीघ्र ही प्रकाशमे लानेका प्रयत्न करना चाहिये ।