SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 427
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किरण १२ ] रत्नकरण्डक-टीकाकर प्रभाचंद्रका समय ४६७ किन्तु पं० आशाधरजीकी सागारधर्मामृत-टीकाके, और आप्तमीमांसाके एक कर्तृत्व-विषयक अपने लेख जिसका रचनाकाल उसमें वि० सं० १२९६ दिया में 'रत्नकरण्डक-टीकाके कतृत्वपर सन्देह और हुआ है, बादकी जान पड़ती है और वह रत्नकीर्तिक भ्रान्त उल्लेख' उपशीर्पकके नीचे स्पष्ट करके पट्टशिष्य प्रभाचन्द्रकी बनाई हुई होसकती है, जिनका बतलाया है । पटारोहण-समय पट्टावलीम वि० सं० १३१० दिया यदापि अब इम विषयमें दूसरे किसी विद्वान्का है और इस लिये रत्नकरण्डक-टीकाकार प्रभाचन्द्र- कोई खास मतभेद मालूम नहीं होता, फिर भी हम का समय विक्रमकी १३वीं शताब्दीसे पूर्व नहीं है। , ___ यहाँपर कुछ ऐसे साधक प्रमाण उपस्थित करते हैं परन्त यह विचार उनका उस समयका था जबकि जिनसे यह विषय और भी स्पष्ट होजाता है अर्थात् आमतौरपर भगवजिनसेनाचायके आदिपुराणमें रत्नकरण्डकी हय टीका प्रमेयकमलमार्तण्डकारकी ही उल्लिखित 'चन्द्रोदय' के कर्ता प्रभाचन्द्रको ही हा कृति प्रसिद्ध होती है और उसपरसे उसका समय 'न्यायकुमुदचन्द्रोदय' अथवा 'न्यायकुमुदचन्द्र'का भी निश्चित होजाता है:कर्ता समझा जाता था। बादको न्यायकुमुदचन्द्र'के प्रकाशित होनेपर जब उसकी प्रस्तावना-द्वारा नये १ ताकिक प्रभाचन्द्राचायने अपना प्रमेयकमलप्रमाण प्रकाशमें आए तथा मेरे द्वारा यह बात भी मात्तण्ड धारानरेश भाजदेव (वि० सं० १०७५मुख्तार साहबको सुझाई गई कि रत्नकरण्डक- १५१०) के राज्यकालम बनाया हे और न्यायकुमुदकी यह टीका वि० सं० १३००में निर्मित हई अनगार- चन्द्र आदि ग्रन्थ भोजदेवके उत्तराधिकारी जयसिंह धामृतकी टीकाकं अवसरपर ही नहीं किन्तु संवत नरेश (वि० सं० १११२) के राज्यसमयमें रचे हैं। ५२९६में रची जाने वाली सागारधर्मामतकी टीका जैसाकि उनकी प्रशस्तियोंम दिये गये निम्न समाप्तिसमय भी पं० आशाधरजीके सामने मौजूद थी; पुप्पिका-वाक्योंस सिद्ध हैक्योंकि पण्डित आशाधरने सागारधर्मामृत-टीका 'श्रीभाजदेवराज्य श्रीमद्धारानिवासिना परापरपर (पृ० १३७) में रत्नकरण्डक 'विषय-विपतोऽनुपेक्षा' मेष्टिपदप्रण.माजितामलपुण्यनिराकृत-निखिलमलकनामक पद्यका उद्धृत करके उसके उम समस्त पद- लईन श्रीमत्प्रभाचन्द्रपण्डितन निखिल-प्रमाण-प्रमेयव्याख्यानको भी थोड़ेस शब्द-भंदके साथ प्रायः ज्यों- स्वरूपोद्यातपरीक्षामुखपदमिदं विवृतमिति ।' का त्या उद्धृत किया है जो इस टीकाम उक्त पद्यक -पृ०६९४ (प्र० मा० द्वि० श्रा०)। व्याख्यानाऽवसरपर प्रभाचन्द्र के द्वारा उपस्थित किया 'इति श्रीजयसिंह देवराज्यं श्रीमद्धारानिवासिना गया है, तब उन्हें अपनी पुरानी मान्यताका परापरपरमेष्ठिप्रणामोपार्जितामल पुण्यनिराकृनिखिलआग्रह नहीं रहा । अतः मुख्नार साहबकी उन युक्तियोंको यहाँ देकर उनपर विचार करनेकी जरूरत मलकलङ्घन श्रीमत्प्रभाचन्द्रपण्डितेन न्यायकुमुदचन्द्रो लघीयन्त्रयालङ्कारः कृत इति मङ्गलम ।'-न्यायकुमुदनहीं रहती, जिनके आधारसे उन्होंने अपना उक्त चन्द्र द्वि० भा० पृ०८८० विचार प्रस्तुत किया था। श्रीमान पं० नाथूरामजी प्रेमी पहले ही इस बात ठीक इसी तरह (न्यायकुमुदचन्द्र जैसा) गद्यकथाको मान चुके हैं कि रत्नकरण्डकी यह टीका उन्हीं कोशमं भी ८९वीं कथाकं बाद समाग्नि-पुष्पिका-वाक्य प्रभाचन्द्रकी कृति है जो प्रमंयकमलमार्तण्ड और पाया जाता है । यथान्यायकुमुदचन्द्रादिके कर्ता हैं । न्यायाचार्य पण्डित श्रीजयसिंहदेवराज्य श्रीमद्धारानिवासिना परापरमहेन्द्रकुमारजीकी भी यही मान्यता है, जैसाकि हमने परमेष्ठिप्रणामोपार्जितामलपुण्यनिराकृनिखिलमलअनेकान्तकी गत किरणके पृष्ठ ४२२ पर रत्नकरण्ड कलङ्गेन श्रीमत्प्रभाचन्द्रपण्डितेनाराधनासत्कथा
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy