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________________ स्मृतिकी रेखाएं सन्मति - विद्या विनोद प्यारी पुत्रियो ! सन्मती और विद्यावती ! श्राज बालकोंके जन्म समय इधर ब्राह्मणियाँ जो बधाई तुम मेरे सामने नहीं हो-तुम्हारा वियोग हुए युग गाती थीं वह मुझे नापसन्द थी तथा असङ्गत-सी बीत गये; परन्तु तुम्हारी कितनी ही स्मृति आज भी जान पड़ती थी और इसलिये तुम्हारे जन्मसे दो मेरे मामने स्थित हे-हृदयपटलपर अङ्कित है । भले एक मास पूर्व मैने एक मङ्गलबधाई' स्वयं तैयार की ही काल के प्रभावसे उसमे कुछ धधलापन आगया है, थी और उसे ब्राह्मणयोंको सिखा दिया था। ब्राह्मफिर भी जब उधर उपयोग दिया जाता है तो वह णियोंको उस समय बधाई गानेपर कुछ पैसे-टके ही कुछ चमक उठती है। मिला करते थे, मैंने उन्हें जो मिलता था उससे दो बेटी मन्मती रुपये अधिक अलगसे देने के लिये कह दिया था और तुम्हारा जन्म असोज सदि ३ संवत् इससे उन्होंने खुशी-स्तुशी बधाईको याद कर लिया १९५६ शनिवार ता० ७ अक्तूबर सन् १८९९ था । तुम्हारे जन्मसे कुछ दिन पूर्व ब्राह्मणियोंकी तरफ को दिन १२ बजे मरमावाम उसी सूरजमुखी से यह सवाल उठाया गया कि यदि पुत्र का जन्म न चौबारेमे हुआ था जहाँ मेरा, मेरे सब भाइयोंका, होकर पुत्रीका जन्म हा तो इस बधाईका क्या पिता-पितामहका और न जाने कितने पूर्वजांका जन्म बनेगा? मैने कह दिया था कि मैं पत्र-जन्म और हुश्रा था और जो इस समय भी मेरे अधिकारमं पुत्रीक जन्मम कोई अन्तर नहीं देखता हूँ-मेरे लिये सरक्षित है। भाई-बोटके अवसरपर उस मैंने अपनी दोनों समान हैं-और इसलिय र्याद पुत्रीका जन्म ही तरफ लगा लिया था। हुआ तब भी तुम इम बधाईको खुशीसे गामकनी हो भी शेष है कि एक लगाटी लगाने वाला जिसके पाम और गाना चाहिए। इसीसे इसमे पुत्र या सुत जैसे दो शाम खानको है, वह भा अपना एक शामका शब्दांका प्रयोग न करके 'शिशु' शब्दका प्रयोग किया भोजन दान कर सकता है । जहाँ जैनियोंके परिग्रह गया है और उसे ही 'द शिश् शिशु हो गुणधारी' सचयक उदाहरण है वहाँ परिग्रह त्यागके भी सैकड़ों जैसे वाक्य-द्वारा आशीर्वाद के दिये जानेका उल्लंग्व उदारण वर्तमान है। इमीलिय ये बिना सरकारी किया गया है। परन्तु दिवश पिताजो और बुधाजी महायताके शिक्षा-प्रचार एवं अन्य मामाजिक उन्नति- आदिकं बिरोधपर ब्राह्मणियोंको तुम्हारे जन्मपर के कार्य जैनममाज-द्वारा अनेक होरह है। बधाई गाने की हिम्मत नहीं हुई। फिर भी तम्हारी आज स्वतन्त्र भारतमें भगवान महावीरकं मानाने अलगसे ब्राह्मणियोंको अपने पास बुलाकर उपर्यक्त ममाजवादके प्रचारकी नितान्त आवश्यकता बिना गाजे-बाजेकं ही बधाई गवाई थी और उन्हें है। इमसे समाजको बड़ी भाग शान्ति मिलेगी। गवाईक वे २) रु. भी दिये थे। माथ ही दसरे सब क्या प्रमुख नेता लाग इधर ध्यान देगे? नेग भी यथाशक्ति पूरे किये थे जो प्रायः पुत्र-जन्मके क्षेमं सर्वप्रजानां प्रभवतु बलवान धार्मिको राप्रपाल:, अवमरपर दूसरोंको कुछ देने तथा उपहारमं पाये हुए काले काले च सम्यग्वर्षतु मघवा व्याधयो यान्तु नाशम् । .---.. दुभिक्ष चौरमारी क्षणमपि जगता माम्मभूखीवलाके, १ इस मगल बधाईकी पहली कली इस प्रकार थीजैनेन्द्र धर्मचक्र प्रभवतु सतत सवेसोख्यप्रदायि ॥ "गावो री बधाई सम्बि मगलकारी।"
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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