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________________ [ लेखक-बाबू राजकुमार जैन 'कुमार' ] बुढ़िया हताश हो बैठी, अब कोई भी आशा शीजी ५० के ऊपर थे, परन्तु अपनेको " शेष न रही थी। जितना परिश्रम हो सकता था किसी नौजवानसे कम न समझते थे। किया, किन्तु बिना दहेजके कुछ न बनता था । चार-चार पुत्र होते हुए भी आपको बुढिया सोच रही थी-"क्या मेरी गोमती जीवनभर शादीका खब्त सवार था । सोचते थे अविवाहित ही रहेगी? दहेजके बिना क्या उसको किसी खिलती-सी कलीपर हाथ मारूँगा । क्या है, या है, कोई न अपनायेगा ? क्या संसारमें रुपयेके बलपर हजार-पाँचसौ खर्च हो जायेंगे, उतनी ही कसर ही शादियाँ होती हैं ?" यही सब कुछ सोचते-सोचते हीराके व्याहमें दहेजमें निकाल लूंगा। अपने ब्याहके बुढियाके नेत्र सजल हो गये। आँसू पोंछे और फिर लिये ही उन्होंने हीराके विवाहको एक वर्षके लिये सोचनेमें तन्मय हो गई । न जाने कबतक वह स्थगित कर दिया था । बेचारा हीरा इससे सोचती रही, रोती रही और आँसू पोंछती रही।। अपरिचित था । उसे क्या पता था कि मुंशीजीने विवाह करनेकी ठानी है और इसी वर्ष ! गोमती घड़ा उठाकर पानी भरने चल दी। उसे एक दिन मुंशीजीने सोचा कि अपने विवाहके पता नहीं था कि उसकी माँ उसके विवाहके लिये बारेमें अपने बेटेकी भी सलाह लेलूँ तो क्या हर्ज है। इतनी चिन्तित है और न उसने ही कभी अपनी अवसर अच्छा समझ कर बोले-"बेटा हीरात ही चिन्ता उसपर प्रकट होने दी थी। गोमती यह तो देख कि खाने-पीनेकी कितनी तकलीफ़ है जबसे भलीभांति समझती थी कि उसके विवाहके दिन श्रा तेरी माँ मरी है, घरका सब काम-काज चौपट हो र गये हैं, किन्तु वह उसके लिये अपनी माँकी भाँति गया है। हप्ते भरमें एक समय भी भोजन ठीकसे चिन्तित न थी। उसके मन-मन्दिरमें तो हीरा कभीसे नहीं मिलता।" मुंशीजी एकाएक कहते-कहते सक बैठा हुआ था । प्रतिदिन उसके दर्शन कुएँपर हो गये, फिर बिना उत्तर पाये ही बोले-"कुछ इलाज M जाते थे और वहींपर दो-चार बातें भी। भी तो नहीं सूझता इसका ?" इतना कह कर वह रोजकी भाँति आज भी हीरा वहीं मिला। हीराके मुँहकी ओर ताकने लगे । हीराके मुँहसे गोमती उसे देखते ही खिल उठी । उस विश्वास था अचानक निकल पड़ा-"पिताजी, अप शादी क्यों कि उसका विवाह हीरासे होगा, लेकिन इतना दृढ़ नहीं कर लेते ? आपको भी आराम रहेगा और नहीं जितना कि हीराका । हीरा बोला--"गोमती, हमको भी। बिन माँके क्या जीवन ?" "हाँ बेटा, आज देर क्यों करदी ?" "नहीं तो, तुम तो रोज ही यही करूँगा". मुंशीजी अपने मनकी सुन कर यही कहते हो ।" सुनकर हीराने कुछ लज्जाका सहानुभूति-सी प्रकट करते हुए बोले । काफी समय अनुभव किया। उसने उसके हाथसं घड़ा लेकर रख तक पुत्र और पितामें इसी विषयपर बातें होती रहीं। दिया। पास ही एक वृक्ष था, उसीके नीचे दोनों बैठ हीरा यह भी समझ गया कि उसका विवाह एक कर बातें किया करते थे । आज भी वही पहुँचे। सालके लिये स्थगित कर दिया गया है। हीरा पुनः बोला-"तुम्हें एक बातका पता है गोमती ?"
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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