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________________ किरण ८-९] दक्षिण भारतके राजवंशोंमें जैनधर्मका प्रभाव ३६१ अनुभव कर लिया था कि उसका भविष्य आगे २ कलापूर्ण दर्शनीय मानस्तम्भोंके निर्माणद्वारा देशकी जनमाधारणके साथ ही सन्नद्ध है। इसके प्रधान महती सांस्कृतिक अभिवृद्धि की । दुर्दिनोंके बावजूद गढ़ उम समय श्रवणबेलगोलके इर्द गिर्द तथा भी, वादी विद्यानन्द, बाहुबलि, केशववर्णी भास्कर, तुलुवदेशमें थे। कनकगिरि, आवलिनादु, उद्धरे, कल्याणकीर्ति जैसे अनेक विद्वान् लेखकोंने ज्ञानकी हुलिगेरे, गेरुसोप्पे, मृडवद्री, बनवासी, कारकल विविध शाखाओं पर अपनी महत्वपूर्ण रचनाओं आदि ऐसे तत्कालीन जैन केन्द्र थे जहाँ पर जैन- द्वारा तत्कालीन साहित्यका संवर्धन किया है। धर्मको स्थानीय सरदार सामन्तों तथा जनसाधरण यह लेख डा० भास्कर अानन्द सालतोर कृत का प्रश्रय, सहयोग एवं अत्यधिक निष्ठा प्राप्त थी। Mediaeval Jainism नामक महत्वपूर्ण ग्रन्थका इनमेंसे कितने ही स्थानोंमें विशाल, उत्तुङ्ग, सारांश है । इस ग्रन्थमें विशेषकर शिलादि अभिलेखीय शोभनीक जिनालय आज भी अवस्थित हैं और वे अाधारोंके बहुल प्रयोग द्वारा तिपाद्य विषय, अर्थात् जैनधर्मके उन यशस्वी कीर्तिकर प्रशस्य दिनोंको मध्यकालीन दक्षिणमं, विशेषतः विजयनगर साम्राज्यमें यशोगाथा मुक्तकण्ठसे घापित करते हैं । किन्तु जैनधर्मकी स्थिति, प्रभाव, प्रचार, कार्यकलापादिका जिन्होंने हिरयंगदि (कारकल ) आदिको देखा है सहानुभूतिपूर्ण किन्तु निष्पक्ष वैज्ञानिक विस्तृत विवेचन वे उसके उन दुर्दिनोंकी याद किये बिना भी नहीं है, और यद्यपि, जैसा कि उक्त ग्रन्थकी विद्वत्तापूर्ण रह सकते जिनका कि पिछले जमानेमें जैनधर्मको समालोचना (Pub. New. Ind. Ant-Vol II, सामना करना पड़ा था। जैनधर्म अब एक राज No.2 P. 128) में डा. ए. एन. उपाध्येने भी नैतिक शक्ति नहीं रह गया था । वह प्रच्छन्न प्रकट किया है, उसमें वर्णित अनेक बाते वियादापन्न परावृत्त होकर पृष्ठभूमिमें रहता हुआ मात्र शान्ति हैं, कितनी ही भ्रमपूर्ण भी हैं और कुछ एक पर अधिक एवं ज्ञानकी उपासना और साधनामें लीन समुचित प्रकाश डाला जा सकता था, तथापि ग्रन्थके होगया था। महत्वमें कोई कमी नहीं आती, प्रतिपाद्य विषयपर यह विजयनगर साम्राज्यमें भी जैनोंने अपने अब तककी एक मात्र प्रमाणिक रचना है। सुन्दर उत्तुङ्ग जिनालयां, भव्य विशाल मूतियों एवं -लेखक
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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