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अनेकान्त
वह
समाज और साहित्यसेवा में अधिकसे अधिक समय सह महत्त्वपूर्ण परिचय दिया है। इस भागमें कुल का भोग देता है। स्वर्गीय देसाई सच्चे लगनशील २८७ जैनकवि और ५४१ पद्यकृतियोंका परिचय
और निरन्तर ठोस कायकर्ता थे। हाईकोर्टकी छट्रियों में है, तदनन्तर गद्यग्रन्थों की सूची, कवि व कृतियोंकी तो आप अधिकतर प्रवासमें आकर जैनहस्तलिखित अकारादिको सूचीके साथ १०१० पृष्ठों में ग्रन्थ समाप्त प्रतियोंका अवलोकनकर विवरण लिखतेही पर अन्य हुआ है, जिसमें प्रारम्भमें ३२० पृष्ठको प्रस्तावना समय भी दिनरात उनका कार्य चालू रहता था। में 'जूनी गुजराती भाषानो संक्षिप्त इतिहास' शीर्षकसे
आफिसमें भी अपने पोथीपत्रे साथ रखते और जब भाषा साहित्यका इतिहास लिखा है जो विद्वानोंके फुरसत मिली सरस्वती उपासनामें जुट जाते। घर लिये बड़े ही कामकी वस्तु है। इसके ५ वर्ष बाद पर भी जब सब लोग सोये रहते, देसाई महोदय द्वितीयभाग प्रकाशित हुआ, जिसमें १८ची शताब्दीके रातमें दो दो बजे तक अपनी साहित्य-साधनामें १७६ कवियोंकी ४०१ कृतियोंका परिचय, गद्य-कृतियें संलग्न रहते थे। आलस्य-प्रमादको पासभी नहीं जैनकथाकोश, खरतर तथा अंचल गच्छकी फटकने देते थे, जहां कहींभी साहित्यिक कार्य होता पट्टावलिये, राजावली आदि परिशिष्टोंयुक्त ८४५ स्वयं तत्काल जा पहुंचते थे। आपने अपनी पृष्ठोंमें दिये हैं। तीसरा भाग दो खंडोमें है, जिनके साहित्य-साधनाकी सबसे अधिक सेवा श्रीजैन कुल २३४० पृष्ठ हैं। इसमें ५२० कवियोंके ११११ श्वेताम्बर कान्फ्रेन्सको दी। जैनश्वे० कौ० हेरल्डके कृतियोंका एवं १४५ ग्रन्थकारोंकी ५६६ गद्यकृतियोंका ७ वर्षे तक आप संपादक रहे। "जैनयुग" मासिक तथा २५४ अज्ञातकर्तृक गद्यकृतियोंका परिचय, १२८ का ५ वर्ष तक सम्पादन किया, जो अन्वेषण और पृष्ठकी कवि, कृति, स्थल एवं राजाओंआदिको अनुसाहित्यिक जैनपत्रों में अपना खास स्थान रखता था। क्रमणिका, २७२ पृष्ठामे देशियोंकी महत्त्वपूर्ण विस्तृत जैनसाहित्यसंशोधकके बाद उच्चकोटिके पत्रों में सूची सत्पश्चात जनतर कवि एवं कृतियोंका परिचय, जैनयुगका हो नम्बर लिया जासकता था, यदि वह कतिपय गच्छोंकी परम्परा-पट्टायली श्रादिके पश्चात बन्द न होता तो अबतक न जाने कितना महत्त्वपूर्ण देसाई महोदयके ग्रन्थोंपर विद्वानोंके अभिप्राय जैनसाहित्य प्रकाश में आजाता।
प्रकाशित हैं। आपने इस ग्रन्थकी महत्त्वपूर्ण ५०० देसाई महोदयको जैनसाहित्य के प्रति प्रगाढ प्रेम पृष्ठकी प्रस्तावना+ लिखनेका विचार हमें सूचित किया और अनन्यभक्ति थी। गुजराती भाषा के लिये आप +दम प्रम्नावना के सम्बन्धमे हम निम्नोक्त मचनाये ने बहुत कुछ किया एवं जैन भाषासाहित्य के प्राचीन अपने पत्राम दी थी :प्रन्थांको गुर्जरभाषा-भाषी जनतामें प्रकाशमें लाने के ५- ता० ५२-१२-४७ के पत्रमे "प्रस्तावना ५०० पृष्ठ हेतु आपने हजारों पृष्ठोमें "जैनगुर्जरकवियो" के नी लग्यवानी बाकी छे ते लम्बवानी छे त माटे छुटक तीन भाग प्रकाशित कर सैकड़ों जैन कवियोंको छूटक लवायु छ न भेगु करवानुछे।” उच्चासन प्राप्त कराया एवं हजारों कृतियोंको विद्वत् २- ता० २७-१-४३ के पत्रमे "प्रस्तावना लिग्बी जारही समाजके सन्मुख रखकर गुर्जर-गिरा, जैनसाहित्य है पृ०५०० करीब मुद्राकित होगा।” जैन गुर्जर माहित्यका
और जैनशासनको अमूल्य सेवा की। जैनगुर्जर इतिहास" यह मेरी प्रस्तावनाका शीर्षक है, उममे लवलीन कवियोंका प्रथमभाग मं० १६१२ में प्रकाशित हुआ, हूं समुद्रमंथन चल रहा है। क्या टालू क्या नहीं ? जिसमें १३वीं शताब्दीसे ७वीं शताब्दीके अपनश, वाग्देवी महाय करे और ग्राप जैसेकु सहाय देनेकी प्रेरणा हिन्दी, गुजराती, राजस्थानी भाषाके दि० श्वे० करे। ग्रापका माहित्य-लेग्य परिश्रमके लिये हृदयपूर्वक बैनेतर कवि और उनकी रचनाओंका आदि अन्न- धन्यवाद देकर - लि० सा० मेवक मोहनलालका नमना ।