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________________ जैनियोंपर घोर अत्याचार !! (ले०-प्रो० हेमुल्ट ग्लाजेनाप ) अनुवादक-५० परमेष्ठीदाम जैन, न्यायतीर्थ ] जिमन जैन विद्वान प्रोफेसर हेमुल्ट ग्लाजेनाप ( बलिन ) द्वारा Jainism नामक एक विद्वत्ता एवं खोज पुर्ण ग्रंथ लिखा गया है । उमका जैनधम प्रमारक सभा भावनगरने गजरानी भाषांतर छपाया है। इस ग्रंथमं जैनधम सम्बन्धी भिन्न-भिन्न विषयों पर करोच ५०० पृष्ठों में विवेचन किया गया है । उममें 'अवननि' नामक प्रकरणाका हिन्दी अनुवाद पाठकों के समक्ष उर्गस्थत किया जाना है। इस प्रकरणका पढ़ कर आपके हृदयकी दीवालें हिल जायेगी। -अनुवादक] महावीर स्वामीक समयमं ही जैनधर्मको प्रतिस्पर्धी किया। इस प्रकार यह अपनी जन्म-भूमिमे अस्त हो शक्तियोसामने यन्द्र करना पड़ा है। वैदिक ब्राह्मण धर्मके गया। वैदिक यज्ञ काण्डके पुनरुद्धारक कुमारिलने और विरुद्ध और बौद्ध धर्मके विरुद्ध । वद के सिद्धांतोंके सामने मायावाद ब्रह्मवादक स्थापक महान शंकरने वेदधर्म विरोधी पशु बलि के कारण और ममान में जैनधर्मके विरुद्व अपने तमाम ब्राह्मण दूसरे वर्गों के उच्च स्थान शास्त्रंय शस्त्रांक द्वारा युद्ध दबा बैठे थे. इस परिस्थितिक किया। और यह युद्ध धीर कारगा जैनधर्मका बाह्मण धर्मक धार मा बलवान हुश्रा कि माथ युद्ध चलता था। जैनधर्मका नम्रीभृत होजाना पड़ा। बौद्ध धर्मने थोड़े समय तक हालांकि इसने पूर्ण बल से अपने तो जैनधर्म पर एमा प्रचंड दबाव रक्षण का प्रयत्न किया था फिर डाला कि उनको अपने अनेक भी अनेक कारणोंमे यह कमजोर प्रदेश ग्वाली करने पड़े थे । इन हो गया और डिग गया। की मातृभूमि बीदों का ही प्रदेश ब्राह्मण धर्मके पुनरुत्थानके हो गया और वहां इतने अधिक कारण वैष्णव और शैव संप्रदाय विहार बंधवाये गये कि जिससे भी नये रूपमे बलवान बनाये। इम प्रदेश का नाम ही विहार हो ये दोनों सम्प्रदाय जैनधर्मक गया। परन्तु ममय बीतने पर भयंकर शत्र बन गए और दक्षिण वहांसे उनका खिमकना पड़ा। भारतमें इन्होंने जैनधर्म पर दक्षिण और पश्चिममें तो यह भयंकर प्रहार किया। जैनधर्मकी बराबरी कर ही न नानसंवर और अप्पर (७ मका था। -वीं सदी), सुंदर मूर्ति और इसके अतिरिक कुमारिलने (करीब ई. सन् ७००) माणिकवाचकर (१०० के करीब) तथा ऐसे ही अन्य शैव और शंकरने (ई. सन ७८-२०) फिरस ब्राह्मण धर्म भक्तोंने अपने भजनोंस अनेकोंको जैनधर्मसे खींचकर शैव. की स्थापना की ! और समस्त भारतमेंस बौद्ध धर्मको विदा धममें ले लिया। अप्परने इसी प्रकार पल्लव राजा महेन्द्र
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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