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________________ अनेकान्त [वर्ष ८ चीनको अब तक सेलेशियम एम्पायर या स्वर्गीय महाराज्य विश्वकर्मा नये जोक बनानेकी समता रखता था तो दैत्योंका कहते थे। जिस प्रकार इन्द्र किसीकी तपस्यासे झट घबरा मयदानव महान शिल्पज्ञ था। दैश्य बोग सूर्यके उपासक उठता था कि कहीं उसका इन्द्रासन न चना जाय, उसो भी थे । दैत्योंकी सभ्यताही'हीलियोलिथिक कलचर' प्रकार चीनी लोग भी बाहर के लोगोंका अपने देशमें आना थी जो अमरीकामें 'माया' लोगोंके स्वरूप, अच्छा नहीं समझते । देवताओंके दिव्य अस्त्र प्रसिद्ध है। मिसमें मेपोपुटानिया और बेवेलोनमें असुरके रूप में चीन वालोंके भी प्राचीन प्रस्त्र प्रसिद्ध हैं । बारूद भी फैल गयी। मिस्रो भाषामें सूर्यका नाम है। मिश्री चीनका ही प्राविकार समझा जाता है। चीनी कथाके 'इसफिक्स' सूर्यके देवताका ही प्रतीक सममा जाता है। अनुमार चीनकी मभ्यता दक्षियामे चीनमें पाई थी। चीन कदाचित् 'मरस्य भगवान्' मेमोपुटामिया या मत्स्य देशके के दक्षिणमें 'ब्रह्म' देश है। पुराणोंके अनुसार देवता बोग अधीश्व। थे जिनको देवताओंने अपने मित्र आर्य सम्राट ब्रह्माके पुत्र हैं। देवताओंका निवास हिमालयके उस पार सत्यव्रतको होनेवाले जल-प्रलयसे बचाने के लिये भेजा था। ही कहा गया है । रावण देवताओंप नबने हिमालयको जिम प्रदेशमें राजा सत्यवतने पार्योंके बीज सहित जाकर पार करके गया था। प्रार्य राजा दुष्यन्त व दशरथ आश्रय प्रण किया उमीका नाम 'चार्योंका बीज अथवा हिमालयको पार करके हीन्द्रकी महायता करने गये थे। 'आर्यनम बीजी' (पारसी भाषामें) अथवा 'पाजर बीजान' अर्जुनने दिव्य अस्त्रों को प्राप्त करने के लिये हिमालयपर अथवा प्राधुनिक 'श्रारमोनिया है। यहीं प्रार्योंके बीजकी ही तपस्या की थी। धनके देवताका स्थान कैलाश रक्षा हुई और इस ममयमें सूर्य उपासक दैत्योंके घनिष्ट हिमालयका ही भू-भाग है। देवताकि स्नान करनेकी सम्पर्कमें रहनेके पीछे जब आर्य लो। फिर जलप्रलय झील 'मानसरोवर' हिमालय के सम पार है। पण्डवोंने समाप्त होने पर भारतवर्ष या आर्यावर्तकी ओर लौटे तो जब स्वर्गको यात्रा की तो वे हिमालयपर ही गये। देवता वैवस्वत मनुने सूर्यवंशकी स्थापना की जिसमें दैत्योंका तेज लांग विमानों में चढ़कर श्राकाश मार्गस हिमालयको पार और पार्योंकी आध्यात्मिकता दोनोंका ही समावेश था। करके ही आर्यावर्त पा पाने थे। प्रस्तु, यह स्पष्ट है कि दैयोंकी 'हीलियोलिथिक करूचर' के संसार-व्यापी चीन ही देवताओं का निवास स्थान था और वहांके गौर होनेका कारण भी पुराण स्पष्ट बताते हैं। देवता, दैत्य वर्ण के सुन्दर स्त्रीपुरुप ही दिव्यास्त्रवाले देवता थे । और नागाने मिलकर समुद्र मंथन किया। उससे प्राप्त अस्तु, उस समय पार्यावतक पश्चिम, उत्तरमें बड़ी रनोंके बटवारेपर झगड़ा हुआ। देवासुर संग्राम हुधा। बलवान मभ्य जातियों-दैत्य, किसा, गन्धर्व नग, गरुड उसमें दैत्यराज राजा बलि हारकर भागे। उनके चार देवता रहती थी। उनके और आर्यावर्तक पीच हिमालय सरदार हारकर पातालको भागे । एक मयदानव ती सीमा स्थित था। आर्यावर्तके दक्षिण में और पूर्व में राजपूताना व पातालको गया। तीन भाई माली, सुमाजी और माल्यवान पूर्वी समुद थे। फिर अयों का बाहरसे श्राना कै कहा पहले लंकाको गये । परन्तु कुबेरने वहांसे मी उन्हें निकाल जा सकता है? पुराणों में कहीं ऐमा उल्लेख नहीं है कि दिया और लंकामें यक्षोंका राज्य स्थापित किया। माली. प्राय श्रथवा मनुष्य बोग उत्तर पश्चिमसे दैत्यों या सुमाजी व माल्पवान लंकासे पातालको भागे। प्रस्तु देवताओं को मारकर या जीतकर उनके देश में होते हुए पाताल कदाचित वह प्रदेश या जो वानर महाद्वीप या भारतवर्ष पाए । देवता और दैश्य मनुष्योंप किमी प्रकार बीयूरियन कहलाता था। मयदानव उसके पूर्वी भाग भी कम बलवान नहीं थे। जल-प्रलयमे पहले संसारकी अमरीकाकी भोर सीधा भागा। और ये तीनों माई लंका जातियोंक निवासका भौगालिक मानचित्र ऐसा व्यवस्थित होकर उसके किसी अन्य भागको गये। जल प्रलय तक और संपूर्ण संसारके किसी और इतिहास में नहीं मिलता। कदाचित माली नष्ट होगया, परन्तु जलप्रलयके पश्चात दैत्य लोग केवल मनुष्यकी बलि ही नहीं देते थे सुमानी और माल्यवान पाताल से निकलकर फिर मनुष्यवरन् वे शिल्पशास्त्रक बड़े मर्मज्ञ थे । देवताओं का शिल्पी जोकमें पाये । यहां सुमालीने अपनी पुत्रीका विवाह
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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