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________________ किरण १२ ] माहित्य-परिचय और समालोचन ४५९ हैं। मफाई-छपाई आदि मब उत्तम है। पाठक एक प्रगति-प्रवाह, ऊर्मियाँ, गीति-हिलोर और सीकर बार इसे अवश्य पढ़ें। विभागोंमें विभाजित करके उनके संक्षिप्त परिचयके भारतीय ज्ञान-पीठके सात प्रकाशन साथ उनकी कुछ कुछ सुन्दर सुन्दर कवितायें संग्रहीत की गई हैं। कवियों और कवित्रियोंकी कुल संख्या १ जैन शासन-लेखक, पं० सुमेरचन्द्र दिवाकर, ९२ है। वस्तुतः सम्पादिकाजीकी सृभ और भारतीय शास्त्री, न्यायतीथ B. A., LL.BI प्रकाशक, श्री ज्ञान पीठका प्रयत्न दोनों मराहनीय हैं। यह पुस्तक अयाध्याप्रमाद गायलीय, मन्त्री भारतीय ज्ञान-पीठ, संसारक कविया और कविनियों समन जैन दुर्गाकुण्ड रोड, बनारस । मूल्य, ५\-)| कवियों और कवित्रियोंके गौरवको बढ़ाने वाली है, यह साहू शान्तिप्रमादजी डालमियानगर द्वाग इसमें सन्देह नहीं । सफाइ-छपाई सुन्दर, शुद्ध और अपनी पुण्यश्नाका माता स्व. मृति देवीकी स्मृतिमें आकर्षक है । मूल्य अवश्य कुछ ज्यादा है। मंम्थापित ज्ञानपीट मृति देवी जैन ग्रन्थमालाका ३ पथ-चिह्न-लेखक, श्रीशान्तिप्रिय द्विवेदी। हिन्दी विभाग सम्बन्धी तीगग ग्रन्थ है । इसमें लखकन शान्तिकी ओर, धर्मके नामपर, धर्मकी प्रकाशक, उत्त भारतीय ज्ञानपीठ काशी । मूल्य २) आवश्यकता, धमकी अाधार शिला आदि ५९ विपयों लखकन यह पुस्तक अपनी बहिनके बहाने द्वारा जैनशामनका परिचय कराया है। जैन धर्मका भारत माताका लक्ष्य करके भारतीय संस्कृति और परिचय करानमें य: पुस्तक उपयोगी सिद्ध होगी. भारतीय कलापर लिखा है । वतमान अर्थमंघर्ष एमी अाशा है। दिवाकरजीने अपनी कचिके अन- प्रधान भारतमं उसकी सप्त संस्कृति और कलाकी मार विपयोंको चुनकर पीढ और उदात्त भाषा तथा अन्तश्चतनाका जगानका प्र अन्तश्चेतनाको जगानका प्रयत्न इसमें किया गया है। भावाद्वारा विपय-प्रतिपादन किया है। कहीं कहीं पुस्तक लोक-रुचिकं अनुकूल है। इसमें भावुकता आलङ्कारिक शब्द-प्राचुय भी है जो रोमी पुस्तकांम और श्रद्धाकं पर्याप्त दशन होते हैं । छपाई आदि सब भूपण न होकर दृपण है। विषयोंके कुछ शीर्षक उत्तम है । पुस्तक पठनीय है। 'पराक्रमकं प्राङ्गणम', 'मयम विन घडिय म इक्क ४ मुक्ति दूत-(एक पौराणिक रोमांस )जाद जैस अटपट और क्लिष्ट जान पड़ते है। सवे लेखक, श्रीवीरेन्द्रकुमार जैन एम. ए. । प्रकाशक, साधारणका जल्दी समझम आजान वाल शीपक उक्त ज्ञानपीठ । मल्य ४), पृष्ठ संख्या लगभग ३५०। होने चाहिए। इमगं मन्दह नहीं कि दिवाकरजीन मव माधारणकी दृष्टिसे उक्त ज्ञानपीठद्वारा इसमें पर्याप परिश्रम किया है और एक कमीकी प्रति प्रारम्भ की गई 'लोकोदय-ग्रन्थमाला' का प्रस्तुत की है । सफाई छपाई अच्छी है। जिल्द मजबूत है। पुस्तक प्रथम पुष्प है । इसमें लेखकने उपन्यासके एस प्रकाशनके लिय दिवाकरजाक साथ ज्ञान पीठ ढङ्गस पुराणणित अंजना और पवनंजयकी प्रेमभी धन्यवादाह है। कथाको चित्रित किया है जो बहुत ही सुन्दर और २ आधुनिक जैन कवि-मम्पादिका, रमा जैन, लोमाहर्पक है। उपन्यासकं गसिक पाठकोंके लिय प्रकाशक, पृक्ति । मूल्य, )। इसके पढ़ने में कहीं भी विरसनाका अनुभव न होगा ___ इस पुस्तक का एक मस्करण पहले प्रकट होचुका मंग खयाल है कि जैन पौराणिक आख्यानको है। यह दूम। संस्करण है, इसमें कितने ही नये उप-यामक ढङ्गसे प्रस्तुत करना हिन्दी जैन साहित्य कवि और कवित्रियांकी कविताओं का संग्रह और मंसारमें एक नई वस्तु है । हिन्दी ग्रन्थमालाके किया गया है। जैन संसारकं ममम्त कवियां और सम्पादक श्रीलक्ष्मीचन्द्र जैनने अपनी विद्वत्तापण कवित्रियोंको युग प्रवर्तक, युगानुगामी, प्रगतिप्रेरक, प्रस्तावना लिखकर तो इसपर सुवर्ण कलशका काम
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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