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________________ विषय-सूची १ - समन्तभद्र भारती के कुछ नमृने ( युक्त्यनुशासन ) - [ सम्पादक ] २ - गोम्मटसार और नेमिचन्द्र - [सम्पादकीय ] २९७ ३०१ ३२३ ३२६ ५ – रत्नकरण्ड और श्राप्तमीमांसाका एक कर्तृत्व प्रमाणसिद्ध है - [न्या० पं० दरबारीलाल कोठिया ] ३२= ६–जैन स्थापत्यकी कुछ अद्वितीय विशेषताएँ - [ बाबू ज्योतिप्रसाद जैन, एम० ए० ] ३४३ ७- अतिशय क्षेत्र चन्द्रवाड - [पण्डित परमानन्द जैन शास्त्री ] ३ - फल ( कहानी ) - [ बाबू राजकुमार ] ४ - वैज्ञानिक युग और अहिंसा - [श्रीरतन जैन पहाड़ी] ३४५ ८- श्रा० माणिक्यनन्दिकं समयपर अभिनव प्रकाश - [ न्यायाचार्य पण्डित दरबारीलाल कोठिया ] ३४९ ९ - जैनादर्श (जैन गुण-दर्पण ) - [ युगवीर ] ३५४ .... १० - वीतराग स्तोत्र ( पद्मनन्दिकृत ) - [ सम्पादक ] ३५५ ११ – दक्षिण भारतके राजवंशों में जैनधर्मका प्रभाव - [बाबू ज्योतिप्रसाद जैन बी० ए० एल० एल० बी० ] ३५६ १२ – युग-गीत (कविता) - [पं० काशीराम शर्मा 'प्रफुल्लित' ] ३६२ ३६३ १३- प्रतिष्ठासारका रचनाम्थल- - [ के. भुजबली शास्त्री, विद्याभूषण ] वीर शासन - जयन्तीकी - श्री वीर शासन- जयन्तीकी पुण्यतिथि श्रावण कृष्ण प्रतिपदा जो इस वर्ष शुक्रवार ताः ४ जुलाईको पड़ती हैं, इतिहास में अपना विशिष्ट स्थान रखती है, और एक ऐसे सर्वोदय धर्मतीर्थ की जन्म तिथि है कि जिसका लक्ष्य सर्वप्राणी हित रहा है । इसी दिन अहिंसा अवतार भगवान महावीरका तीर्थ प्रवर्तित हुआ था, उनके धर्म-शासनका प्रारम्भ हुआ था, लोक हितार्थ उनका सर्व प्रथम दिव्य उपदेश हुआ था, उन्होंने सभी प्राणियों को उनके कल्याणका संदेश सुनाया था, दुखोंसे छूटनेका सहज सुगम मार्ग बताया था, लोगोंको उनकी भूलें सुझाई थीं, उनके हम छुटाये थे, और यह बताया था कि सच्चा सुख और श्री आजादी अहिंसामयी आचरण, अनेकान्तात्मक उदार दृष्टिकोण एवं समता रूप परिणामोंक अपना में ही है, इसीसे सर्व बन्धनोंका नाश, गुलामीका अन्त और परतन्त्रतासे वास्तविक मुक्ति मिल सकेगी | उन्होंने बताया कि सब ही प्राणियों की आत्माएँ समान हैं और अपना उत्थान एवं पतन प्रत्येक व्यक्ति के अपने ही हाथमें है, उसके लिये दूसरोंका महारा तकना या उन्हें दोप देना भूल हैं। भगवान महावीरद्वारा प्रतिपादित आत्म-विकास पुण्यतिथि एवं आत्म-कल्याणका मार्ग सीधा, सरल और वास्तविक है। उससे पीड़िति पतित, मार्गच्युत जनों को अपने उद्धारका आश्रासन मिला, स्त्री व शूद्रादिकोंपर होने वाले अत्याचारोंका अन्त हुआ, समाजगत ऊंचनीचके भेद-भाव धर्म-साधनमें बाधक न बने रह सके, जीवहिंमा, पशुबलि, अभक्ष्य भक्षण, कुव्यसनसेवन तथा अन्याय कार्योंसे जनताकी प्रवृत्ति हटने लगी । शान्ति, सदाचार, उदारता, सद्भावना और धार्मिकताका युग अवतीर्ण हुआ । प्राचीन भारत में उसी दिन वर्षका प्रारम्भ भी हुआ करता था । अस्तु, वीर-शासन जयन्तीकी यह पुण्यतिथि सर्वलोकहित, सर्वोत्थान, विश्वबन्धुत्व एवं सार्वजनिक स्वाधीनताकी प्रतीक है और इन उद्देश्योंमें आस्था रखने वाले प्रत्येक व्यक्तिका कर्तव्य है कि वह इस पुण्यपर्वको यथार्थ रूप में मनाये । वीर सेवामन्दिर ( सरसावा ) में यह उत्सव गत वर्षो की भांति इस वर्ष भी, शुक्रवार ४ जुलाईको मनाया जायगा । आशा है, सभी वीरशासन- प्रेमी अपने-अपने स्थान, नगर, प्रामादिकमें भी उसे मनानेका उपयुक्त आयोजन करेंगे । - जुगलकिशोर मुख्तार
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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