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________________ किरण २] दिल्ली और दिल्लीको राजबली राज्यका २५ वर्ष वा महोना, अठारह दिन बतलाया है। राजा जान परता। पंडित स्वचमीधर बाजपेयी भी सन् अतएव इसका राज्यसमय सन् १०७ (वि.सं. १७०८) १०२ वाले अनंगपाल (द्वितीय) से सौ वर्ष बाद तृतीय से सन् १०८, (वि. स. १३८) के करीब पाया अनंगपाखको तुम्बर घरानेका अन्तिम राजा होना स्वीकार जाता है। यदि इसका यह राज्यममय ठीक है तो उसके करते हैं। साथ ही उसके शासनकाल में अजमेरके राजा पश्चात् दिल्लीपर अन्य किसने शासन किया यह कुछ वीसलदेव चौहान द्वारा दिल्ली जीते जानेका भी उल्लेख मालूम नहीं होता। करते हैं। ह, बुध श्रीधरके अपभ्रंशभाषाके पार्श्वनाथ-चरितसे तोमरवंशियोंसे मिली चौहामवंशी राजा माना जिसका नाम के पुत्र विग्रहराज (वीसलदेव चतुर्थ) ने वि० सं० १२०० अष्टमी रविवार १२ । उसमें दिल्ली और उसके राजा अनंग के लगभग प्राप्त की थी और उसी समयसे ससे अजमेरका पाजका उल्लेख किया है और उसे तलवार द्वारा शत्र. सूबा बनाया गया था। कपालोंको तोड़ने वाला बतलाया है। जैसा कि उसके देहलीकी प्रसिद्ध फीरोजशाहकी पाटपर प्रशोककी निम्न वाक्यसे स्पष्ट है-- धर्माज्ञाओंके नीचे शिवालिक स्तम्भपर उत्कीर्ण हुए सन् हरियाणए देसे असंखगाम, १३६३ (वि० सं० १२२०) के वैशाख शुक्ला १५ के गामिय जणिय प्रशवरय काम । शिला वाक्य में यह लिखा है कि हानवंशी राजा बीसबघत्ता-परचक विहट्टणु सिरि संघट्टणु जो सुरवणा परिगणिर्ड। देव (चतुर्थ) ने तीर्थयात्रा प्रसंगको लेकर विन्ध्याचलसे रिउ-रुहिरावदृणु विउल पवट्टणु दिल्लीणामेण जिणि उं|| " हिमालयतकके प्रदेशोंको जीतकर कर वसूज किया और भार्यावर्तसे म्लेच्छोंको निकालकर पुनः भार्यभूमि बनाया। और वि० सं० १२२६ में उत्कीर्ण हुए विजोखियाके जहिं मसिवरतोडिय रिउ-कवाल शिलालेख में यहांतक लिखा है कि दिल्ली लेनेसे श्रान्त णरणाहु पषिद्ध अणंगवालु । (थके हुए) और प्राशिका (झांसी) के नामसं वाभान्वित इससे मालूम हो कि उस समय वि०सं०११८६ हुए विग्रहराजने अपने यशको प्रताली और बलभीमें में अनंगपालका राज्य था। यह अनंगपाल उक्त दोनों विश्रान्त दा-वहानम स्थिर किया। अनंगपालॉप जिनका समय सन् ७३६ (वि. सं. १३) ३ देखो, दिल्ली या इन्द्रप्रस्थ पृ०६। और सन् १०५१ (वि. सं. ११०८) दिया हुमा है? ४ नागरीप्रचारिणीपत्रिका भाग १पृ० ४०५ टिपण ४४ । मिन ही प्रतीत होता है। क्योंकि उनके समय के साथ/५ श्राविध्याद्रा दिमाद्रविरचितविजयस्तीर्थयात्राप्रसंगाग्द्रीवेषु इसका कोई सामजस्य नहीं बैठता । प्रन्थमें इसके वंशका प्रदर्षान्न प्रतिषु विनमत्कन्धरेषु प्रपन्न: । कोई परिचय या उल्लेख नहीं मिलता, फिर भी यह आर्यावर्त यथार्थ पुनगी कृतवान्म्लेच्छ विच्छेदनामिमालूम होता है कि इसका वंश भी संभवत: तोमर ही देवः शाकंभरीन्द्रो जगति विजयते वीसलः क्षोणिपालः ।। होगा और यह तृतीय अनंगपाल तोमर वंशका अन्तिम बने सम्पनि चाहवाणतिलक: शाकंभरी भूपतिः ? भामान विग्रहराज एष विजयी सन्तान जानात्मनः । १ दी आर्कियोलाजिकल सर्वे श्राफ इण्डिया By जनरल अस्माभिः करदं पधायि हिमवद्विन्ध्यान्तगलं भुवः, कनिघम । शेष स्वीकारणाय मास्तु भवता मुद्योगशून्यं मनः ॥ २ विक्कमणरिद सुप्रसिद्ध कालि, दिल्ली पट्टण घणकणविसालि -इंडियन एण्टी क्वेरी जिल्द १६ पृ०२१८ स-णवासी एयारह सएहि, पारिवाडिए वरिस परिगति । ६ प्रतोल्यां च बलभ्यां च येन विश्रामितं यशः। कसणहमीहि श्रागहणमासि, रविवार समारण उसिंसिरभासि ढिल्लिका ग्रहणश्रान्तमाशिका लाभलंभितः (तं) ॥ २२॥ पार्श्वनाथ चरित, भामेर प्रति । -नागरी प्रचारिणी पत्रिका भाग १पृ०४०५टि.४
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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