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________________ किरण ६-७ ] कथा भी कहते हैं। और चौथी रचना जिनरात्रि कथा है जिसमें शिवरात्रि कथाके ढंगपर जिनरात्रिके प्रतका फल बतलाया गया है । इनके सिवाय 'चन्द्रप्पह चरिउ' नामका अपभ्रंशभाषाका एक ग्रन्थ और है उसके कर्ता भी यशः कीर्ति हैं । वे प्रस्तुत यशःकीर्ति हैं या कि अन्य कोई यशःकीर्ति है इसका ठीक निश्चय नहीं; क्योकि इस नामके अनेक विद्वान् होगए हैं +1 ' भाषाका जैनकथा-साहित्य अथनी कथा - इस कथा के कर्ता प्रसिद्ध कवि र हैं जो भ० यशकीर्तिके समकालीन विक्रमकी १५ वीं शताब्दी के उत्तरार्ध और सोलहवीं सदीके प्रारम्भके विद्वान् हैं। पद्मावती पुरवालकुल में समुत्पन्न हुए थे, उदयराजके anta और हरिसिह के पुत्र थे, ग्वालियरके निवासी थे । इन्होंने वि० सं० १४६६ में सुकौशलचरितकी रचना की है, यह श्राशुकवि थे और जल्दी ही सरल भाषामें कविता करते थे । कवि रद्दधूने ग्वालियरके तोमरवंशी राजा डूंगरसिंह के और उनके पुत्र कीर्ति सिंहके राजकालमें धनेक ग्रंथों की रचना की है और मूर्तियों की प्रतिष्ठा भी कराई है। वे प्रतिष्ठाचार्य नामसे प्रसिद्ध भी थे । कविने प्रस्तुत 'प्रथमी' कथा में रात्रिभोजन के दोषों श्रौर उससे होनेवाली व्याधियोंका उल्लेख करते हुए लिखा है कि दो बड़ी दिनके रहनेपर धावक लोग भोजन करें; क्योंकि सूर्य के तेज मंद होने पर हृदयकमल संकुचित हो जाता है, श्रतः रात्रिभोजनका धार्मिक तथा शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टिसे त्यागका विधान किया है, जैसा कि उसके निम्न दो पद्योंसे प्रकट है " जि रोय दलदिय दीण श्ररणाद, जि कुट्ठ गलिय कर करण सवाह । दुग्गु जि परियण वग्गु हु सु-रयरिहिं भोय फत्तु जि मुहु ॥ = ॥ घड़ी दुइ वासरु थक्कइ जाम, सुभोय सावय भुजहि ताम । दियायरु उ उजि मंदर होइ सकुकुच्चइ चित्तहु कमलु जि सोइ ॥ ६ ॥ + विशेष परिचत्रके लिये देखो, जैन सिद्धान्तभास्कर भाग ११ किर २ में मेरा भ० यशः कीर्ति नामका लेख । ૨૭ ने पुण्यासव कहा इस कथा ग्रंथ में कविवर रह‍ पुण्यका श्राश्रव करनेवाली व्रतों की कथाएँ दी हैं । ग्रंथ में कुल तेरह संधियाँ हैं । इस ग्रंथ की रचना कविवर रहधने महाभव्य साहू ने मिदास की प्रेरणा की है, और इसलिये यह ग्रंथ भी उन्हीं के नामांकित किया गया है। ग्रंथप्रशस्तिमें साहू ने मिदास के परिवारका विस्तृत परिचय निहित है । कविवर रहने अपभ्रंशभाषामें २३-२४ ग्रंथोंकी रचना की है + | . थमी कथा (द्वितीय) - इस कथाके कर्ता कवि हरिचन्द्र हैं जो अग्रवाल कुलमें उत्पन्न हुए थे। इसके सिवाय इनका कोई परिचय उपलब्ध नहीं होता । प्रस्तुत कथा पं० रद्दधूकी उल्लिखित कथासे बढ़ी है, यह १६ कड़वकोंमें समाप्त हुई है । और उसमें रात्रिभोजनके शेषका उल्लेख करते हुए उसके त्यागकी प्रेरणा की गई है । inter आदि १५ कथाएँ — इन कथाओंके कर्ता भट्टारक गुणभद्र हैं। यद्यपि गुणभद्र नामके अनेक विद्वान श्राचार्य और भट्टारक प्रसिद्ध हैं । परन्तु ये भट्टारक गुणभद्र उन सबसे भिन्न हैं। यह माधुरसंधी भट्टाकमलकीर्तिके शिष्य थे और अपने उन गुरुके बाद गोपाचल के पट्टपर प्रतिष्ठित हुए थे। इनकी रची हुई निम्न पन्द्रह कथाएँ पंचायती मन्दिर देहलीके गुटका नं० १३ १४ में दी हुई हैं, जो संवत् १६०२ में श्रावण सुदी एकादशी सोमवार के दिन रोहतकनगर में पातिसाह जलालुद्दीन के राज्यकाल में लिखा गया है* । उन कथाओंके नाम इस प्रकार हैं :1 १ अतवयकहा २ सवरणबार सिवि कहा ३ पकड़ा ४ हपंचमी कहा ५ चंद्रायण वयकहा ६ चंद्रट्ठी कहा ७ गरयउतारी दुद्धार सकहा गिद्दहसतमी कहा मउडसत्तमी कहा १० पुष्कं जलि - वयका ११ रयरणत्तयविहारका १२ दहलक्खण् वयका १३ लद्धिवर्या वहाण कहा १४ + देखो, अनेकान्त वर्ष ५ किरण ६-७ । ८ * श्रथ संवासरे स्मिन् श्रीनृपविक्रमादित्यराज्यात् संवत् १६०२ वर्षे श्रावणसुदि ११ सोमवासरे रोहितासशुभस्थाने पातिसाह जलाली, (अलालुद्दीन) राज्यप्रवर्तमाने ॥ छ ॥
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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