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________________ किरण १०-११ ] ऐतिहासिक घटनाओंका एक संग्रह ३७१ १५५६-राव मालदेने 'मेहवा' बसाया, पहले १६३४-चैत्र वदि ११को कुंभलनेर भागा । अमरकोट रहता था। बादशाह अकबरकी फौज आई । फौज (दार) का १५९६-रावल जामने 'नवानगर' बसाया, नाम जादिसाहबखान खोजा। जब फौजें आने लगी पहले कच्छमें रहता था। तब राणा उदयसिंहजी गढसे उतरा, तभी मुगल १२ १५२८-राव मालदेने 'बीकानेर' लिया। ऊपर चढ़े। १६००-"बड़ी बेढ हुई, कृपा जैता, त्यांरी १६३५–महादुष्काल हुआ “परोजी १ पाली १ राणीनै राव मालदेनी सखा कोठड रह्या।" थान थयो"। १६०१-राणा उदयसिंहजीसे चित्तौड़ छूटा, १६३७–श्रावण वदि ११को राव चन्द्रसेनका तब मेवाडमें पीछले तालाबके ऊपर उदयपुर बसाया; देश भागा। (बादको) उदयसागर बँधाया। “सो भागलीधो" । १६३९–कार्तिकमें राजा श्री उदयसिंहजीका १६०२-राव मालदे वापिस जोधपुर आया. जोधपुर पर अधिकार हुआ। आकर दीवाली मनाई-शनी की। १६४२-बादशाह अकबरने जमनाजीके ऊपर १६०४-(राव मालदेने) कुँवर श्रीरामको देश 'अकबराबाद'बसाया। पहला नाम 'पारकर'था। बांट दिया। १६४२-श्री हीरविजयसूरी अकबर बादशाह १६१०-फागुन सुदी १०को राणाके चाकरोंने से मिला, धर्मचर्चा की और करामात दिखाई। गुजरातमें बादशाह मुहम्मदको मारा । उस समय १६४८-शाहजहान बादशाहका जन्म हुआ। राणा उदयसिंहने चित्तौड़ वापस लिया। १६४९ (?)-अकबर बादशाहने गुजरात ली १६११–“वैशाप सुदि २ प्रहर १ चढतां जेता (फतह की)। वतनगो भारमलांत धनराज पंचोली भाभी घरो १६५०-अकबर बादशाहने 'ब्राह्मणपुर' लिया। १६५१-श्रावणमें, राजा उदयसिंह देवलोकको माथी काम आयो” (युद्धमें एक माथ मारे गय)। प्राप्त हुआ। लाहौर में सूरसिंहजोको टीका (राजतिलक) ५६११-राव मालदने ‘मेडत' लिया और हुआ। अपने नामपर शहरके बाहर 'गढ़' कराया। १६५२-भट्टारक श्रीहीरविजयसृरि देवलोकको १६१३–फागुन दि ९को १ पहर दिनसे प्राप्त हुआ। रीयामाली गाँवमें राणा उदयसिंहने हाजीखानसे १६५६-पोष वदि दूज को सोजित (सोजित कलह (युद्ध) किया और फिर भागा। की प्रजा) भागी। १६१९--परमारमालदेने 'मालपुरा' बसाया। १६६२–कातिक सुदि २ को बादशाह अकबर १६२१–राव कल्याणमलजी नाडूलके थाने रहा। मौत (मृत्यको प्राप्त) हुआ। फागुन वदि ७को शख्न जालिमीका"चूककरीन" मारा। १६६२–मङ्गसिर वदि ७ को जहाँगीरको टीका ५६२३–मङ्गसिर वदि ११को सोजित (सोजित (राजतिलक) हुआ। की प्रजा) भागी। उदयपुर बसा। १६६५-राजा वीरबल मोडने राजगढ़ बसाया । १६२३–मङ्गमिर में उदयसागर तालाब बँधा, १६६५-कार्तिक सुदि ५ को श्रीपूज्य जसवन्तजो भाग निकला। सिंह जी हुआ, उसने जहाँगीर बादशाहको पर्चा १६२४-अकबर बादशाहने चित्तौड़ लिया। दिया, उससे धर्मचर्चा की, जजिया (टैक्स) का १६२९-राव कल्याणमलको सीरीयारी गाँवमें निवारण किया और अकबराबाद शहरमें अग्रटीका (तिलक) हुआ। वालोंक ९०००० घरोंको प्रतिबोधा (उपदेश दिया)।
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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