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________________ २८० अनेकान्त [वर्ष ८ - होता, किन्तु फिर भी मैं यह सन्देह किये बिना है अतः इसी प्रसंगमें उसका उल्लेख करना सर्वोपनहीं रह सकता कि कोनों में स्थित दुमंजिले भवन युक्त है। ये स्तंभ उसी श्रेणीके हैं जैसे कि श्राबू और अन्य इमारतों में से भी कुछएक अपने मूलरूप पर्वतपर ( देलवाड़ाके जैनमन्दिरों में ) प्रयुक्त हुए में ही अवस्थित हैं; किन्तु इसपर हम अजमेरी हैं-सिवाय इसके कि देहलीवाले स्तंभ उनकी अपेक्षा मस्जिद के प्रकरणमें जिस मरिंजद में कि जैनस्तंभ अधिक समद्ध और अधिक श्रमपूर्वक निर्मित हैं। प्रायः निश्चयतः अपनी प्राथमिक योजनानसार इनमेंसे अधिकाँश तो संभवतः ११ वीं या १२ वीं स्थित हैं. पुनः विचा करेंगे । तथापि यह पूर्णतः शताब्दीके हैं और भारतवर्ष में उपलब्ध उन थोड़ेसे निश्चित है कि कुतुबके कितने ही स्तंभ वैसे ही खंडों नमूनों में से हैं जो कि अलङ्कारों ( सजावट ) से से निर्मित हैं, और वे मस्जिदके निर्माताओं द्वारा अत्यधिक लदे हुए हैं। इनमें, सिवाय परदेके पोछ उन स्थानों में स्थापित किये गये हैं जहां वे आज भी वाले स्तंभो के तथा उनसे कुछ एकके जिनका संबंध अधिक प्राचीनतर भवनों से था, सबमें ही ___ वह भाग अर्थात् प्रधान स्तंभश्रेणीका अधभाग शिरोभाग (चोटी) से लगाकर मूल तक एक इंच (जो कि महराबों की विशाल शृंखलाके सन्मुख पड़ता स्थान भी कहीं सजावटने खाली नहीं है । तिसपर है) अपने रूपको स्वयं शब्दों की अपेक्षा कहीं अधिक भी इनकी सजावट इतनी तीक्ष्ण है और इतनी चतु- . भले प्रकार स्पष्ट करता है । वह इतना विशुद्ध राई एवं कुशलतासे अङ्कित की गई है और उसका जैन है कि उक्त शैलीका कथन करते हुए उसका प्रभाव उनकी जीणशीर्ण अवस्थामें भी इतना चित्रोकथन शायद वहीं करना चाहिये था; किन्तु वह पम है कि ऐसी अत्यधिक सौन्दर्यपूर्ण वस्तुमें कोई भारतवर्षकी चूंकि सबसे प्राचीन मस्जिदका एक अंग भी दोप ढूढ निकालना अत्यन्त कठिन है । कुछ स्तंभोमस उनक -माटा ' जनरल कनेवमको उसकी दीवारपर एक अभिलेख अङ्कित । मिला था जिसमें लिखा था कि इस मस्जिदके वास्ते काट-तोड़ कर निकाल दिया गया है जो कि मुसलसामग्री प्रदान करनेके लिये २७ भारतीय मन्दिर नष्ट म च.रती किये गये थे (पार्कोलोजिकल रिपोटस, जिल्द १ ५० थीं। किन्तु छतमें तथा कम दीख पड़ने वाले भागों १७६) । तथापि इसपरसे विशेष कुछ सिद्ध नहीं होता में जैन अहंतो की पद्मासनस्थ मूर्तियाँ और उस जब तक कि किसीको यह मालूम न हो कि इस कार्यके लिये जो मन्दिर ध्वंस किये गये वे कैसे थे। खजराहो से धर्मके अन्य चिन्ह-धार्मिक प्रतीक-आदि अब भी २७ मन्दिर, गन्थई मन्दिरको छोड़कर, इसके अन्दरूनी लक्षित किये जा सकते हैं। मंडपोंके प्राधेके लिये भी स्तंभ प्रदान नहीं कर सकते, और सादरी जैसा एक ही मन्दिर पुरी मस्जि के लिये यह स्पष्ट नहीं होता कि मीनारकी खड़ी बांसुरी पर्याप्त सामग्री प्रस्तुत करदेता, यद्यपि यह मन्दिर बहुत अर्वाचीन है तथापि यह मानलेनेका भी कोई कारण नहीं नुमा कोनियें कहाँसे नकल की गई हैं-खरासान है कि मुस्लिमकालसे पूर्व ऐसे मन्दिर अवस्थित ही नहीं तथा और सुदूर पश्चिममें पाई जानेवाली मीनारों की हो सकते थे। किसी प्रकल्पक विशेषतासे, या कि वे जनमन्दिरों की ---- कित ।
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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