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________________ किरण ८-९] वैज्ञानिक युग और अहिंसा ३२७ विदा हो अपनी जीवन-यात्रा समाप्त कर जाते हैं बच्चा ! आज तेरे बाबूजीको काम नहीं मिला इस और उन्हें कोई जान भी नहीं पाता । ऐसे देशमें लिये आज पैसे नहीं मिले और इसी कारण घरमें जहाँके लाखों मजदूर काम न मिलनेके कारण दर-दर कोयला न सका। भटकते फिरते हैं और किसी प्रकारके औद्योगिक क्यों माँ ! बाबूजीको काम क्यों नहीं मिला, धन्धोंके समुचित प्रचारसे वह मिलों एवं खानोंमें जिससे कोयला न आ सका। अपना जीवन पशुसे भी बदतर (निम्नस्तरपर) माँ उत्तर देती है-बच्चा ! मालिकने खानसे यापन करनेको बाध्य होते हैं । मशीन एवं अन्य कोयला बहुत ज्यादा निकलवा लिया है इसलिये वैज्ञानिक उत्पादक यन्त्रोंसे ही यह भीषण समस्या शहरमें अब कोयलेकी कमी नहीं है। हल होने वाली नहीं है, उस समस्याको सुलझानेके शहरमें कोयला अधिक गया है, इसलिये लिये तो कृषि-प्रधान-देश भारतमें उद्योग-धन्धोंका आज तेरे घरमें कोयला नहीं है।। प्रसार ही श्रेयस्कर होगा; वर्ना यह असम्भव है कि यह पंजीवादी मनोवृत्तिका परिणाम । चूंकि एक हम अपने ग़रीब भारतीय मानवको दोनों समय और कोयलेका अम्बार लगा हुआ है इसी कारण दूसरी भोजन एवं समुचित वस्त्रकी व्यवस्था कर सकें। ओर मजदुर श्रेणीका मानव ठण्डसे ठिठुर रहा है। __ हाँ, मशीनोंका प्रसार उच्चस्तर वालोंका माप- उपर्युक्त बातें विज्ञानसे सम्बन्धित हैं, लेकिन दण्ड किसी सीमा तक विस्तृत कर सकता है; लेकिन अहिंसाकी उपादेयताका प्रश्न जटिलरूप धारण करता निम्नस्तर वाला सर्वहारा वर्ग उसी प्रकार अपना जारहा है । एक ओर तो गान्धी अपने आत्मबल दीनतामें मरणाश्रु बहाता रहेगा जिस प्रकार सदियों एवं अहिंसाके प्रयोगोंसे विश्वको चुनौती देरहा है कि से बहाता रहा है । हाँ, किसी प्रकारके सुधारके यदि विश्वमें शान्ति स्थापित होगी तो वह 'अहिंसा' सद्भावसे उसके यह आँसू हम पोंछनेमें समर्थ हो से ही; वर्ना यह असम्भव है कि अन्य साधन विश्वमकते हैं । महात्मा गान्धीकी अहिंसा एवं उनके शान्तिमें कारगर हो सकें। लेकिन दूसरी ओर रचनात्मक कार्य-क्रमपर आज हम ग्रामीण भारतीय अपनी मैत्री बनाये रखनेका स्वप्न देखते हुए 'मित्रराष्ट्र तथा जैन्टिलमैन मिस्टर भारतीयका भी विकास परमाया-बमको मित्रताका आधार मान मैत्री-संबन्ध कर मकते हैं ? स्थापित करते है और तरह-तरहकी Peace पूंजीवादका सम्बन्ध ___Confrences और शान्ति-प्रसारक सम्मेलन करते _ विज्ञानकी रोक-थाम अधिकांश रूपमें पूंजीवादी हैं। भगवान जाने कहाँ तक “परमाणु-बम"की सत्तापर निर्भर करती है । जिस देशमें धनिकवर्ग मित्रता मित्रताके रूपमें टिक सकती है ! हाँ, यह अपनी सत्ता स्थापित करनेकी राह सोचेगा उस होसकता है कि जब रोगी ही न रहेगा तो रोग तो देशमें यह निश्चय है कि सर्वहारा (मजदूर) वर्ग भी स्वयं चला जायगा । जब ये दोनों आपसमें लड़-पिट अपनी पीडाओंकी घड़ियाँ काट रहा होगा । एक कर मर जायेंगे तो शान्तिका साम्राज्य तो सम्भव है कहानी इस समय याद आती है। ही ? वह समय भी तो दूर नहीं है। . ___ रूसमें किसी जगह एक चित्र टॅगा था, जिसका बापूका यह सिद्धान्त ठीक है कि 'कटुता कटुतासे श्राशय इस प्रकार है नहीं मिट सकती। रक्तरञ्जित पट स्वच्छ जलसे ही ___ एक बच्चा अपनी माँसे कह रहा है। माँ ठण्ड साफ किया जा सकता है । विज्ञान द्वारा मिटती लग रही है कोयला जला दो। मानवता यदि सुरक्षित रक्खी जा सकती है तो वह माँ उत्तर देती है-बच्चा घरमें कोयला नहीं है। अहिंसाके पालनसे ही, अन्यथा परिणामकी माँ, घरमें कोयला क्यों नहीं है ? बछने पूछा। भयंकरताका ठौर-ठिकाना नहीं'।
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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