SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 237
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (पृष्ठ १६२ का शेषांश) गया । चूँकि छत्रमालको वहाँके भट्टारककी कृपा और शिष्य इन ब्रह्मने वहांकी मनोज्ञ महावीरस्वामीकी उनके मंविनाके प्रभावसे युद्ध में विजयलाभ हुआ जीर्णं मूर्तिको देखकर द्रव्य मांग मांग कर उसका था। इस लिये वह तबसे अतिशयक्षेत्र भी कहा उद्धार कराया तथा चैत्यालयका उद्धार छत्रमालने जाने लगा। कराया । इन मब बातोंका शिलालेखमें उल्लेख है। प्रभाचन्द्र और श्रुतसागरके मध्य में रचे गये साथमें छत्रसालको बड़ा धर्मात्मा प्रकट किया गया निर्माणकाण्डमें जिन अति गयक्षेत्रोंकी परिगणनाकी हे और उसका यशोगान किया गया है। भस्तु । गई है उनमें भी कुण्डलपुरको अतिशयक्षेत्र या इससे यही विदित होता है कि वहाँ १५ वींसे अन्य रूपमें परिगणित नहीं किया। इससे भी यह १७ वीं शताब्दी तक रहे भट्टारकी प्रभुत्वमें कोई प्रकट है कि वह सिद्धक्षेत्र तो है ही नहीं-अतिशयमहावीरस्वामीका मन्दिर निर्माण कराया होगा। क्षेत्र भी १५वी १६ वीं शताब्दीके बाद प्रसिद्ध हुआ है। उसके करीब १०० वर्ष बाद जीर्ण होजानेपर वि० बीना (सागर) -दरबारीलाल जैन, कोठिया स० १७५७ (अठारहवीं सदी) में उसका उद्धार कराया १६.५-४६ ५ पारालाल ज अनेकान्तको सहायता वीरसेवामन्दिरको सहायता गत तीसरी किरणमें प्रकाशित सहायताके बाद गत तृतीय किरणमें प्रकाशित सहायताके बाद भनेकातको जो सहायता प्राप्त हुई है वह वीर सेवामन्दिरको सदस्य फीसके अलावा जो सहायता निम्न प्रकार है, जिसक लिये दातार महानुभाव प्राप्त हुई है वह निम्न प्रकार है जिसके लिये थन्यवादके पात्र हैं: दातार महानुभाव धन्यवादके पात्र है५१) रा०प० ला हुलाशराय जी जेन रईस, सहारनपुर १००१) श्रीमान ला० कपू चन्दजी जैन रईस कानपुर, __ (अपने दत्तक पुत्रकी शादी में निकाले हुए दानमें से) मालिक फर्म ला• विश्वेश्वरनाथ मूलचन्दजी ५०) बा० नेमचन्दजी गांधी, उस्मानाबाद । जैनने ५०१) अपनी ओर तथा ५००) रुपया २०) ला० फेरूमल चतरसैनजो, मासिक 'वीर स्वदेशी अ.ने चचा बनारसीदामजीके भोरसे दशलक्षण भंडार' 'सरधना'. (१० ग्राहकों को अधमूल्य में पर्व के उपलक्ष में, भेंट किये। अनेकान्त भिजवाने क लिये, जिन्हें भेजा गया)। २०१) श्री दि. जैन समाज, नजीबाबाद, जि. १०) ला० रूड़ामलजी शामियाने वाले, सहारनपुर बिजनौर (दशजक्षण पर्व के उपलक्षमें) मार्फत (चि० बा. कस्तूरचन्दजीके विवाहके समय न्यायाचाय पं. दरबारीलालजी जैन कोठिया । निकाले गए २५१) ७० के दानमेंस) १००) बा० छोटेलालजी जैन रईस कलकत्ता (बतौर ५) बा०कपूरचन्द लालचन्दजी C. P. तिलोकचन्द सहायता सफर खचक)। कल्याणमल, इन्दोर। २०॥-)|| उक्त ला. कपरचंदजी कानपुरके दोनों ५) इन्द्रमलजी एडवोकेट बुलन्दशहर (चिं० पुत्र चैत्यालयोंमें रक्खी हुए गोलकों से प्राप्त । नरेन्द्रमोहनकी विवाहोपलक्ष में निकाले दान मेंसे) १०) श्री दिगम्बर जैन समाज नजीबाबाद सफर ५)ला. दामोदरदासजी अलीगढ़ और ला वासी- खचकी सहायतार्थ, मार्फत न्यायाचार्य पं० लालजी मुगदाबाद (पुत्र-पुत्रोके विवाह के उपलक्ष- दरबारीलालजी कोठिया। में निकाले गए दानमेंसे)। १०) ला० रूडामलजी जैन शामियानेवाले, सहाग्न५)ला. हरचन्दराय नेमीचन्दजी पथवारी, आगरा पुर (चि० पुत्र ब. कस्तूरचन्दजी जैनके (चि. पुत्र मोहनकुमार की शादीके उपलक्षमें विवाहके अवसरपर निकाले हुए २५५) रू. ५)ला० सुमेरचन्दजी जैन सर्राफ किरतपुर जि. के दानमेंसे) विजनौर (चि० पुत्र प्रेमचन्दकी शादीके उपलक्ष में ५) ला० आनन्दस्वरूपजी जैन, खतौली। निकाले गए दानमसे)। ५) दि० जैन पंचायत किशनगढ, (जयपुर) ५)ला. मिश्रीलालजी सोगानी हाथरस (धर्मपत्नाके - स्वर्गवासके समय निकाले हुए दानमेंसे) १३५२।।) अधिष्ठाता१६१) व्यवस्थापक 'अनेकान्त' वीरसेवामन्दिर, सरसावा (सहारनपुर)
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy