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________________ Regd. No. A-736. . . वीरसेनामन्दिरके नये कान नया मुख्तार श्री जुगलकिशोरके (हान) हिन्दी पद्यानुवाद और भावार्थ-सहित । इष्टवियोगादिके न्यायाचार्य पं० दरबारीलालजी कोठिया द्वारा सम्पादित कारण कैसा ही शोकसन्तप्त हृदय क्यों न हो, इसको एक और अनुवादित न्याय-दीपिकाका यह विशिष्ट संस्करण बार पढ़ लेने से बड़ी ही शान्तताको प्राप्त हो जाता है। अपनी खास विशेषता रखता है । अब तक प्रकाशित . इसके पाठ से उदासीनता तथा खेद दूर होकर चित्तमें संस्करणोंमें जो अशुद्धियाँ चली श्रारही थीं उनके प्राचीन प्रसन्नता और सरसता आजाती है। सर्वत्र प्रचारके प्रतियोंपरसे संशोधनको लिए हुए यह संस्करण मूलग्रन्थ योग्य है। मू०) और उसके हिंदी अनुवादके साथ प्राक्कथन, सम्पादकीय पाय 4 .1 नया १०१ पृष्ठकी विस्तृत प्रस्तावना, विषयसूची और कोई ८ प्राप्त संक्षिप्त सूत्रग्रन्थ, मुख्तार श्रीजुगलकिशोरकी मानवाट परिशिष्टोंसे मङ्कलित है, साथमें सम्पादक द्वारा नवनिर्मित। व्याख्या सहित । मू०।) 'प्रकाशाख्य' नामका एक संस्कृतटिप्पण लगा हुआ है, __ जो ग्रन्थगत कठिन शब्दों तथा विषयोंका खुलासा करता ity - मुख्तार श्री जुगलकिशोरकी अनेक प्राचीन पोको लेकर नई योजना हुया विद्यार्थियों तथा कितने ही विद्वानोंके कामकी चीज मुन्दर हृदयग्राही अनुवादादि-सहित । इसमें श्रीवीर है । लगभग ४०० पृष्ठोंके इस सजिल्द बृहत्संस्करणका वर्द्धमान और उनके बादके जिनसेनार्य पर्यन्त, २१ लागत मूल्य ५) रु० है । कागजकी कमीक कारण थोड़ी ही प्रतियाँ छपी हैं । अतः इच्छकको शीघ्र ही मॅगा : महान् आचार्योंके अनेकों प्राचार्यों तथा विद्वानों द्वारा लेना चाहिये । किये गये महत्वके १३६ पुण्य स्मरणोंका संग्रह है और शुरूमें १ लोकमंगल कामना, २ नित्यकी श्रात्म प्रार्थना, १ लेखक पं० जुगलकिशोर ३ साधुवेषनिदर्शक जिनस्तति, ४ परमसाधमखमदा और मुख्तार, हालमें प्रकाशित चतुर्थ संस्करण । ५ सत्साधुवन्धन नामके पाँच प्रकरण हैं । पस्तक पढ़ते यह पुस्तक हिंदी माहित्यमें अपने दगकी एक ही ममय बड़े ही सुन्दर पवित्र विचार उत्पन्न होने हैं यार चीज़ है । इममें विवाह जम महत्वपूण विषयका बड़ा ही साथ ही प्राचायाँका कितना ही इतिहास सामने प्राजाता मार्मिक और तात्त्विक विवेचन किया गया है, अनेक है, नित्य पाठ करने योग्य है । मू०॥) विरोधी विधि-विधानों एवं विचार-प्रवृत्तियांस उत्पन्न हुई htra ... यह पंचाध्यायी विवाहकी कटिन और जटिल ममस्याको बड़ी युक्तिके तथा लाटीसंहिता आदि ग्रन्थोंके कर्ता कविवर राजमल साथ दृष्टिके स्पष्टीकरण द्वारा मुलझाया गया है श्रार इस तरह उनमें दृष्टिविरोधका परिहार किया गया है । विवाह की अपूर्व रचना है । इसमें अध्यात्मममुद्रको कृजेमें बन्द किया गया है । साथम न्यायाचार्य पं. दरबारीलाल कोटिया क्यों किया जाता है ? उसकी अमली गरज और और पंडित परमानन्द शास्त्रीका सुन्दर अनुवाद, मैद्धान्तिक स्थिति क्या है ? धर्मसे, समाजम, और गृहस्था श्रमसे उसका क्या सम्बन्ध है ? वह कर किया जाना विस्तृत विषयसूची तथा मुख्तार श्रीजुगलकिशोरकी चाहिए ? उसके लिये वर्ण और जातिका क्या नियम लगभग ८० पेजकी महत्वपूर्ण प्रस्तावना है । बड़ा ही उपयोगी ग्रंथ है। मू० ११॥) हो सकता है ? विवाह न करनेसे क्या कुछ हानि लाभ होता है ? इत्यादि बातोंका इस पुस्तकमें बड़ा ही युति। माate. in मुख्तार पुरम्मर एवं हृदयग्राही वर्णन है । मू० ॥) श्रीजुगलकिशोरजीकी ग्रन्थपरीक्षाश्रोंका प्रथम अंश, ग्रन्थ परीयाअोंके इतिहासको लिये हुए १४ पेजकी नई प्रकाशन विभागप्रस्तावना महित । मू०।)
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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