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________________ २२६ अनेकान्त [वर्ष ८ विद्वान सम्पादकमे भी 'कुटिकाका अर्थ 'कन्याम्' स्वामीसमन्तभद्रकी उक्तिमें भी 'ठक्क' शब्द आया है, अर्थात् पुत्री किया है। जो कि श्रद्धेय पं० जुगलकिशोरजी मुख्तारके मतानुसार प्रस्तुत कथाका प्रारंभ इस प्रकार होता है--उत्तरा. पंजाब देशका ही घातक है । कनिघम साहिबने अपने पथके वलदेवपुर में बलवधन नामक प्रतापी राजा था ग्रन्थ 'एन्शेन्ट जागरफी' में भी ठक्क देशका पंजाबसे जिमकी अनि सुन्दर कुल वधनी नामकी रानी थी। उस ही समीकरण किया है । मि. लेविस राइस, एडवर्ड नगरमें धनदत्त नामक एक 'टक्क श्रेष्ठी' + रहना था। पी० राइस, तथा रा०व० भार० नरासिहाच.येरने भी इसकी स्त्रीका नाम धनदत्ता था । इनके धनदेवी ठक्क को पंजाब देश ही लिखा है। न मकी पुत्री थी । इस नगरमें एक दूसरा 'टककश्रेष्ठी' अतः इसमें सन्देह नहीं रह जाता कि वृहत्कथापूणभद्र रहता था। इसकी स्त्रीका नाम पूर्णचन्द्रा था और पुत्रका पूर्णचन्द्र । एक दिन पूर्णभद्रने धनदत्तसे कोषकी प्रस्तुत कथामें उल्लिखित टक्कश्रेष्ठीका अर्थ कहा कि 'आप अपनी पुत्री धनवतीका विवाह मेरे पंजाबी सेठ ही है, और उसके साथ लड़कीके अर्थमें पुत्र पूणचन्द्र के साथ करदें।' धनदत्तने उत्तर दिया शुद्ध पंजाबी शब्द कुड़ीके संस्कृत रूप 'कुटिका' शब्द कि यदि आप मुझे बहुत-पा धन देखें तो मैं अपनी का योग सर्वथा संगत और उचित है। दूसरे, लड़को दे।' इसपर पूर्णभद्र बोला धन भाप चाहे पंजाब प्रान्तमें सदेवसे ही लड़कियों की कुछ कमी रहती जितना लेलें लडकी जल्दी देदें। भाई है और इसलिये वहाँ कन्याविक्रय प्रायः होता कथामें धनदत्त और पूर्णभद्र दोनोंके ही लिये रहता है । कथामें धनदतका अपनी लडकीके बदले में 'टक्वश्रेष्ठी' शब्द प्रयुक्त हुआ है और प्रो• मूलराज धनकी मांग करना इसी बातको सूचित करता है। जीने इसका अर्थ किया है टक्कदेशका अथवा टक्क कथाकोपके उपर्युक्त संस्करणकी भूमिका (पृ०. देशका रहने वाला । बृहत्कथाकोषकी कथा नं. ६३ १०१-११०) में डा० उपाध्येने ऐसे लगभग ३५० शब्दों में भी टक्कः, टक्कनी. टक्ककानाँ शब्द आये हैं (श्लोक का कोष दिया । जो प्रचलित प्रान्तीय भाषाओं, ६५, ६२,६७) । और वहाँ डा० उपाध्येने टक्क या प्राकृत या देसी भाषाओं में प्रयुक्त होते हैं किन्तु टक्ककका पर्थ कंटक-कंजूम (a niggard) किया संस्कृत साहित्यमें जिनका प्रयोग नहीं होता । इन है और अनुमान किया है कि संभवतया 'ठक्क' शव्दकी शब्दोंका कथाकोषकारने संस्कत रुप देकर या अपने भाँति यह कोई पेशेवर नाम (a professional मल रूपमें ही प्रय ग किया है डा. उपाध्येके शब्दोंमें name) हेx । किन्तु जैसा कि प्रो० मूलराजगीका ये शाब्दिक प्रयोग अपने रूप और अर्थों द्वारा सहज कशन है कि कोषों में टक्क नाम बाहीक जातिका है। में भारतवर्षीमानिक भाषाओंके तत्तत् शब्दों राज र रङ्गिकी (५, १५०) में भी टक्देशका उल्लेख ___ का स्मरण करादेवे हैं-चाहे ये भाषायें आर्य हों या है और इससे पंजाबका तात्पर्य है । पंजाबके पवंत दाविद. और इन शब्दों के लिये तत्सम तद्भव प्राकृत प्रदेशकी लिपिको आज भी 'टाकरी' कहते हैं ' अस्तु अथवा देसी शब्द उपलब्ध हों या न हों।" कमसेकम प्र तुप्त कथामें तो टक शब्द का अर्थ क्षेत्र सूचक अर्थात पंजाब ही ठीक अँचता है। बाहिक (टक्क) इस प्रकार, विशाल जैन साहित्यके सम्यक् अध्ययन जतिका निवास पश्चिमोत्तर प्रान्तमें ही था । श्रवण द्वारा विभिन्न आधुनिक भारतीय लोकभाषाओंके न बेलगोलके प्रसिद्ध शिलालेख न० ५४ में संगृहीत जाने कितने शब्दोंकी व्युत्पत्तिपर महत्वपूर्ण प्रकाश पड़ सकता है। + वही, श्लोक ३, ५। Brhat-Kathakosa, Introd. p. 105 १७-११-४६
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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