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________________ अनेकान्त [ वर्षे ६ - कपडेको एक पोरसे उठा कर “होजा छोटी, होजा छोटी" भी कोई बात नहीं है। का मंत्र बोलते हुए वे बोर्ड पर कुछ बनाने हीको थे कि अध्यापक-अगर कोई विद्यार्थी तबीचली इसनेमें विणार्थी बोल उठे-- को एक बार अपरकी लाइनसे छोटी और दूसरीबार ऊपर 'चा तो पर्देकी मोटमें लाइनको छूते हैं। पर्देको हटा की लाइनसे ही बड़ी बतलावे. और इस तरह इसमें छोटाकर सबके सामने इसे छोटा कीजिये।' पन तथा बडापन दोनोंका विधान करे तब भी विरोधकी अध्यापकजीने बोर्ड पर डाला हुमा कपडा हटा कर क्या कोई बात नहीं है। कहा-'अच्छा, अब हम इसे खुले बाम छोटा किये देते हैं विद्यार्थी-इसमें जरूर विरोधाएगा। एक तो उस और किसी मंत्रका भी कोई सहारा नहीं लेते।' यह कह के कथनमें पूर्वापर विरोध पाएगा, क्यों कि पहले उसने कर उन्होंने उस तीन इंची लाइनके उपर पांच इंचकी जिसको जिससे छोटी कहा उसीको फिर उससे बडीबतलाने बाइन बना दी और विद्यार्थियोंसे पूछा-- लगा। दूसरे, उसका कथन प्रत्यक्षके भी विरूद्र ठहरेगा; क्योंकि ऊपरकी नाइन नीचेकी लाइनसे साक्षात् बबी नजर भाती है, उसे छोटी बतलाना इष्ट-विरुद्ध है। काहारी मार्क की हुई नीचेकी नाहन ऊपर अध्यापक--यह क्या बात है कि तुम्हारे बड़ी छोटी की लाइनसे छोटीया कि नहीं? और बिना किसी अंश बतलाने में तो विरोध नहीं, और दसरेके बदी छोटी बतके मिटाए या तो अपने तीन इंचीके स्वरूपमें स्थिर रहते लाने में विरोध पाता है? हुए भी छोटी हो गई है या कि नहीं? विद्यार्थी-मैंने एक अपेक्षासे छोटी और दूसरी अपेक्षा सब विद्यार्थी-हो हो गई है। यह रहस्यकी बात से बड़ी बतलाया है। इस तरह अपेक्षाभेदको लेकर भिक पहले हमारे ध्यान ही नहीं पाई थी कि, इस तरह भी कथन करने में विरोध लिये कोई गंजाइश नहीं रहती। बदीसे छोटी और छोटीसे बड़ी चीज हुमा करती है। अब दूसरा जिस एक अपेक्षासे उसे छोटी बतलाता है उसी एक तो भाप नीचे छोटी लाइन बना कर इसे बदी भी करदेंगे।' अपेक्षासे बड़ी बतलाता है, इस लिये अपेक्षाभेद न होने के अध्यापकजीने तुरंत ही नीचे एक इंचकी लाइन बना कारण उसका भिव कथन विरोधसे रहित नहीं हो सकताकर उसे साक्षात् बबा करके बसला दिया। वह स्पष्टतया विरोध-दोषसे दूषित है। अध्यापक--तुम ठीक समझ गये। अच्छा अब इतना और बतलामो कि तुम्हारी इस मार्क की हुई बीचकी लाइन को एक विद्यार्थी 'छोटी ही है। ऐसा बतलाता है और दूसरा अब मध्यापक वीरभद्रने फिर उसी विद्यार्थीसे पूछा-- विद्यार्थी कहता है कि 'बबी ही है, तुम इन दोनों 'तीनों वाहनों की इस स्थिति में तुम अपनी मार्क की हुई कपनोंको क्या कहोगे? तुम्हारे विचारसे इनमेंसे कौनसा उसबीचकी लाइनको, जोबसे छोटी और छोटेसे बड़ी कथन ठीक है और क्यों कर? हुई है, क्या कहोगे-छोटी या बी?' विद्यार्थी-दोनों ही ठीक नहीं है। मेरे विचारसे जो विद्यार्थी--वह बोटी भी है और बड़ी भी। 'छोटी ही (सर्वथा छोटी) बतखाता है उसने नीचेकी एक अध्यापक-दोनों एक साथ कैसे?' रंची लाइनको देखा नहीं, और जो 'बबीही (सर्वथा बबी) विद्यार्थी--ऊपरकी लाइमसे छोटी और नीचेकी लाइन बतलाता है उसने ऊपरकी पांच लाइन पर रष्टि नहीं से बड़ी है अर्थात स्वयं तीन चीकी होनेसे पांच इंची गली। दोनोंकी दृष्टि एक तरफा होनेसे एकांगी है, एकान्त बाइनकी अपेक्षा खोटी और एक इंची लाइनकी अपेक्षा है, सिके अथवा डालकी एक ही साइर (sid-)को देख बड़ी है। और यह छोटा-बदापन दोनों इसमें एक साथ कर उसके स्वरूपका निर्वाय कर लेने जैसी है, और इसलिये प्रत्यक्ष होनेसे इनमें परस्पर विरोष तथा असंगति-जैसी सम्मगष्टि न होकर मिथ्यारष्टि है। जो अनेकान्तरष्टि होती
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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