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________________ साहित्य-परिचय और समालोचन प्रेमी अभिनन्द ग्रन्थ-श्रद्धेय पं० नाथरामजी प्रेमी यथेष्ट परिश्रम किया है । लेखों के अतिरिक्त ३४ की चिरकालीन एवं महत्वपूर्ण साहित्यिक सेवाओं के विविध चित्रों से भी ग्रन्थ सुसज्जित किया गया है। उपलक्षमें उनका अभिनन्दन करनेके लिये, ता. इन चित्रों मेंम २८ फोटो चित्र हैं और शेप ६ कला२० अक्तूबरको नागपुर विश्वविद्यालयमें होने वाले कार श्री सुधीर वास्तगीर द्वारा निर्मित काल्पनिक अ. भा० प्राच्यविद्यासम्मेलनके अवसर पर एक चित्र हैं जो यद्यपि कलापूर्ण हैं तथापि विशेष आकउपयुक्त समारोह किया गया था, और उसमें प्रसिद्ध पक नहीं प्रतीत होते. फोटोचित्रों में भी, व्यक्तिगत नेता एवं साहित्यसेवी काका कालेलकरके हाथों प्रेमी चित्रों को छोड़कर अन्य चित्रों में जैनकला एवं जोको यह अल्य ग्रंथ समर्पित किया गया था। पुरातत्त्व संबंधी चित्रों का प्रायः अभाव है जो ग्रंथ समपण तथा अभिनन्दन समारोहका आयोजन खटकता है। लेखों में भी जेनसाहित्य इतिहास कला प्रेसो अभिनन्दन समितिको योरसे हा था, जिसके आदिपर अपेक्षाकृत बहुत कम लेख हैं और जो हैं प्रेरक श्रद्धेय पं० बनारसीदासजी चतुर्वेदी, अध्यक्ष उनमें भी इन विषयों पर पयाप्त एवं समुचित डा. वासुदेवशरण जो अग्रवाल, तथा मन्त्री श्री प्रकाश नहीं पड़ पाया। ग्रंथकी छपाई आदि तैयारी यशपाल जैन बो० ए० एल-एल० बी० थे। ला जरनल प्रेस, इलाहाबाद, में हुई है। अतएवं उत्तम तथा निर्दोप है; हाँ प्रफ आदिकी कुछ अशु__ ग्रंथके सम्पादक मंडलमें जैन अजैन, स्त्री-पुरुष, द्धियें फिर भी रह गई हैं। कुछ लेखो में अनावश्यक चोटीके ४६ साहित्यसेवी विद्वान थे और उक्त गंडलके काट छाँट भी की गई प्रतीत होती है जो उन लेखो अध्यक्ष भी डा० अप्रपालजी ही थे। ग्रंथको १८ के लेखकों की स्वीकृतिक बिना कुछ उचित नहीं उपयुक्त विभागों में विभक्त करनेकी योजना थी जान पड़ती। इसपर भी ग्रंथ सवप्रकार सुन्दर, और इन विभागों की अलग अलग कुशल सम्पादन महत्वपूर्ण, पठनीय एवं संग्रहणीय है, और इसका समितियाँ संयोजित कर दी गई थीं । किन्तु वा दमें मूल्य भी मात्र दश रुपये है जो संस्करणकी सुन्दरता उक्त १८ विभागों को सकुचित करके : ही विभाग विपुलता तथा ठोस सानग्रीको देखते हुए अत्यल्प है। रक्खे गये नो इस प्रकार हैं अनित्य-भावना–वीरसेवामन्दिरकी प्रकीर्णक पुअभिनन्दन, भाषाविज्ञान और हिन्दीसाहित्य, स्तकमालाके अन्तर्गत प्रकाशित यह पुस्तक श्री पद्मभारतीय संस्कृति पुरातत्त्व ओर इतिहास, जैनदर्शन, संस्कृत प्राकृत और जैनसाहित्य, मराठी न नन्द्याचार्य-विरचित संस्कृत 'अनित्यपञ्चाशत' और गुजराती साहित्य, बुन्देलखण्ड, समाजसेवा का पं० जुगलकिशोरजी मुख्तारकृत ललित हिन्दी और नारीजगत तथा विविध । इन विभागों के पद्यानुवाद, भावार्थ, उपयोगी प्रस्तावना एवं पद्याअन्तर्गत १२७ विभिन्न अधिकृत विद्वान लेखको नुक्रमणिका सहित तथा मुख्तार साहब द्वारा ही द्वारा प्रणीत १३३ महत्वपूर्ण लेख संगृहीत हैं । प्रायः सम्पादित, संशोधित परिवद्धित तृतीय संस्करण सब ही लेख मौलिक, गवेपणापूर्ण एवं स्थायी मूल्य के हैं। इनमेंसे ४० लेख जैनदर्शन साहित्य इतिहास है। पुस्तक बहुत लोकोपयोगी, उपदेशप्रद एवं पठसमाज आदिके सम्बन्धमें हैं । लेखों के सम्मादनमें नीय है और जनसाधारणमें वितरण करने योय सम्पादकाध्यक्ष तथा अन्य संपादक महोदयों ने भी है। छपाई सफाई सन्तोपजनक है ।मू० चार आने है।
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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